Ajay Taluja - Chander Sagar Timber Products

There is no profit or loss by opening license in UP, there may be problem for some time, everything will be fine ofter wards.


The wood based industry is going through a rough patch. Investment of eight-ten crores is normal to establish a plywood unit. No one wants to invest money in this industry at present. That’s why the license in UP does not seem to have much impact. There is no doubt that a few industry will be set up. But there is no profit in it yet. If there was profit in the license of UP, then most of the big companies would have jumped there.

It doesn’t seem that UP could become a plywood hub like Yamunanagar. I think the industry may face problems for some time. Although, the cost of production is increasing at present. It is very important to protect yourself in such an environment. Strategy has to be made very carefully. At this time borrowing money from financer is also very risky. Excerpts from PlyInsight’s conversation with Ajay Taluja, a plywood manufacturer from Karnal.


Opening of license in UP can have effect on Yamuna Nagar?

No it will not. UP cannot compete with Yamunanagar. Not one but there are many reasons for this. Because there is a big market here. Financer are available. The production line here is huge. Perhaps there is no such line in China, or perhaps, in the whole of Asia. There is plenty of wood available here. Such a hub did not developed even in Punjab. Punjab, however, can become a hub for MDF. But it could not become a plywood hub. At present it is not possible to break the monopoly of Yamuna Nagar in plywood. That’s why UP cannot compete with Yamunanagar at the moment.

But there can be a shortage of timber in Yamunanagar.

Even this does not seem to be happening. A system works in the market. There is a line, the market moves on that line. Yamunanagar has got this advantage of plywood line. Today, even if we set up a unit in Shamli or the frontiers of UP, still the agro producer will come and sell his timber in Yamuna Nagar instead of Shamli or Saharanpur. Because here He knows that he will get a fair price for the timber; along with it he will also get prompt payment. There is a long chain of people who finance the purchase of timber here. It will take a long time to establish such a chain in UP.

A lot of plantation is also happening in Haryana. A lot of plantation has been done in Gharaunda and surrounding areas for 110 No. variety.

Certainly there will be sufficient supply of wood in the market in the coming days. That’s why there is no problem regarding wood.

Under these circumstances, what challenges do you see in the days to come?

Now plywood coming from Nepal to MP, Delhi and Bihar. The market condition of plywood is bad and worry some at present. There is recession all over the world. The Gabonese were marketing in Europe, but due to the closure of the unit there, they had to diverted all their goods and production in India. Because of this Gabon’s face veneer has become surplus here. Chinese are now making their veneer by reducing the thickness. There factories are outside SEZ, so they buys timber by making pool. That’s why there cost of timber is lesser than ours.

Peeling machine are establishing a lot in Indonesia too. Right now there is a decrease in gurjan due to the rains. The goods of Indonesia and of Burma are the same. But due to the liberal policy of Indonesia, the goods there are getting cheaper. Some big companies are now selling important goods in there own brand name here.

How to deal with such challenges?

Savings is the only way out. We have to reduce the cost of production. Borrowings has to be brought at least minimum. Because the kind of circumstances have become, it is not possible to adjust heavy interest. That’s why everyone has to move forward after thinking carefully



यूपी में लाइसेंस खुलने से न फायदा न ऩुकसान, कुछ समय की दिक्कत है, बाद में सब ठीक हो जाएगा

वुड बेस इंडस्ट्री बुरे हालत से गुजर रही है। आठ-दस करोड़ से नीचे कोई फैक्ट्री लगती नही है। फिलहाल इस इंडस्ट्री में पैसा कोई लगाना नहीं चाह रहा है। इसलिए यूपी में लाइसेंस से लगता नहीं कि ज्यादा असर पड़ेगा। इसमें दो राय नहीं कि कुछ इंडस्ट्री तो लगेगी ही। लेकिन इसमें अभी प्रॉफिट नहीं है। यदि यूपी के लाइसेंस में प्रॉफिट होता तो बड़ी कंपनी भी वहां कुद जाती।

लगता नहीं की यूपी यमुनानगर की तरह प्लाईवुड का हब बन पाए। मेरे ख्याल से इंडस्ट्री में कुछ समय के लिए दिक्कत आ सकती है। यूं भी इस वक्त उत्पादन लागत बढ़ रही है। ऐसे माहौल में खुद को बचाए रखना बेहद जरूरी है। सब कुछ देख कर ही रणनीति बनानी होगी। इस वक्त फाइनेंस से पैसा लेना भी बेहद रिस्की है। करनाल के प्लाईवुड निर्माता अजय तलुजा से प्लाईइनसाइट से बातचीत के मुख्य अंश ।


यूपी में लाइसेंस खुलने का यमुनानगर पर असर पड़ सकता है?

नहीं ऐसा नहीं है। यमुनानगर का मुकाबला यूपी नहीं कर सकता। इसकी एक नही कई वजह है। क्योंकि यहां बड़ी मंडी है। फाइनेंसर उपलब्ध है। यहां की प्रोडक्शन लाइन बहुत बड़ी है। शायद चाइना तो क्या पूरे एशिया में भी ऐसी लाइन न हो। यहां लकड़ी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाती है। इस तरह का हब तो पंजाब तक नहीं बन पाया। पंजाब हालांकि एमडीएफ का हब बन सकता है। लेकिन वह प्लाइवुड का हब नहीं बन पाया। प्लाईवुड में यमुनानगर के एकाधिकार को तोड़ना फिलहाल संभव नहीं है। इसलिए यूपी फिलहाल यमुनानगर का मुकाबला नहीं कर सकता।

लेकिन यमुनानगर में लकड़ी की दिक्कत तो आ सकती है।

ऐसा भी होता नजर नहीं आता। मार्केट में एक सिस्टम काम करता है। एक लाइन होती है, मार्केट उसी लाइन पर चलती है। यमुनानगर में प्लाइवुड की लाइन बनी हुई है। आज हम यदि शामली या यूपी के सीमांत में भी युनिट लगा लेते हैं, लेकिन फिर भी वहां का एग्रो उत्पादक अपनी लकड़ी शामली या सहारानपुर की बजाय यमुनानगर में ही आकर सेल करेगा। क्योंकि यहां उसे पता है, माल का उचित दाम मिलेगा, इसके साथ ही तुरंत भुगतान भी मिल जाएगा। यहां लकड़ी की खरीद को फाइनेंस करने वालों की बड़ी लंबी चेन है। इस तरह की चेन यूपी में बनने में अभी बहुत समय लगेगा।

हरियाणा में प्लांटेशन भी खूब हो रही है। घरौंडा और आस पास के क्षेत्रों में 110 नंबर की प्लांटेशन काफी प्लांटेशन हुई है। निश्चित ही आने वाले दिनों में मार्केट में लकड़ी की पर्याप्त सप्लाई होगी। इसलिए लकड़ी को लेकर ऐसी कोई समस्या फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है।

इन परिस्थितियों में आने वाले दिनों में क्या चैलेंज देखते है?

अब नेपाल से डच्, दिल्ली और बिहार में माल आ रहा है। प्लाइवुड के बाजार की स्थिति इस वक्त खराब और चिंता जनक है। पूरे विश्व में मंदी हैं। गेबोन वाले यूरोप में मार्केटींग कर रहे थे, लेकिन वहां युनिट बंद होने से, उन्हें यहां अपना सारा माल और उत्पादन यहां खपाना पड़ गया। इस वजह से गेबोन का फेस विनीयर यहां सरप्लस हो गया। चाइना वाले जो वहां काम कर रहे हैं, अब थिकनेस डाउन कर अपना माल बना रहे हैं। उनकी फैक्ट्रियां एसईजेड से बाहर है, वह पुल बना कर टिंबर खरीदते हैं। जिससे उनकी लकड़ी की लागत भी अपेक्षाकृत कम है।

इंडोनेशिया में भी पीलिंग बहुत ज्यादा लग रही है। अभी बरसात की वजह से गर्जन की कमी हो रही है। इंडोनेशिया का माल और बर्मा का माल एक जैसा है। लेकिन इंडोनेशिया की लिबरल पॉलिसी होने की वजह से वहां का माल सस्ता पड़ रहा है। कुछ बड़ी कंपनियां तो अब वहां से माल खरीद लेते हैं, यहां अपना मार्का लगा कर बेच देते हैं।

इस तरह के चैलेंज से कैसे निपटा जा सकता है?

बचत ही एकमात्र तरीका है। हमें उत्पादन लागत कम करनी होगी। फाइनेंस कम से कम कराना होगा। क्योंकि जिस तरह की परिस्थितियां बन गई हैं, इसमें भारी ब्याज देना संभव नहीं है। इसलिए सोच समझ कर ही सभी को आगे बढ़ना होगा।

Natural Natural