Agriwood status in Haryana & Tamilnadu for Raw Material of WBI
- जनवरी 8, 2024
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सुरेश बाहेती
- पिछले दो सालों में लकड़ी आधारित उद्योग कठिनाई के दौर से गुजर रहा है, जिसका प्रमुख कारण लकड़ी की कमी हैं।
- लकड़ी का उपयोग करने वाले उद्योगों में पेपर इन्ड लकड़ी उत्पाद में आत्म निर्भर हो चुका है और MDF उद्योग भी Captive Consumption में काफी आगे निकल चुका है।
- यह दोनों उद्योग लागत अधिक होने से संगठित क्षेत्र में है। जबकि प्लाईउड उद्योग छोटी-छोटी यूनिटों में बिखरा हुआ है। इसलिए प्लाईउड उद्योग एकजुट होकर बड़ी पहल नहीं कर पाता है।
- जिन उद्योग इकाईयों ने इस संबंध में पहल की है उन्हें अपनी कहानी लोगों को बतानी चाहिए, ताकि बाकी सभी भी प्रेरित हो सकें।
सुभाष जोलीः
- वक्त आ गया कि अब लकड़ी उद्योग को यह सोचना होगा कि कैसे भविष्य में पर्याप्त मात्रा में लकड़ी मिलती रहे।
- उद्योगपतियों व किसानों के साथ साथ सरकार भी एक मंच पर आए तो इस समस्या का समाधान आसानी से हो सकता है।
- इस वेबीनार का उद्देश्य यह है कि उद्योगपति बताएं कि कृषि वाणिकी के क्षेत्र में उनके प्रयास में क्या दिक्कतें आ रहीं हैं। जिसे इसमें शामिल विशेषज्ञ समाधान करने की कोशिस करेंगे।
- साथ ही सरकार की नीतियों के संबंध में दिशा निर्देशन डॉ एमपी सिंह करेंगे।
एम पी सिंहः
- लकड़ी की कीमतें अगर अप्रत्याशित ढंग से गिर जाती हैं तो किसान हताश हो जाते हैं और पौधारोपण में निराशा छा जाती है।
- कीमतों में उतार-चढ़ाव विदेश में भी होता है इसके लिए (वहां) आपस में मिलकर एक रेफरेंस प्राइस तय की जाती है
- इसी तर्ज पर वुड काउंसिल बनाने का सुझाव हरियाणा सरकार को दिया गया है।
- हरियाणा प्लाईउड उत्पादन संगठन को सुझाव है की सरकार से वुड काउंसिल बनाने की दिशा में पहल करने का आग्रह करें।
- हरियाणा सरकार ने पेड़ों की गणना भी की है जिसके आधार पर यह तय किया जा सकता है की और कितनी प्लांटेशन या नर्सरी की आवश्यकता है।
- तमिलनाडु में लकड़ी की कमी समझ कर राज्य सरकार ने वहां से लकड़ी बाहर ले जाने पर प्रतिबंध लगा रखा है।
- शॉर्ट रोटेशन टिंबर के लिए बहुत लंबी प्लानिंग की आवश्यकता नहीं है।
देवेंद्र चावला:
- प्लाईवुड उद्योग के 196 करोड़ रुपए हरियाणा सरकार के पास पड़ा है। जिसके लिए मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया है कि उचित योजना बनाकर इसे राज्य में कृषि वानिकी के विकास में लगाया जाएगा।
- एक एडवाइजरी कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें मैं भी मेंबर हूं। इसके तहत यमुनानगर में हाइटेक नर्सरी का प्रस्ताव रखा गया है।
- अगर तमिलनाडु की तरह अन्य राज्यों ने भी लकड़ी बाहर ले जाना प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया तो सबसे अधिक दिक्कत हरियाणा के उद्योग को ही आएगी। इसलिए हरियाणा को हर संभव तरीके अपनाकर कृषि वानिकी को बढ़ावा देना ही होगा।
- हरियाणा के उद्योगपति भी अब लकड़ी की कीमतों को स्थिर रखने में सहमत है।
- पॉपुलर के अलावा मिलिया डूबीया को भी फेस विनीयर के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- सरकार किसान और उद्योगपतियों के साथ एक सामूहिक विचार विमर्श करेगी, जिसकी जल्दी ही संभावना है।
एम पी सिंहः
- पूर्व में सुझाए गए वूड काउंसिल की स्थापना पर विशेष ध्यान दें। जिससे एक ही मंच पर सभी हित धारक अपनी बात रख सके। और इसमें लिए गए फैसले आसानी से लागू हो सके।
- इसलिए सरकार से छोटी - छोटी मांगे मनवाने की बजाय वूड काउंसिल बनाने का प्रयास करें। इसमें सीएम भी शामिल होकर उपलब्ध होंगे।
जे के बिहानीः
- उत्तरी हरियाणा की जमीन उपजाऊ है। इतनी दुविधाओं के बाद भी यहां पोपलर की खेती हो रही है।
- तमिलनाडु के मुकाबले हरियाणा में एक तिहाई जमीन करीब 45,000 स्क्वायर किलोमीटर है। इसमें भी 14 जिले एनसीआर में आ जाते हैं। जहां जमीन की बढ़ी हुई कीमतों की वजह से पॉपुलर सफेदा की खेती के प्रति किसानों का रुझान कम है। लेकिन यहां उद्योग सबसे अधिक है।
- इसको संतुलित की जा सकती है, जिससे के लिए किसानों को प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं।
- लकड़ी की एफएससी सर्टिफिकेशन की जा सकती है, जिससे लकड़ी से बने उत्पादों की कीमत निर्यात में अधिक मिले। और किसानों को अधिक भाव देने में परेशानी न हो।
- हालांकि अभी किसानों को लकड़ी की कीमत काफी अच्छी मिल रही है। इसकी तुलना में आयात की लकड़ी सस्ती पड़ रही है।
- यह भी एक तथ्य है कि भविष्य में लकड़ी की कीमत बहुत ज्यादा कम होगी, इसकी संभावना दूर - दूर तक नहीं है।
एम पी सिंहः
- एफएससी सर्टिफिकेशन का प्रस्ताव बीआईएस के पास लंबित पड़ा हुआ है। उद्योगों की ओर से कोई सुझाव प्राप्त नहीं हुए हैं। जिसके लिए उद्योगपतियों को आगे आकर प्रयास करने पड़ेंगे।
- तथ्य यह भी है कि एफएससी वन क्षेत्र की लकड़ी के लिए लाया गया था। प्लाईवुड उद्योग में कृषि वानिकी क्षेत्र से लकड़ी आ रही है।
जे के बिहानीः
- विदेशों में वृक्षारोपण के लिए लीज पर जमीन पर दिलाने के लिए सरकार को सहायता करनी चाहिए।
एम पी सिंहः
- जमीन की पहचान और प्रयास करने की शुरुआत निजी तौर पर करनी पड़ेगी। यह पहला कदम होगा।
- लैटिन अमेरिका में टीक की अपनी खपत नहीं है। लेकिन टीक का उत्पादन सिर्फ निर्यात के लिए किया जा रहा है। और भारत भी एक महत्वपूर्ण आयातक है।
जे के बिहानीः
- ग्लोबलाइजेशन और तकनीक में हो रही नई खोज से उद्योगों में कई बडे परिवर्तन संभावित है।
एम पी सिंहः
- मुझे भी लगता है कि उद्योगों में उत्पाद में बिखंडीकरण और एक ही तरह के उत्पाद में महारत हासिल करनी पड़ सकती है।
- एक बड़ी संभावना बनाई जा सकती है कि एक क्षेत्र के सभी उद्योगों के उत्पाद की मार्केटिंग एक ही ब्रांड में संगठित होकर की जा सके।
देवेंद्र चावला:
- हमारी सलाहकार कमेटी की मीटिंग में उद्योगों को पौधारोपण के लिए दी जाने वाली जमीन की लीज राशी पर अनुदान दिये जाने का आग्रह किया गया था।
राम निवास गर्गः
- सरकार से जुड़े होने और वन मंत्री कंवर पाल जी का क्षेत्र होने की वजह से हमारी पूरी कोशिस है कि उद्योग के लिए पोपलर और सफेदा के विकास के लिए अधिक से अधिक प्रयत्न हो।
- सीएम मनोहर लाल इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए गंभीरता से काम कर रहें हैं।
- हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि जो भी बेहतर से बेहतर हो सके, उद्योग के लिए वह करेंगे। इस बात पर चर्चा की जा रही है कि लकड़ी उद्योग के लिए कैसे कच्चे माल के तौर पर लकड़ी की उपलब्धता बढ़े।
विकास खन्नाः
- ऐसा प्रावधान क्यों नहीं होना चाहिए कि पोपलर और सफेदा लकड़ी पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगा दी जाए। इस दिशा में सरकार को पहल करनी चाहिए।
- इससे इंडस्ट्री को लाभ हो सकता है। पोपलर व सफेदे पर यदि एंटी डंपिंग ड्यूटी लगती है तो किसानों को इससे लकड़ी का उचित दाम मिलना सुनिश्चित होगा।
- इससे किसानों को प्रोत्साहन मिलेगा और वृक्षारोपण के लिए अधिक प्रयास करेंगे।
एम पी सिंहः
- इस बारे में और स्पष्ट होना चाहिए। इस प्रावधान की मांग करना आसान नहीं है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के भी इसमें कड़े नियम है।
- यहां तो पहले ही लकड़ी की कमी है। इसलिए यहां एंटी डंपिंग नहीं लग सकती।
- बल्कि, फिक्की ने तो लिखा है कि आयात ड्यूटी ही खत्म कर दी जाए।
पदम जैनः
- आज शेष भारत के मुकाबले यमुनानगर के उद्योगों को 50 से 75 प्रतिशत तक महंगी लकड़ी मिल रही है। इससे उत्पादन लागत बढ़ रही है। इसमें उद्योग कैसे खुद को बनाए रखे, यह बड़ी चुनौती है।
- यदि आयात या निर्यात करते हैं तब बंदरगाह से यहां तक के किराया में लागत बढ़ जाती है।
- यमुनानगर में प्रचुर मात्रा में लकड़ी थी, इस वजह से यहां उद्योग पनपा। अब यह स्थिति बदल रही है। इस वजह से आर्थिक दिक्कत भी हो रही है।
- आज एफएससी सर्टिफाइड लकड़ी की मांग बढ़ रही है। हमे यह प्रमाण पत्र नहीं मिल पाता।
- एफएससी सर्टिफिकेशन किसान की जिम्मेवारी है या फिर उद्योगपति की?
एम पी सिंहः
- हमने प्रस्ताव दिया है कि बीआईएस के माध्यम से प्रमाणिकृत कराया जाए। इसमें यह बताया जाए कि इस उत्पाद में जंगल की नहीं बल्कि कृषि वानिकी की लकड़ी प्रयोग की गई है। बीआईएस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस बात को लेकर जा सकती है कि उनकी ओर से जारी प्रमाण पत्र को मान्यता दी जाए।
- विश्व में दो तरह के ग्रुप है, एक उत्पादन करने वाला है, दूसरा इसका उपयोग करने वाला है।
- विश्व में दो तरह के ग्रुप है, एक उत्पादन करने वाला है, दूसरा इसका उपयोग करने वाला है।
- हम वृक्षारोपण का डिजिटलाइजेशन करने की कोशिश् कर रहें है। बीआईएस इसे जितनी जल्दी अमल में लाएगी इतना ही उद्योग व कृषि वानिकी के लिए अच्छा होगा।
आरसी धीमानः
- मैं, यह जानना चाहता हूं कि क्या कृषि वानिकी की लकड़ी को एफएससी प्रमाण पत्र के दायरे से बाहर कर किया जा सकता है, लेकिन युरोपियन देशों में तो एफएससी प्रमाण पत्र चाहिए। इसलिए क्या वह हमारी लकड़ी को मानेंगे।
एम पी सिंहः
- कोई भी युरोपियन देश प्रमाण पत्र में उत्पादन और उत्पादक का कानूनी स्त्रोत का आधार मांगते हैं।
- एफएससी एक निजी संस्था है, वह इसका दबाव बना रहे हैं। उन्होंने छोटे छोटे उत्पादकों तक यह संदेश दिया कि एफएससी प्रमाण पत्र लिया जाए। एफएससी को कोई सरकार प्रोत्साहन नहीं दे रही है। यदि एफएससी की जगह दूसरा प्रमाण पत्र होगा तो वह मान लिया जाएगा।
आरसी धीमानः
- हरियाणा में कृषि उद्योग बहुत विकसित है। लेकिन कृषि वानिकी में हरियाणा अग्रणी नहीं है।
- उत्तर प्रदेश में जैसे ही लकड़ी आधारित उद्योग खासतौर पर बॉर्डर के पास बढ़ेंगे तो हरियाणा के उद्योग को लकड़ी की दिक्कत आ सकती है। इसलिए हरियाणा में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास करना होगा।
- 80 प्रतिशत पोपलर सिर्फ यमुनानगर में उगाया जा रहा है, इसे बढ़ाया जा सकता है।
- दक्षिण हरियाणा में लकड़ी आधारित उद्योग कम है। वहां अधिकतर एलेंथस (अरडु) का इस्तेमाल हो रहा है।
- कोशिश होनी चाहिए कि उन क्षेत्रों में भी लकड़ी आधारित यूनिट को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जहां इस तरह की इकाई नहीं है। जिससे वहां कृषि वाणिकी को प्रोत्साहन मिल सके।
- जहां तक रेट के उतार चढ़ाव की बात है, यह एक विश्वव्यापी चक्र है। इसे रोका नहीं जा सकता। क्योंकि किसान संभाव्य मुनाफे वाली फसल ही उगायेगा।
- हम पोपलर व सफेदे की लकड़ी का विकल्प पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। मिलिया दुबिया और एलेंथस पर ध्यान नहीं दिया गया। यह चाहे उद्योग पतियों के स्तर पर है या फिर जागरूकता की कमी है।
आर के सपराः
- सरकार के पास 196 करोड़ रुपए होने की बात की जा रही है। इसके बारे में सीएससी की गाइडलाइन है कि इस रकम के ब्याज का ही इस्तेमाल हो सकता है।
- वुड काउंसिल के प्रस्ताव को आगे बढ़ाना चाहिए। इससे एक मंच मिलेगा, जहां हर मुद्दे पर चर्चा हो सकती है।
- भावांतर योजना में सफेदा व पोपलर लकड़ी को भी शामिल करने के लिए सरकार को सुझाव भेजा जाना चाहिए। यह योजना प्रदेश में बागवानी और अन्य कई फसलों में चल रही है। इसे कृषि वानिकी में भी लागू किया जा सकता है।
- हमें यह बात समझनी चाहिए कि हरियाणा में लकड़ी के रेट हमेशा महंगे ही रहेंगे, क्योंकि कृशि भूमि के पटटे की कीमत अधिक है।
- किसानों को लकड़ी से उतना पैसा देना ही होगा, जितना दूसरी फसलों से मिलता है। ट्री क्रोप को हमेशा अनाज और गन्ने से कम्पीटीसन करना ही पड़ेगा।
- यूपी से लकड़ी आना बंद होगा, शायद यह आशंका नहीं है। जहां कीमत अधिक मिलेगी माल वहीं बिकेगा।
- अभी फसलों के उत्पादन में भी कमी आ रही है, इसलिए खाद्य फसलों के दाम बढ़ने की संभावना है। इसलिए भी लकड़ी के दाम ज्यादा देने होंगे।
- आरएंडडी और एक्सटेंशन में हम पीछे हैं, हमें इसमें खर्च करना चाहिए। छोटी यूनिटें भी एसोसिएशन को पैसे दें। वह पैसा एफआरआई या सेवी संस्थाओं के माध्यम से एक्सटेंशन और R&D पर खर्च करना चाहिए।
- एलेंथस पर काम करना चाहिए। इसमें काफी संभावनाएं है।
एम पी सिंहः
- हरियाणा में कृषि वानिकी बोर्ड होना चाहिए। क्योंकि नीति से ज्यादा उसे अमल में लाना जरूरी है। नीति निर्धारण के लिए वुड काउंसिल हो।
आर के सपराः
- हम कृषि वानिकी बोर्ड का प्रस्ताव सरकार को देने जा रहे हैं। इसमें कृषि विभाग को आरएंडडी व एक्सटेंशन का काम दिया जाएगा, वन विभाग पौधा उपलब्ध कराएगा।
आर सी धीमानः
- पंजाब में हर पौधे को डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है। इससे यह पता चलता है कि किस खेत में किस प्रजाति के कितने पौधे लगे हुए हैं। यूपी में भी पौधों की डिजिटलाइजेशन हो रही है। आने वाले समय में देश में यह व्यवस्था बन जाएगी।
- दिक्कत यह है कि जब लकड़ी के कटने के बाद जब परिवहन होता है तो वहां इस डाटा को लिंक नहीं किया गया। यदि यह लिंक हो जाए तो एक बड़ी दिक्कत खत्म हो जाएगी।
नवल केडियाः
- एफएससी प्रमाण पत्र यदि सत्यापित नहीं है तब भी दिक्कत आ सकती है।
- मैं छह साल से एफएससी प्रयोग कर रहा हूं, लेकिन एफएससी का दुरुपयोग हो सकता है। क्योंकि जब आप लकड़ी का उत्पाद निर्यात करते हैं, उसका एफएससी प्रमाण पत्र है, लेकिन आप अपनी लकड़ी का स्तोत्र नहीं बता पाते तो कंटेनर वापस भेज दिए जाते हैं।
- एफएससी प्रमाण पत्र को लेकर ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है, इस प्रमाण पत्र के साथ बहुत ज्यादा सावधानी रखनी पड़ती है।
एम पी सिंहः
- क्योंकि यदि उस देश के नियमों की पालना नहीं की गई हो तो एफएससी सर्टिफिकेट कोई मान्य नहीं होता। प्रमाण पत्र में सरकार की भूमिका होनी चाहिए। क्योंकि यदि इस तरह की कोई दिक्कत आती है तो सरकार अपने स्तर पर बातचीत कर सकती है।
आर सी धीमानः
- एफएससी प्रमाण पत्र चाहिए ही क्यों? कितनी यूनिट है, जो निर्यात करती है। एक दो उद्योग होगा जो निर्यात करने में सक्ष्म है, वह इस प्रमाण को ले। इसलिए एफएससी को लेकर जमीनी स्तर पर सोचने की जरूरत है।
डॉ के टी पार्थिबनः
- सौभाग्य से, तमिलनाडु में हमने उद्योगों का समग्र सर्वेक्षण किया है। हमने 2023 तक लकड़ी की मांग की स्थिति को अद्यतन किया है। इस संबंध में 7 औद्योगिक क्षेत्र हैं - लकड़ी, प्लाई और पैनल, पल्प वुड, माचिस की लकड़ी, पैकिंग केस, फर्नीचर और अन्य निर्माण उद्योग, ऊर्जा उद्योग।
- कंसोर्टियम और उद्योगों को धन्यवाद, जिन्होंने सारी जानकारी साझा की है। उनके सहयोग से हमें यहां लकड़ी की आवश्यकताओं की स्पष्ट जमीनी तस्वीर मिल गई है। यह अनुमाऩ पर आधारित नहीं है।
- अकेले ठोस लकड़ी की आवश्यकता प्रति वर्ष 60 से 70 लाख टन के बीच होती है। ऊर्जा क्षेत्रः थर्मल प्लांट - 100 प्रतिशत बायोमास, सह-उत्पादन संयंत्र - प्रमुख ऊर्जा के रूप में बायोमास, तीसरा सह-फायरिंग संयंत्र है। इन सबके लिए हमें 90 से 100 लाख टन की जरूरत है।
- तो तमिलनाडु राज्य में लगभग 180 लाख टन लकड़ी की मांग को पूरा करने के लिए, लगभग 4.4 लाख हेक्टेयर भूमि को कृषि वानिकी या खेत वानिकी के रूप में विकसित किया जाना है। तमिलनाडु की 130 लाख हेक्टेयर भूमि में से 26 लाख हेक्टेयर भूमि वर्तमान में परती भूमि है। ये क्षेत्र अनुकूल हैं।
- उद्योगों ने भी एएफ मॉडल विकसित करने में अपनी रुचि व्यक्त की है। प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। केवल एक चीज यह है कि हमें एक मॉडल चुनना है। वर्तमान में फ़ॉरेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, में हम हर उद्योग से बात कर रहे हैं और एक आउट ग्रोअर योजना तैयार कर रहे हैं। आऊट ग्रोवर योजना (कान्ट्रेक्ट फार्मिंग) छोटे असंगठित किसानों को खरीदारों से जोड़ती है।
- 2022 तक अकेले मौजूदा प्लाई और पैनल उद्योगों के लिए वार्षिक आवश्यकता 10 लाख टन प्रति वर्ष है। ग्रीनलैम जैसे नये उद्योग आ रहे हैं। मेरा मानना है कि उनकी वार्षिक आवश्यकता लगभग 3 से 3.5 लाख टन है। और सेंचुरी एक पार्टिकल बोर्ड उद्योग लगा रही है। जून 2024 तक उनकी वार्षिक आवश्यकता लगभग 3 लाख टन है। एक और संयंत्र तूतीकोरिन में आ रहा है जहाँ वार्षिक आवश्यकता 5 लाख टन होने की उम्मीद है। इसलिए आने वाले 2 वर्षों में, अकेले प्लाई और पैनल उद्योगों के लिए तमिलनाडु में लकड़ी की मांग 20 लाख टन होने वाली है। पहले यह केवल यूकेलिप्टस था। फिर यूकेलिप्टस और मिलिया। अब कुछ उद्योगों ने कैसुरीना का भी उपयोग करना शुरू कर दिया है, जो एक अच्छा संकेत है।
- तो कुल मिलाकर, भूमि उपलब्ध है, उद्योग आ रहे हैं, और प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। एक चीज की कमी है, वह है मूल्य निर्धारण पैटर्न। पिछले 6 महीनों में कीमतों में काफी उतार-चढ़ाव हुआ। कंसोर्टियम स्थिरता हासिल करने की कोशिश कर रहा है। सभी उद्योगों को संगठित कृषि वाणिकी प्रणाली को बढ़ावा देना होगा। मैं कृषि भूमि की बात नहीं कर रहा हूं. मैं वर्तमान परती भूमि की बात कर रहा हूं। यानी जहां इसका उपयोग खेती के लिए किया जाता था, सिंचाई सुविधाओं के साथ। एकमात्र बात यह है कि हमें एक लक्षित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- सौभाग्य से हमारे सभी सुझावों को ग्रीन तमिलनाडु मिशन में शामिल कर लिया गया है।
- हमने प्रत्येक उद्योग के लिए कई प्रजातियों को प्राथमिकता दी है। उदाहरण के लिए प्लाई और पैनल उद्योग में 5 से 7 प्रजातियाँ। हमने आनुवंशिक संसाधन विकसित किए हैं। क्लोन बैंक उपलब्ध हैं। यह कंसोर्टियम नर्सरी के माध्यम से बढ़ाया जा रहा है। हम बड़ी परियोजनाओं को लागू करने के लिए उद्योग जगत से बात कर रहे हैं। कुछ पहले से ही कार्यान्वयन कर रहे हैं। कुछ कार्यान्वयन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। डिमांड पैटर्न का आकलन किया गया है। वृक्ष प्रजातियों की पहचान की गई है।
- हमने आउट ग्रोअर योजना का एक मॉडल तैयार किया है और इसमें सभी क्षेत्रों की भागीदारी की संभावना है। एक बार जब उद्योग प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने वाली एग्रोफोरेस्ट्री परियोजनाओं को गंभीरता से लेने का निर्णय ले लेता है, तो आज नहीं तो अगले 3 से 5 वर्षों में, मुझे लगता है कि हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
डॉ. नारायणस्वामीः
- मैं किसानों के नजरिए से बता रहा हूं क्योंकि हम किसानों को उद्योग और सरकार से बहुत समर्थन की जरूरत है।
- सबसे पहले हम गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री (क्यूपीएम) की आपूर्ति करने वाली नर्सरी के विकेंद्रीकरण के लिए टीओएफआई और तमिलनाडु सरकार को निवेदन कर रहे हैं ताकि किसानों को निकटतम स्रोत से क्यूपीएम मिल सके।
- क्यूपीएम एक प्रमुख मुद्दा है जिसे हमने उठाया है क्योंकि खेती के 3-4 साल के बाद यदि विशिष्ट उपज प्राप्त नहीं होती है, तो किसानों के लिए इष्टतम उपज प्राप्त करना एक बड़ी चिंता जनक विशय है, खासकर मेलिया दुबिया के लिए जो ज्छ में लोकप्रिय है। यूकेलिप्टस तमिलनाडु में लोकप्रिय नहीं है क्योंकि इसे सरकार की ओर स प्रोत्साहित नहीं किया जाता है।
- फिलहाल किसान के लिए कीमत करीब 9,500 प्रति टन है। किसान कटाई, लोडिंग और फैक्ट्री तक पहुंचाने में 3 से 4 हजार खर्च करता है। यदि किसान को लगभग 40 टन ही प्राप्त हो जाये तो उसे कुछ आय हो जायेगी। अन्यथा यह केवल एक कृषि गतिविधि बन कर रह जाएगी जिसमें कोई आय नहीं होगी।
- इसलिए हम टीएनएयू और अन्य निर्माताओं के साथ 12,000 प्रति टन की लागत संरचना बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। लुगदी उद्योगों को आपूर्ति करना किसानों के लिए व्यवहार्य नहीं है। हम बेहतर कीमत के कारण प्लाइवुड उद्योगों पर भरोसा कर रहे हैं। हम कम अवधि में बेहतर वजन पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- वैसे तो ज्छ में कोई एग्रोफारेस्ट्री नीति नहीं है। इसलिए यह एक धुंधला क्षेत्र है।
- दूसरा पहलू है जीएसटी, यह 18 प्रतिशत है और किसान को यह लागत वहन करनी होती है। ये दोनों हमारी प्रमुख समस्याएँ हैं।
- राष्ट्रीय स्तर पर हम चाहते हैं कि सरकार चाय बोर्ड आदि की तरह सिंगल विंडो बोर्ड का गठन करे, राष्ट्रीय बागवानी मिशन जैसे कई मिशन हैं। इसलिए हमारा अनुरोध है कि सिंगल विंडो ट्री बोर्ड या एग्रीफारेस्ट्री बोर्ड, वाणिज्य मंत्रालय के तहत गठन किया जाए। वन विभाग के अंतर्गत नहीं।
- हमने टीएन सरकार से लकड़ी के विपणन के लिए 6 केंद्र प्रदान करने का भी अनुरोध किया है। न केवल मेलिया दुबिया, बल्कि अन्य वृक्षारोपण लकड़ी के लिए भी। किसानों को लकड़ी के विपणन के लिए एक विशेष आर्थिक क्षेत्र जैसा बाजार उपलब्ध होना चाहिए।
- यूकेलिप्टस के वृक्षारोपण के संबंध में निजी भूमि पर रोपण एवं परिवहन कोई समस्या नहीं है। लेकिन पड़ोसी किसान अधिकारियों से इसकी शिकायत करते हैं, इस मानसिकता के कारण कि यूकेलिप्टस भूजल को अधिक सोखना है।
डॉ पार्थिबनः
- यूकेलिप्टस के अंतरराज्यीय प्रतिबंध के संबंध में, यह टीएनपीएल के लिए कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किया गया था जो एक सरकारी कंपनी है। यह केवल एक वर्ष की अवधि के लिए था। अवधि वास्तव में समाप्त हो गई है लेकिन पिछले आदेश को निरस्त करने के लिए एक और आदेश की आवश्यकता हो सकती है जिसकी हम प्रतीक्षा कर रहे हैं। उद्योगों की ओर से भी काफी अनुरोध आए हैं।
- मेलिया दुबिया के लिए किसानों को 10,500 तक मिल रहे हैं, अभी कटान की लागत लगभग 1,200 प्रति टन है। परिवहन खर्च उद्योग की स्थिति पर निर्भर करता है। उद्योग अलग-अलग कीमतें चुका रहा है, जो समस्या है।
- उद्योगों को कटान एवं परिवहन की सुविधा देनी चाहिए।