इस बार के लोकसभा चुनाव परिणामों में मतदाताओं ने स्पष्ट संदेश दिया है कि हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और सामाजिक कल्याण की योजना पर्याप्त नहीं हैं। इंस्टाग्राम, फेसबुक और मनोरंजन धारावाहिकों से जीवनशैली और सोच के तरीके में बदलाव आया है। इसलिए अब उन्हें और ज्यादा चाहिए, न कि न्यूनतम।

किसान अपनी उपज के लिए अधिक मूल्य चाहते हैं, युवा रोजगार चाहते हैं, माताएं अपने बच्चों के लिए शिक्षा चाहती हैं, और वेतनभोगी अधिक वेतन की उम्मीद करते हैं। क्या कोई राजनीतिक दल इन सभी इच्छाओं को पूरा कर सकता है?

जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने कई वादे किए। उनमें से एक यह था कि किसानों को उत्पादन की लागत का आधा से अधिक लाभ के रूप में मिलेगा। 2016 में, उन्होंने कुछ और भी लुभावनी घोषणाएं की, कि किसानों की आय छह साल में दोगुनी हो जाएगी।

दोहरे अंकों में मुद्रास्फीति जिसका प्रभाव स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा पर पड़ता है, यह हर नागरिक को प्रभावित करती है।

जबकि आधिकारिक मुद्रास्फीति दर 5 प्रतिशत से कम है।

चिंता यह है कि समाज का कुलीन वर्ग अब इस बात से चिंतित है कि पांच किलो राशन व अन्य सुविधाओं से भी जो जनता खुश नहीं हो रही है, वह क्या कर सकती है।

जानकारों का मानना है कि इसका एकमात्र उत्तर मौलिक परिवर्तन है, अधिक कल्याणकारी योजनाएं चलाना इसका समाधान नहीं।

गरीब को गरीबी से निकालने का एक तरीका यह है कि प्रत्येक गरीब को रोजगार दिया जाए। क्योंकि रोजगार ही टिकाउ है,जिससे गरीब को गरीबी से निकाला जा सकता है। ऐसे में अब वक्त आ गया कि सरकार को रोजगार के अवसर पैदा करने की ओर ध्यान देना चाहिए, न कि इसके विपरीत कल्याणकारी योजनाओं पर रकम खर्च की जाए।

दस साल पहले जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे, तो उम्मीद थी कि वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के तहत पनप रहे पुंजीवाद और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को खत्म कर देंगे और इसकी जगह एक नियम-आधारित शासन व्यवस्था लाएंगे, जो करों और लालफीताशाही को कम करेगी और उद्यमशीलता को बढ़ावा देगी।

इसके बजाय, ‘‘व्यापार करने‘‘ का माहौल अभी भी नाकारात्क बना हुआ है, कर-वसूली अभी भी व्याप्त है, राज्य और जिला स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ा है, उच्च कराधान के साथ तेल की कीमतें अभी भी अत्यधिक हैं, और जारी लालफीताशाही ने उद्यम प्रणाली को पहले की तरह ही दबा कर रखा है। 100 स्मार्ट शहरों पर बहुत कम प्रगति हुई है, जबकि मौजूदा शहर अपनी सीमा से बाहर हैं, जिससे लोगों और व्यवसायों के अवसर और कम हो रहे हैं।

मौजूदा परिस्थितियां जिसमें राजनीति अधिक होने और आर्थिक सुधार पर दबाब बने रहने की संभावनाएं हैं, क्या कोई व्यापार जगत के लिए बेहतर उम्मीद कर सकते है? या हम बस वैसे ही आगे बढ़ते रहेंगे जैसे हमने अतीत में किया है?


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