Appropriate Action and Penalties Should be Imposed
- दिसम्बर 22, 2020
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Appropriate Action and Penalties Should be Imposed Against Those Who Commit Financial Offences
Because in the present system, minor action is taken against the guilty, due to this, the confidence of investors is decreasing and they are also facing economic losses.
The Babylonian king Hammurabi (1792 to 1750 AD) understood that not only should the rules of business be strict, but also the system that the rules that were made should be followed. That time a provision was made to pay penalty who broke these rules. So that fraud can be eliminated in economic matters. Keeping this thought, the Code of Hammurabi made the rules for commercial transactions. It also provided that if anyone breaks the criteria, they should get appropriate punishment. They should also be fined. Because Hammurabi knew that only order and rules were not going to work. People should be made accountable for this. If someone breaks the rules, he has to pay the price.
Even today, the Hammurabi Code is as important in economic matters as it was then. Experts believes that the Hammurabi Code is implemented today, then many types of economic crime can be stopped. Because in financial markets, scams, false promise and illegal activities have become common. Retail consumers are most affected by this. He loses a large part of his hard-earned money due to misleading information and illegal activities. Although the rules are stricter after every event. But even then, such incidents are increasing rather than decreasing. Policymakers say they can only make rules. But there is no guarantee that there will be no financial mess after framing the rules.
An example of this can be seen in the insolvency process of Yes Bank. The Reserve Bank of India (RBI) approved to write off AT1 bonds worth Rs 8,415 crore. The depositor also had big stack in it. The bank’s relationship managers (RMs) had misquoted these depositors and got their hard earned money put into these defaulted bonds.
When the investors lost the money and dragged the bank to court demanding damages, RBI said that the risk of these bonds is known to everyone. But if Hammurabi’s system at that time was still applicable today, then the relationship manager of Yes Bank would have been required to pay a fine.
But even after this incident, AT1 bonds are still being described as safe FDs. On 5 October, the Securities and Exchange Board of India (SEBI) took steps to ensure that the availability of AT1 bonds is reduced for retail investors. Bank bonds can be issued only on an electronic platform and only to institutional investors, whose minimum allocation size and business lot size has been fixed at Rs 1 crore. This led Sebi to admit that there were misleading sales of Yes Bank’s AT1 bonds, but the culprits of the misleading sales scam escaped.
Experts say that in financial matters, there are rules to prevent cases of misleading people by giving scams and misleading information, but this rule is not so strict. If someone is caught doing so, he has to pay a nominal price. This is the reason why there is a demand again and again that in economic scams. There should not only be a provision for severe punishment on the mess, but the party who suffered the loss should also be compensated from the mess. Because it is happening now that not only the money is lost by the aggrieved side, but they have to go round the police, court for justice. If seen in this way, then they are cheated, and they also have to spend money to get justice. Whereas such a system should be in place to ensure that not only fair and strict action is taken against the guilty, not only punishment, he should be fined also. Only then the disturbances in economic matters can be stopped. Today this system is much needed. Because the economic seams are increasing day by day. Therefore, policy makers should take tough steps in this regard.
आर्थिक गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ उचित कार्यवाही और जुर्माना लगाया जाना सुनिश्चित होना चाहिए
क्योंकि मौजूदा व्यवस्था में दोषी पक्ष के खिलाफ मामूली कार्यवाही होती है, इस वजह से निवेशकों का भरोसा कम हो रहा है और उन्हें आर्थिक नुक्सान भी उठाना पड़ रहा है।
बेबीलोनियाई राजा हम्मूराबी (1792 से 1750 ई. पूर्व) समझ लिया था कि व्यापार को लेकर न सिर्फ नियम कड़े होने चाहिए, बल्कि यह भी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो नियम बनाए गए इनका पालन भी होना चाहिए। यहीं वजह थी कि उस वक्त इन नियमों को तोड़ने वालों पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया था। ताकि आर्थिक मामलों में धोखाधड़ी खत्म की जा सकें। इसी सोच को सामने रख कर हम्मूराबी की संहिता ने वाणिज्यिक लेनदेन के नियम बनाए। यह भी प्रावधन किया कि मापदंड को यदि किसी ने भी तोड़ा तो उन्हें उचित सजा मिलनी चाहिए। उन पर जुर्माना भी लगना चाहिए। क्योंकि हम्मूराबी जानते थे कि आदेश और नियम से बात नहीं बनने वाली। इसके लिए लोगों को जवाबदेह सुनिश्चित होनी चाहिए। यदि कोई नियम को तोड़ते हैं तो उसे इसकी कीमत अदा करनी होगी।
आज भी हम्मूराबी संहिता आर्थिक मामलों में इतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि उस वक्त थी। विशेषज्ञ तो यहां तक कहते है कि यदि हम्मूराबी संहिता को यदि आज भी लागू कर दिया जाए तो कई तरह के आर्थिक अपराध को रोका जा सकता है। क्योंकि वित्तीय बाजारों में घोटाले,गलत जानकारी देकर बिक्री करना और अवैध गतिविधियां आम बात हो गयी है। इसमें सबसे ज्यादा प्रभाव खुदरा ग्राहकों को पड़ता है। वह भ्रामक जानकारी और अवैध गतिविधियों की वजह से अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा गंवा देते हैं। हालांकि हर घटना के बाद नियम कड़े होते हैं। पर इसके बाद भी ऐसी घटनाएं कम होने की बजाय बढ़ रही है। नीति निर्धारकों का कहना है कि वह नियम ही बना सकते हैं। लेकिन इस बात की गारंटी नहीं कि नियम बनाने के बाद वित्तीय गड़बड़ नहीं होगी।
इसका एक उदाहरण येस बैंक के दिवालिया प्रक्रिया में देख सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 8,415 करोड़ रुपये के एटी1 बॉन्डों को बट्टे खाते में डालने की मंजूरी दे दी। इसमें बड़ा पैसा जमाकर्ता का भी था। इन जमाकर्ताओं को बैंक के रिलेशनशिप मैनेजरों (आरएम) ने गलत जानकारी देकर उनकी कमायी को इन बांड में लगवा दिया था।
जब निवेशकों ने पूरा पैसा गंवा दिया और हर्जाने की मांग करते हुए बैंक को अदालत में घसीटा तो आरबीआई ने कहा कि इन बॉन्डों में जोखिम की जानकारी तो सभी को पता है। लेकिन यदि हम्मूराबी की उस वक्त की व्यवस्था आज भी लागू होती तो येस बैंक के उन रिलेशनशिप मैनेजर से जुर्माना जरूर वसूला जाता।
लेकिन इस वाकये के बाद आज भी एटी1 बॉन्डों की सुरक्षित एफडी की तरह बताया जा रहा है। 5 अक्टूबर को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया कि खुदरा निवेशकों के लिए एटी1 बॉन्डों की उपलब्धता कम हो। बैंक बॉन्ड केवल एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर और केवल संस्थागत निवेशकों को ही जारी कर सकते हैं, जिनका न्यूनतम आवंटन आकार और कारोबारी लॉट आकार एक करोड़ रुपये तय किया गया। इससे सेबी ने यह स्वीकार किया कि येस बैंक के एटी1 बॉन्डों की भ्रामक बिक्री हुई है, लेकिन भ्रामक बिक्री घोटाले के गुनहगार बचकर निकल गए।
जानकारों का कहना है कि आर्थिक मामलों में घोटाले और भ्रामक जानकारी देकर लोगों का पैसा गलत जगह निवेश कराने या फंसाने के मामलों को रोकने के नियम तो हैं, लेकिन यह नियम इतने कड़े नहीं है। यदि कोई ऐसा करता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे इसकी मामूली कीमत ही चुकानी पड़ती है। यहीं वजह है कि बार बार यह मांग उठ रही है कि आर्थिक मामलों में की जाने वाली गड़बड़ी पर न सिर्फ सख्त सजा का प्रावधान हो, बल्कि जिस पक्ष को नुकसान हुआ, इसकी भरपायी भी गड़बड़ करने वाले से वसूल की जानी चाहिए। क्योंकि अभी यह हो रहा है कि पीड़ित पक्ष का न सिर्फ पैसे का नुकसान होता है, बल्कि उन्हें इंसाफ के लिए पुलिस, अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं। इस तरह से देखा जाए तो एक तो उन्हें ठग लिया जाता है, दूसरा उन्हें न्याय पाने के लिए भी पैसा खर्च करना पड़ता है। जबकि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो यह सुनिश्चित करें कि दोषी पक्ष के खिलाफ न सिर्फ उचित व सख्त कार्यवाही हो, बल्कि उसे सजा तो मिले, उससे जुर्माना भी वसूला जाना चाहिए। तभी आर्थिक मामलों में होने वाली गड़बड़ी को रोका जा सकता है। आज इस सिस्टम की बहुत आवश्यकता है। क्योंकि आर्थिक गड़बड़ी दिनप्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसलिए इस बारे में नीति निर्धारकों को कड़े कदम उठाने चाहिए।