Air Pollution: Countrywide Crisis, Not Limited to a Single Region or Locality
- दिसम्बर 22, 2020
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If there is air pollution in any city, is not just due to that city only. There are many villages and small towns around the city, there are factories. They are all responsible for the air pollution of that city.
Burning of straw and waste in winter are important factors in increasing pollution. Pollution from industry and vehicles remains throughout the year. But with the slowing of the wind speed in winter, its effect appears more.
The environment has one term – airshed. This means how much and how far the air of a particular area will be affected. For example, the airshed in Delhi is believed to have a radius of around 300 km. That is, if we want to reduce pollution of Delhi, then we will need to work within a radius of 300 km. This means that it will also cover Punjab, Haryana, Rajasthan, and UP. That is, to reduce pollution, coordination of these four states with Delhi is very important. And it should not be limited to Delhi alone. Similar mechanism will also be necessary to prevent pollution spreading elsewhere in the country.
Air pollution in NCR especially in winter season is increased because in Punjab, Haryana, Western UP, when paddy straw is burnt. No political party, which is in power at the Center or in the state, can muster the will to act against farmers. There is a need to make the farmers aware that burning the straw in the field reduces the moisture in the field also.
But today the problem of stubble in Punjab, Haryana, Western UP is because the combine harvesters are being used for paddy harvesting. These harvesters leave stubble up to one and a half feet. Cut it either by machine or by hand or burn. It will be expensive if you get chopped by hand or machine again. So the farmers burn it. Right now this is happening in three states only. Therefore, it is important to solve this problem in time. The easiest solution is to redesign the combine harvesters from which the stubble is being harvested. Let this harvester leave the straw to three-four cm instead of one and a half feet as it is left when cutting by hand. Then there will be no need to burn the straw. Such machines can be given to the farmers cheaply which can take out the straw from the field. This is the easiest and effective solution. But unfortunately we are searching for other complex solutions.
There is no immediate solution to stop pollution, so a long-term plan has to be made to control it. A cheaper alternative to sources has to be prepared.
वायु प्रदूषण : संकट देशव्यापी, किसी एक क्षेत्र या इलाके तक सीमित नहीं
किसी भी शहर में अगर वायु प्रदूषण है तो वह केवल उस शहर के कारण नहीं है। शहर के आसपास कई गांव और छोटे-छोटे कस्बे होते हैं, कल-कारखाने होते हैं। उस शहर के वायु प्रदूषण के लिए ये सभी जिम्मेदार होते हैं।
सर्दियों में पराली व कचरे का जलना प्रदूषण बढ़ने के अहम कारक हैं। उद्योग और वाहनों से होने वाला प्रदूषण तो साल भर बना रहता है। लेकिन सर्दियों में हवा की गति धीमी होने से इसका भी असर ज्यादा दिखने लगता है।
पर्यावरण में एक टर्म होती है-एयरशेड। इसका मतलब है कि किसी क्षेत्र विशेष की हवा का असर कितना और कहां तक होगा। उदाहरण के लिए दिल्ली में जो एयरशेड है, वह करीब 300 किमी की परिधि तक माना जाता है। यानी अगर हम दिल्ली का प्रदूषण कम करना चाहते हैं तो हमें 300 किमी की परिधि में काम करने की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि उसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, और उप्र के इलाके भी आ जाएंगे। यानी प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली के साथ इन चारों राज्यों का समन्वयन बहुत जरूरी है। और यह केवल दिल्ली तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। ऐसा ही मेकेनिज्म देश के अन्य जगहों पर फैल रहे प्रदूषण को रोकने के लिए भी जरूरी होगा।
एनसीआर में खासकर सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में इन्हीं दिनों धान की पराली जलाई जाती है। कोई भी राजनीतिक दल जो केंद्र में या राज्य में सत्ता में है, किसानों के खिलाफ सख्ती की इच्छाशक्ति नहीं जुटा पाता। किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता तो है ही कि खेत में पराली जलाने से खेत की नमी खत्म होती है।
लेकिन आज पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उप्र में पराली की समस्या इसलिए है क्योंकि वहां धान की कटाई के लिए कम्बाइन हार्वेस्टर इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ये हार्वेस्टर डेढ़ फीट तक पराली जमीन पर छोड़ देते हैं। इसे या तो दोबारा मशीन या हाथ से काटिए या फिर जलाइए। दोबारा हाथ या मशीन से कटवाएंगे तो महंगा होगा। इसलिए किसान उसे जला देते हैं। अभी ऐसा तीन राज्यों में ही हो रहा है। इसलिए समय रहते ही इस समस्या का समाधान जरूरी है। इसका सबसे आसान उपाय यह है कि जिन कम्बाइन हार्वेस्टर से पराली काटी जा रहीं है, उन्हें रिडिजाइन किया जाएं। ये हार्वेस्टर पराली को डेढ़ फीट की जगह तीन-चार सेमी जितना ही छोड़ें जैसा कि हाथ से काटने पर छूटता है। तो फिर पराली को जलाने की जरूरत नहीं होगी। किसानों को सस्ते में ऐसी मशीनें दी जा सकती हैं जो पराली खेत से निकाल लें। यह सबसे आसान और प्रभावी उपाय है। लेकिन दुर्भाग्य से हम इसे छोड़कर अन्य तमाम जटिल समाधानों में लगे हुए हैं।
प्रदूषण रोकने का तात्कालिक समाधान किसी के पास नहीं है, इसलिए इसे नियंत्रित करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। स्त्रोतों का सस्ता विकल्प तैयार करना होगा।