वश्व व्यापार संगठन (डब्लयूटीओ) के अबूधाबी में 13वां मंत्री-स्तरीय सम्मेलन (एमसी13) से जो निष्कर्ष सामने आया है उससे एक बात साफ तौर पर समझ में आ रही है कि अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का झुकाव अब अपनी राष्ट्रीय औद्योगिक रणनीतियों की तरफ बढ़ रहा है।

मंत्री-स्तरीय सम्मेलन में पांच दिन तक डब्ल्यूटीओ के सदस्य देशों ने ई-कॉमर्स, सेवा, कृषि, मत्स्य पालन, निवेश और विवाद होने पर उसके समाधान पर चर्चा की।

ई-कॉमर्सः वर्ष 1998 में डब्ल्यूटीओ के सदस्य उभरते डिजिटल बाजार को प्रोत्साहित करने के लिए डिजिटल क्षेत्र में हो रही प्रगति पर आयात शुल्क नहीं लगाने पर सहमत हुए थे। तब से प्रत्येक दो वर्षों के लिए इस समझौते को आगे बढ़ाया जा रहा है। विकसित देश डिजिटल क्षेत्र की अपनी कंपनियों-गूगल, एमेजॉन, फेसबुक, नेटफ्लिकस- को लाभ पहुंचाने के लिए डिजिटल उत्पादों पर आयात शुल्क नहीं लगाने के पक्ष में रहें हैं। परंतु, इंडोनेशिया, भारत और दक्षिण अफ्रीका जैसे विकासशील देशों का तर्क है कि चूंकि, कारोबार अब ऑनलाइन माध्यम से भी किए जाने लगे हैं, इसलिए उन्हें राजस्व नुकसान हो रहा है।

सेवाः सेवाओं पर विभिन्न देशों के अलग-अलग नियम और व्यवस्थाएं अंतरराष्ट्रीय कारोबार के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है। विकसित देशों ने सेवाओं में व्यापार सहज एवं सरल बनाने के लिए व्यापक नियम बना रखे हैं।

डब्ल्यूटीओ कानून में सेवाओं पर स्थानीय नियम लागू करने के नए बिंदु जोड़ने का एक तरीका हो सकता है। इन्हें संयुक्त वक्तव्य पहल (ज्वाईंट स्टेटमेंट इनीसीएटिव) के नाम से जाना जाता है। जो जेएसआई शामिल करने पर विचार चल रहा है उनमें ई-कॉमर्स, निवेश प्रोत्साहन, सूक्ष्म, लघु एवं व्यापार मझोले उद्यम (एमएसएमई) और व्यापार शामिल हैं। मगर भारत सहित कई देश जेएसआई के खिलाफ हैं। भारत का तर्क है कि यह रवैया केवल कुछ ही देशों के हितों पर ध्यान देता है।

कृषिः डब्ल्यूटीओ में चर्चा के दौरान भारत की मुख्य चिंता चावल एवं गेहूं जैसी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन कार्यक्रम (एमएसपी) के लिए स्थायी समाधान की थी। डब्ल्यूटीओ के कृषि पर समझौता (एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर ओए) के अनुसार भारत का एमएसपी कार्यक्रम 10 प्रतिशत की स्वीकृत सब्सिडी की गणना करने की एओए का तरीका ठीक नहीं है। यह पुराना है, जिसमें कई सारी खामियां भी है। उदाहरण के लिए अगर भारत चावल के लिए 4 रुपये प्रति किलोग्राम सब्सिडी तय करता है तब मौजूदा बाजार मूल्य 20 रुपये प्रति किलोग्राम रहने की स्थिति में भी यह सब्सिडी की स्वीकृत सीमा से अधिक हो जाती है। इसका कारण यह है कि एओए की सब्सिडी की गणना 1986-88 के बीच की कीमतों पर आधारित है। जिससे किसी भी एमएसपी कार्यक्रम के लिए इसका पालन करना आसान नहीं रह जाता है।

संयुक्त राष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार विकासशील देशों से अनाज का आयात अगले 30 वर्ष में तीन गुना हो सकता है।

भारत कृषि को समर्थन देने वाली योजनाएं डब्ल्यूटीओ सम्मत उत्पादन सीमित करने वाले कार्यक्रमों की तरफ ले जा सकती है।

डब्ल्यूटीओ में इन कार्यक्रमों को ब्लू बॉक्स कहा जाता है। चीन ने भी ऐसा ही किया हैं हम धनी देशों से यह उम्मीद नहीें कर सकते कि वे दुनिया की कुल आबादी के छठे हिस्से के प्रति संवेदनशीलता दिखाएंगे।  

मत्स्य पालनः कृषि की तरह ही मत्स्य पालन से जुड़े विषय भी टकराव का कारण बन रहें हैं। यूरोपीय संघ (ईयू) अफ्रीका महादेशों के तटों से दूर गहरे समुद्र में मछलियां पकड़ने के लिए ऊंची सब्सिडी जारी रखना चाहता है, जबकि छोटे मछुआरों के लिए सब्सिडी पर कड़ी शर्तें लादना चाहता है। भारत ने यह भी कहा है कि जहां तक विकासशील देशों की बात है तो यह सब्सिडी समाप्त करने के लिए उन्हें 25 वर्ष का समय दिया जाना चाहिए।

विवाद निपटान सुधारः डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान प्रणाली काफी कमजोर हो गई है। यह प्रणाली नियम-कायदे लागू करने एवं व्यापार संबंधी विवाद दूर करने के लिए जरूरी है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अमेरिका 2017 से डब्ल्यूटीओ की अपील निकाय में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की राह में रोड़ा अटक रहा है। अगर यह निकाय सक्रिय रहता तो अमेरिका की महंगाई नियंत्रण अधिनियम जैसी नीतियों को डब्ल्यूटीओ में चुनौती दी जा सकती थी।

एक समय था जब डब्ल्यूटीओ का विशेष महत्व हुआ करता था मगर अब इसकी प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। जो कि अपने पुराने वैभवशाली समय का छाया मात्र ही रह गया है।


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