Agriwood Status in U.P. & Uttarakhand for Raw Material of WBI
- फ़रवरी 7, 2024
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सुरेश बाहेती
नई औधोगिक नीति की घोषणा बाद, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंण्ड़ में लकड़ी की बहुतायत को देखते हुए, कई नई यूनिटें लग गई हैं या अपनी capacity increase कर रही है।
इस तरह से प्रदेश में लकड़ी की अपनी खपत भी बढ़ती जा रही है। इसके बावजुद आज भी यह प्रदेश संपूर्ण भारत को सफेदा और पोपुलर की आपूर्ति कर रहा है।
हालांकि प्रदेश के बाहर लकड़ी की कमी होने की वजह से रेट बढ़ने का असर यहां भी पड़ा है। जिससे यहां भी लकड़ी के रेट तेज होते जा रहें है और उद्योगों में लकड़ी की कमी महसूस की जाने लगी है।
एम पी सिंहः
- यूपी और उत्तराखंड पूरे देश को प्लाईवुड के साथ साथ लकड़ी उपलब्ध करा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के सकारात्मक निर्णय के बाद यूपी में प्लाईवुड उद्योग के लिए नए उत्साह का संचार हुआ है। सरकार भी नए यूनिट को प्रोत्साहित कर रही है। यूपी में अब दूसरे राज्यों से भी उद्योगपति आ रहे हैं। उत्तराखंड में भी लकड़ी उद्योग की पर्याप्त संभावनाएं है। ऐसा कोई सिस्टम बने कि भविष्य में भी यह उत्साह बना रहे। इसके लिए वुड काउंसिल या वुड बोर्ड की स्थापना की जाए। इसमें सीएम को चेयरमैन होना चाहिए। जिससे लकड़ी उद्योग की समस्या तो हल होगी, इसके साथ ही उद्योगों को नियमित तौर पर लकड़ी मिलना भी सुनिश्चित होगा।
आर के सपराः
- एग्रोफोरेस्ट्री बोर्ड बनाया जाए या स्टेट वुड काउंसिल?
एम पी सिंहः
यह राज्यों पर निर्भर करता है कि वह बोर्ड बनाते हैं, या फिर काउंसिल। यदि कृषि विभाग बनाता है तो एग्रोफोरेस्ट्री बोर्ड बनेगा यदि वन विभाग बनाता है तो वुड काउंसिल बनेगी। अंततः एक मंच हो, जहां लकड़ी से जुड़ा हर कोई अपनी बात रख सके। राष्ट्रीय स्तर के बोर्ड की बात हो रही है। यदि मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष बना दिया जाए तो लकड़ी व कृषि से जुड़े सभी लोग इसमें शामिल हो सकते हैं। इसकी नियमित बैठक हो। जहां समस्या व सुझाव पर विचार कर आगे की रणनीति बनायी जा सकती है।
आरसी धीमानः
- सीएलसी का फंड खर्च किया जाए।
सीएलसी का फंड लकड़ी से जुड़े दूसरे अन्य कामों व गतिविधियों पर खर्च होना चाहिए। इससे लकड़ी पर स्टडी और रिसर्च हो सकती है। अभी सिर्फ पौधारोपण के लिए ही यह फंड खर्च हो सकता है।
अशोक अग्रवालः
- किस आंकलन से दावा किया जा रहा है कि यूपी में लकड़ी ज्यादा है?
समझ में नहीं आ रहा कि कैसे यह मान लिया गया है कि यूपी में पर्याप्त लकड़ी है। यूपी में लकड़ी बिहार से आ रही है। विदेश से आ रही है। सरकार ने यूनिट लगाने के लिए पोर्टल खोला तो कई कई जिलों से एक एक हजार से ज्यादा आवेदन लाइसेंस के लिए आ गए थे। इस वजह से सरकार ने पोर्टल बंद कर दिया। मुझे नहीं लगता कि यूपी में बहुत ज्यादा लकड़ी है। फैक्टरी आठ से दस घंटे चल रही है। लेकिन इस बात को लेकर हमें स्वयं ही प्रयास करने होंगे। क्योंकि लकड़ी हमारी जरूरत है। हमने अपने स्तर पर पॉपुलर का पौधा रोपण कराया। इसके परिणाम बेहतर आए है।
नयी यूनिटें आ भी रही है, कुछ बंद भी हो रही है। हमने सरकार को सलाह दी कि सरकार किसानों को अच्छी किस्म का सफेदा के पौधे उपलब्ध कराए। यद्यपि पौधा रोपण तो हो रहा है, लेकिन अच्छी गुणवत्ता की लकड़ी की कमी है। हमें पौधा रोपण की ओर ज्यादा ध्यान देना होगा।
इधर प्लाईवुड के दाम कम हो रहे हैं, लकड़ी के दाम बढ़ रहे हैं। इससे उद्योग काफी मुश्किल में हैं। आने वाला समय दिक्कत वाला हो सकता है। क्योंकि अभी एमडीएफ यूनिट भी यूपी में आ रही है। इसलिए लकड़ी की दिक्कत न आए,इस दिशा में हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।
सीएन पांडेः
- लकड़ी को लेकर हर राज्य अपना दिशा निर्देश तय करें।
हमें यह जानना और तय करना होगा कि हमारे पास कितनी लकड़ी है और कितनी चाहिए। हमें कितने हेक्टेयर में पेड़ लगाने की आवश्यकता है। कौन सी लकड़ी जानी चाहिए एमडीएफ में और कौन सी प्लाइवुड में। कितने हेक्टेयर सफेदा या पॉपुलर लगाया जाना चाहिए। चार साल या पांच साल के फसल चक्र से क्या लकड़ी की आवश्यकता पूरी हो सकती है?
जब हम लकडी की गुणवत्ता की बात कर रहे हैं, इसमें हमें एक बात समझनी होगी कि कम उम्र के पेड़ यानी तीन या चार साल के पेड़ को पील करके हम प्लाईवुड में अच्छी गुणवत्ता नहीं पा सकते। इसलिए हम ब्राजील से लकडी मंगा रहे है। ताकि दोनो को मिक्स कर हम वह गुणवत्ता पा ले जिसकी जरूरत है इसलिए कच्चे माल की गुणवत्ता पर भी काम करना चाहिए।
हर राज्य अपना एक प्लान बनाए, पोधा रोपण को लेकर ToFI के अंतर्गत हरियाणा और पंजाब में तो यूएस से फंड आ रहा है यूपी में भी आ रहा है। एसोसिएशन तय करें कि प्रदेश में कितने हेक्टेयर में पोधा रोपण किया जाए। यदि एसोसिसएशन अपने लक्ष्य निर्धारित करे और उस लक्ष्य को पाए जिसे हम सक्सेस स्टोरी के तौर पर बातचीत कर सकते है।
आरसी धीमानः
- दूसरे राज्यों में लकड़ी जाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
यूपी में लकड़ी कम नहीं है, यूपी से हरियाणा में साठ प्रतिशत लकड़ी आती है। यूपी में जो यूनिट है, उनके लिए तो पर्याप्त लकड़ी है, लेकिन हरियाणा और दूसरे राज्यों में इस लकड़ी को ज्यादा कीमत देकर खरीद लिया जाता है। आज यूपी से लकड़ी बाहर जा रही है। कल दूसरी जगह से लकड़ी किसी दूसरे राज्य में जाना शुरू हो जाएगी।
दीपक अग्रवालः
- 2030 की आवश्यकता को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी।
अशोक अग्रवाल ने सही कहा कि इसमें दो राय नहीं कि लकड़ी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। लकड़ी की उपलब्धता अभी भी 2010 को आधार बना कर आंकी जा रही है। जबकि हम काम कर रहे हैं 2024 में। जहां फैक्ट्रियों में उत्पादन बढ़ रहे हैं और लकड़ी की खपत बढ़ रही है।
इधर लाइसेंस भी जारी हो रहे हैं। इसलिए हमें आज को आधार बना कर लकड़ी का आकलन करना चाहिए। तभी हम लकड़ी को लेकर किसी निश्चित हल की ओर बढ़ पाएंगे। हमें 2030 को ध्यान में रख कर रणनीति बनानी होगी।
आर के सपराः
- लकड़ी उत्पादक किसानों को अच्छे रेट देने होंगे।
हरियाणा के उदाहरण से समझा जा सकता है कि लकड़ी को लेकर हमारा जो आकलन है, वह सही नहीं है।
उत्तराखंड पहला राज्य था, जहां लाइसेंस सबसे पहले दिए गए। इसके बाद हरियाणा में लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू हुई। लाइसेंस देते वक्त यह कोशिश रही कि लकड़ी की उपलब्धता व आपूर्ति में तालमेल बनाया जाए।
पंजाब में भी लाइसेंस इसी तरह से जारी हो गए थे। वहां की यूनिट 25 प्रतिशत क्षमता पर चल रही है। उनके पास लेबर की भी समस्या है।
जहां तक लकड़ी को दूसरे राज्यों में ले जाने की बात है, किसान लकड़ी को लेकर वहां जाएंगे जहां उसे दाम ज्यादा मिलेगा।
Now the time is for only those units which will move carefully to survive in this race. The unit which does not utilize the raw material effectively may be out of the market.
जहां तक कम उम्र के पेड़ को काटने की बात है, अभी तो एमडीएफ भी आ रहा है। किसान क्यों लंबे समय तक पेड़ को खेत में रखेगा, यदि उसे कम समय मे ही इतना पैसा मिल रहा है।
के पी दुबेः
- रिसर्च के लिए मॉडल बनाना चाहिए।
प्रदेश में लंबे समय से लकड़ी आधारित इकाइयों के लाइसेंस की डिमांड थी। यह डिमांड वहां से आई जहां लकड़ी की यूनिट नहीं है। आज प्लाईवुड की मांग भी बढ़ रही है, और लकड़ी आधारित यूनिट से रोजगार के अवसर भी पैदा किए जा सकते हैं। इस बात को ध्यान में रख कर ही यूपी में लाइसेंस खोले गए हैं। सरकार की कोशिश है कि लकड़ी उद्योग से यूपी में रोजगार के अवसर पैदा करने कोशिश कर रहे हैं।
निश्चित तौर पर आज जीरो वेस्ट फार्मूले पर काम करना होगा। तभी यूनिट बनी रह सकती है। यह बड़ा चैलेंज है। जहां तक लकड़ी की पैदावार व आपूर्ति की बात है यूपी में लकड़ी की कमी नहीं है। लकड़ी पूरी तरह से बाजार पर निर्भर है। मांग व आपूर्ति का नियम काम करता है। यह प्राकृतिक तरीके से स्वतः संचालित है। जिसमें हम ज्यादा हस्तक्षेप नहीं कर सकते। हम अच्छी गुणवत्ता की लकड़ी पैदा कर सकते हैं। इसके लिए नीति बनानी होगी। अब यदि किसान लकड़ी समय से पहले काटना चाहता हे तो उसे हम नहीं रोक सकते हैं।
हम एक ऐसा मॉडल बनाए, एक रिसर्च सेंटर जिसमें इंडस्ट्री के विशेषज्ञ हों। जिसे इंडस्ट्री वित्तीय मदद उपलब्ध कराए। कृषि या बागवानी या फिर वन विभाग और इंडस्ट्री एक मंच पर आए। यूपी में एग्रो फारेस्ट्री नीति बन रही है। इसके अलावा वुड बेस इंडस्ट्री की पॉलिसी भी बन रही है। इंडस्ट्री जब तक आगे नहीं आएगी तब तक उच्च गुणवत्ता की लकड़ी के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है।
2022 में सरकारी नर्सरी में पोपलर व सफेदे को प्रोत्साहित न करने की दिशा में भी काम हुआ है। इसलिए हमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप करनी होगी या फिर निजी तौर पर सफेदे व पोपलर की नर्सरी स्थापित होनी चाहिए। हालांकि ToFI प्रोजेक्ट के तहत लखनऊ में दस लाख पौधों की नर्सरी बन रही है, बुलंदशहर में एक लाख पौधों की नर्सरी बना रहे हैं। लेकिन यह काफी नहीं है।यूपी के तीन भागों में दो करोड या एक करोड़ अच्छी गुणवत्ता के बीज या पौधे उपलब्ध कराए, इसके लिए इंडस्ट्री भी वित्तीय सहयोग करे।
आर के सपराः
- यमुनानगर में लकड़ी के रेट ज्यादा मिलते हैं।
क्योंकि यमुनानगर में लकड़ी का रेट किसानों को अच्छा मिल रहा है। इसलिए वह यमुनानगर में लकड़ी लेकर आता है।
किसान रास्ते की तमाम तरह की दिक्कत उठा कर भी यमुनानगर लकड़ी लेकर आते हैं। एक ही कारण है, लकड़ी के ज्यादा रेट।
आरसी धीमानः
- नर्सरी के लिए सभी उद्योगतियों को मिल कर काम करना होगा।
यूपी में उन क्षेत्रों में भी उद्योग लगने चाहिए, जहां लकड़ी आधारित इकाई कम है। परिवहन पर अनुदान देकर वहां उद्योगपत्तियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
यूपी बड़ा राज्य है, यहां नर्सरी की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसके लिए सभी उद्योगपतियों को मिल कर काम करना होगा। जिससे यूपी में लकड़ी की मांग को पूरा किया जा सके।
निजी क्षेत्र को अपने अपने स्तर पर और मिल कर नर्सरी के लिए प्रयास करना होगा। यूपी में प्लाईवुड की मांग बढ़ने वाली है। क्योंकि वहां अभी हाउसिंग सेक्टर में बहुत विकास आना है।
अशोक ताजपुरियाः
- एक प्लाई के बदले एक पौधा बांटेंगे।
हमने पूरे देश को लकड़ी दी है, लकड़ी आगे भी देते रहेंगे। मेरा मानना है यूपी में तेजी से पौधा रोपण हो रहा है। जब तक मांग नहीं होगी तब तक आपूर्ति नहीं होगी। मांग होगी तो निश्चित ही उसका उत्पादन भी होगा ही। हमारे पास बहुत मौके हैं, कि हम लकड़ी के उत्पाद बना कर देश के बाजार के साथ साथ निर्यात भी करे। सरकार भी इस दिशा में लगातार प्रोत्साहन दे रही है। सरकार ने कड़े नियमों को सरल किया है।
किसानों की समस्याओं को दूर करने की दिशा में काम करना होगा। हमें अब स्वयं ही प्रयास करने होंगे। सरकार जो कर सकती है कर ही रही है। लाइसेंस प्रक्रिया आसान हो गई। यह सोचना कि लकड़ी दूसरे राज्यों में जा रही है यह चिंता का विषय नहीं है। यदि हम भी रेट ज्यादा देंगे तो हमें भी लकड़ी की कमी नहीं है।
हम किसानों को पौधे दे रहे हैं। इसे और ज्यादा बढ़ाने वाले हैं। एक प्लाई और एक पौधा बांटेंगे। हमारी कोशिश है कि दो तीन साल में हम लकड़ी के क्षेत्र में इतने आत्मनिर्भर हो जाए कि हमें लकड़ी के लिए सोचना ही न पड़े।
संदीप अग्रवालः
- हमें पर्याप्त लकड़ी कैसे मिले? इसमे मार्ग दर्शन चाहिए।
उद्योग लगने चाहिए। प्लाईवुड युनिट आने से एक माहौल बनता है। फिर भी हमें यह सोचना होगा कि लकड़ी की आपूत्र्ति सुनिश्चित बनी रहे। हमें जितनी लकड़ी चाहिए, उसे हम सरकार के साथ मिल कर कैसे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भविष्य में पर्याप्त लकड़ी मिलती रहे।
लाइसेंस देने से पहले लकड़ी की उपलब्धता पर भी ध्यान देना चाहिए था। इसके लिए सही स्टडी होनी चाहिए थी। निश्चित ही यह उद्योगपत्तियों की भी जिम्मेदारी है कि वह इस बात की ओर ध्यान दें कि कैसे लकड़ी की मांग पूरी हो।
अब जब देश में एमडीएफ प्लांट लगातार आ रहे हैं। ऐसे में प्लाइवुड को पर्याप्त लकड़ी कैसे मिले, इस पर ध्यान देना होगा। हमारी ज्यादातर इकाइयां अभी गैर संगठित क्षेत्र जैसे कि स्माल या MSME में है। हम वेस्ट को जीरो कैसे करे? इसका मॉडल भी अभी हमारे पास नहीं है।
एक पीलिंग पर 50 सीएफटी लकड़ी का उपयोग होता है। इसे आधार बना कर भविष्य की योजना बनाई जा सकती है। एमडीएफ की मांग बढ़ाने से किसान कम उम्र के पेड़ काट देंगे। इस वजह से प्लाईवुड इकाई को अच्छी लकड़ी कैसे मिलेघ्
हम उत्तराखंड में सरकार से क्या मदद ले सकते हैं। अभी सरकारी क्षेत्रों में काफी खाली जमीन पड़ी है। लेकिन यह उद्योगपतियों को कृषि वाणिकी के लिए मिलेगी, इसमें संशय है।
दीपक अग्रवालः
- क्या सफेदा वाटर लेवल घटा देता है?
सफेदे को लेकर वन विभाग से एक मिथ व्यक्त किया गया कि इससे जमीन खराब हो रही है। और इसका वाटर लेबल पर बहुत असर पड़ रहा है।
अशोक ताजपुरियाः
- इस भ्रांति का विरोध होना चाहिए।
सफेदा लगाने से कोई जमीन खराब नहीं होती। इस तरह की भ्रांतियों का पुरजोर विरोध होना चाहिए। मैं वुड बेस्ड इंडस्ट्री का सदस्य हुँ, और एसएलसी की मीटिंग में भी बैठता हुँ, वहां एक बार भी सरकार की ओर से सफेदे के बारे में इस तरह की कोई बात नहीं आयी। सफेदे से पानी व जमीन को नुकसान नहीं होता। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है।
ताजपुरियाः
- उद्योगपति नर्सरी की ओर ध्यान दें।
जहां तक आकलन करने की बात है। हम एक बार स्टडी करते हैं, वह आकलन तब तक चलता है, जब तक दूसरा आकलन न हो जाए। लाइसेंस रोके नहीं जाने चाहिए। इसका एकमात्र हल यह है कि हम लकड़ी की पैदावार बढ़ा दें। हम इस ओर ध्यान दे रहे हैं कि कैसे पौधा रोपण को बढ़ावा दें। हालांकि इस काम की अपनी समस्या है। इसलिए हमने बीच का रास्ता निकला।
हमने प्रयोग किया है और हम निजी क्षेत्र में लगातार पौधा रोपण करा रहे हैं। जो भी किसान लकड़ी लेकर आता है, हम उसे पौधे देते हैं। हर पौधा कहीं न कहीं जमीन में लग जाता है। यह प्रयास व्यर्थ नहीं जाता।
आरसी धीमानः
- सफेदा संपूर्ण भारत में प्रचलित है।
सरकार ने सफेदा व पापुलर को लगाना इसलिए बंद किया, क्योंकि इससे कीमतों पर असर पड़ता है। सफेदा भारत में सबसे ज्यादा लगाया जाने वाला पौधा है।
आर के सपराः
- सही जगह पर सही पौधारोपण होना चाहिए।
हरियाणा का किसान 50 साल से सफेदा लगा रहा है। हरियाणा के किसान इसकी खूब खेती करते हैं। यह भ्रांति ही है कि सफेदा जमीन खराब करता है। सही जगह पर सही पौधा रोपण होना चाहिए। इसकी पैकेज और प्रैक्टिस किसान तक पहुंचनी चाहिए। एलेंथस को प्रत्साहित करने के लिए उद्योग को आगे आना चाहिए। और एफआरआई के साथ मिल कर एलेंथस में और भी शोध करे।
डॉ. संजय सिंहः
- उत्तर प्रदेश की परिस्थितियां अलग अलग है।
उत्तर प्रदेश को समग्रता से देखने की जरूरत है। क्षेत्रफल अधिक होने की वजह से यहां की परिस्थितियां अलग अलग है। इसलिए लकड़ी का उत्पादन भी एक तरह से नहीं हो सकता। यह अच्छी बात है कि इंडस्ट्री चाह रही है कि यूपी में लकड़ी का उत्पादन बढ़े। लकड़ी उत्पादन को अब औद्योगिक दृष्टिकोण से देखने की जरूरत है। उद्योगपति सरकार पर निर्भर रहने की बजाय स्वयं इसे प्रोत्साहित करें।
पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी उत्तर प्रदेश की परिस्थितियों में अंतर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश 60 प्रतिशत लकड़ी ही उद्योग को उपलब्ध करा रहा है। यहां जमीन की भी कमी है। किसानों में भी लकड़ी को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं है। किसान को बाजार ने भी निराश किया है। यहां सीमित मात्रा में लकड़ी उद्योग है। पूर्व उत्तर प्रदेश में दिक्कत यह है कि यहां किसान जो लकड़ी उगा रहे हैं, उसका सही दाम मिले इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
किसानों के पास अलग अलग किस्म की लकड़ी रोपने के विकल्प भी होने चाहिए। मिलिया दुबिया और महोगनी के प्रति भी किसानों का रुझान बढ़ रहा है। इस तरह की किस्मों के लिए इंडस्ट्री को भी आगे होना होगा। रिसर्च सेंटर से उसके क्लोन तैयार होने चाहिए।
उत्तर प्रदेश में पर्यावरण के लिए पौधारोपण से हरित कवर बढ़ाने की बात तो हो रही है। लेकिन यह तभी संभव है जब इससे किसान की आमदनी भी बढे़। इसके लिए हमें बाजार को विकसित करना होगा।
लक्ष्मी कांतः
- लकड़ी की कमी नहीं आने वाली।
जब हरियाणा 40 हजार किलोमीटर का होकर एशिया की सबसे बडी मंडी बना सकता है। यहां का क्षेत्रफल तो लगभग दो लाख 43 हजार किलोमीटर का है। हरियाणा में साठ प्रतिशत लकड़ी यूपी से आ रही है। हमारे पास उपजाऊ जमीन है।
किसान को समस्या यह है कि जब उन्हें लकड़ी का उचित दाम नहीं मिलता तो वह इसकी खेती छोड़ देते हैं। यह साइकिल चल रहा है। जो हर पांच छह साल के बाद आता है। 20 साल से यह क्रम चल रहा है। यूपी की लकड़ी हरियाणा के साथ साथ दूसरे राज्यों में जा रही है। जैसे फैक्टरी बढ़ती है तो लकड़ी की कमी आनी स्वाभाविक है। दो साल के बाद लकड़ी की फसल आ जाएगी, तब लकड़ी की कमी दूर होने की पूरी संभावना है।
हम सभी को मिल कर यह कोशिश करनी चाहिए कि किसान को लकड़ी का उचित दाम मिले। जिससे वह प्रोत्साहित रहे। इसके साथ ही किसानों को अच्छी किस्म का पौधा उपलब्ध कराना चाहिए। हमारे पास जमीन की कमी नहीं है। बस जरूरत है, इस दिशा में गति बढ़ाने का सिस्टम बनाने की।
यूपी में गन्ने की खेती ज्यादा है, हमें यह भी ध्यान देना होगा कि लकड़ी उत्पादक किसानों को इतना रेट देना होगा कि उसे गन्ने की तुलना में आमदनी कम न हो।
धर्मेन्द्र डौकियाः
- यूपी में अपनी नर्सरी क्यों नहीं तैयार हो रही?
यूपी में नर्सरी की ओर ध्यान नहीं दिया गया। वेस्टर्न यूपी का लकड़ी उद्योग विकसित हो रहा है। रामपुर में पहले उद्योग आ गए। सीतापुर, सुलतानपुर व प्रतापगढ़ तक प्लाई उद्योग बढ़ रहा है। रायबरेली में आंध्रा से क्लोन आ रहे है। एक्शन टेसा ने बड़ी नर्सरी शुरू की है। सेंचूरी आंध्रा से पौधा ला रहा है। यूपी में पोपलर उत्तराखंड से आ रहा है।
यहां उद्योग बढ़ रहे हैं। इसलिए लकडी चाहिए। इसलिए बिना नर्सरी के हम पर्याप्त मात्रा में लकड़ी उगा ही नहीं सकते। अतः यूपी में अपनी नर्सरी होनी ही चाहिए। इसके लिए उद्योगपति मिल कर या व्यक्तिगत तौर पर नर्सरी की ओर ध्यान दें। रामपुर व सीतापुर में हम इस तरह की नर्सरी बना सकते हैं।
सरकार लकड़ी को बढ़ावा दे रही है,लेकिन इसमें कमर्शियल लकड़ी नहीं है। यूपी सरकार को यह प्रस्ताव देना चाहिए कि हरित कवर का अभियान तभी सफल होगा, जब इसमें लकड़ी का व्यावसायिक हित साधे।
सरकार की नीति में बदलाव आना चाहिए कि वह सफेदे को अपनी नर्सरी में उगाए। ठीक है कि वह सरकारी जमीन पर सफेदा न लगाए, लेकिन किसानों को तो लगाने के लिए उपलब्ध कराने चाहिए। यूपी में मांग बढ़ने की पूरी संभावना है। यूपी में निश्चित सिस्टम के तहत पौधारोपण किया जाना चाहिए।
उद्योगपति अपनी कैपिटल कास्ट का एक प्रतिशत नर्सरी में दो प्रतिशत किसानों को प्रोत्साहित करने में लगाए। पौधे की गुणवत्ता बढ़ानी चाहिए। जिससे अच्छी गुणवत्ता की लकड़ी मिले। क्योंकि गुणवत्ता वाले कच्चे माल से ही हम बेहतर उत्पाद बना सकते हैं।
सुभाष जोलीः
- वेबीनार का निष्कर्ष।
Logistics कम करने के लिए cluster बनने चाहिए।
पूर्वी और पश्चिमी उ.प्र. के लिए अलग cluster चाहिए।
राज्य Wood councils बवनदबपसे होना चाहिए।
नर्सरी की संख्या बढ़नी चाहिए।
पौद्यों की गुणवत्ता रिसर्च द्वारा बढ़नी चाहिए। अच्छी गुणवत्ता की लकड़ी तभी मिलेगी, जब किसानों को अच्छी किस्म के पौधे मिलेंगे।
संदीप गुप्ताः
वेबीनार का निष्कर्ष यह निकलकर आया कि उद्योग को अपने बलबुते नर्सरी को प्रोत्साहित करना ही होगा।
सुरेश बाहेती
लकड़ी की प्रत्येक ट्राली में कुछ न कुछ पौधे ‘रिटर्न गिफट’ के तौर पर दिया जाय, अशोक ताजपुरीया का यह सुझाव और प्रस्ताव उल्लेखनीय और सराहनीय ओर महत्वपूर्ण है।
के पी दुबेः
पिछले तीन सालों से नर्सरी की चर्चा हो रही है। मैं WBI से आवह्न करता हूँ, कि इस पर ठोस कार्यवाही करें और अपनी ओर से कम से कम एक करोड़ पौद्यों की नर्सरी का प्लान बनाकर सरकार के समक्ष पेश करें।
उद्योग द्वारा उगाए जाने वाले पौद्यों को हम पर्यावरण के साथ co-relate करें, इस पर भी सरकार अपना ध्यान देगी।