Do plywood is challenged from MDF today?
Present situation of the plywood industry is not new. It keeps on occurring repeatedly after regular intervals. For example earlier from 1950 to 1990 plywood was produced in the North East from the forest Timber. Suddenly forest Timber was banned. Which was replaced by agro forestry. Up to 2020 Timber from agro forestry was used all over India for plywood. Now MDF and particle boards have started attracting consumers. But MDF is not a problem for plywood. The real problem is that younger plantations of timber can be used for manufacture of MDF, whereas plantations of fixed or over age are used for the plywood industry. Therefore, fulfilling the demand of timber for the plywood industry is becoming a challenge. However MDF is still consumed on the large level of businesses. Use of MDF in villages and small towns is very thin. Still there is the trend to call the carpenters in the home for making interiors and furniture. Who have long and successful experience with plywood. Therefore there will always be a lot of scope in the plywood industry, in spite of manufacturing challenges big or small from time to time.
But still problems are visible in the plywood industry nowadays.
There is no doubt regarding decrease in demand. MDF and HDHMR in particular, has taken some share from plywood. Due to decrease in demand, production of plywood has reduced. Many of the units are not working in their full capacity. But the greater problem is the availability of Timber. Manufacturers tend to use cheaper Timber as an alternative to regular ones. Apart from this, at regional levels smaller factories are coming up. This is creating two problems. One is that they are supplying low quality products into the market. Secondly, they do not follow rules and regulations. Conclusively, challenges from outside are less than inside.
What kind of differences is there by Opening of factories at regional levels?
The increase in the timber rates in North India affects the whole country in one way or the other. Availability of timber in different areas has changed the ways of business. Like supply of core from one area got stopped and started getting its supply from new areas. Logistics is creating an important difference. On one side getting the raw materials and on the other side supplying the finished goods, on both sides the cost of goods distribution is making a lot of difference.
Manufacturers have come up in regional areas of many states like Bihar, West Bengal, Odisha, etc. Due to small units their control on quality is poor. Apart from it, due to the leck of capacity to hold stocks, local distributors dominate their rates. Therefore at lower levels, dominance of regional manufacturers is increasing.
Is there no place for quality produce?
Changes occur in every area with time. Consumers for quality produce are also there perpendicularly. We compete with big brands, where we get benefit from our personal relationship or our distributors. Big cities are dominated by big brands and they have an easier reach there. Apart from this growing number of OEM is increasing competition there. This is the reason for our complete focus on selected cities. Our brand is well recognised in all these areas and is giving encouraging results.
Is it that Cheaper goods from one state is a problem for other states?
Actually the produce in every state has its own specialty which is based on the raw material available locally. Every area has Timber of a particular type and qualities, accordingly they are priced. As per the quality or defects, and price of the produce, their market takes the shape. This factor does not create problems for traders or manufacturers in other areas. But if the manufacturer or dealers sells the product by giving wrong information about the timber used in the plywood then it’s cheating to the consumers. Traders and consumers are unable to recognise the wood used in first look. Also the use of substandard, defective Timber in plywood silently, by the manufacturer, instead of regular traditional Timber, without declaring it, is also a type of cheating. It is possible that manufacturers have to do this to synchronize with the market rates. I just believe that consumers must be aware of the reality so that they come to know the reasons and differences for cheaper and quality products.

Possibility of lowering of timber prices
At present due to lower demand, production is about 40 to 50%. In spite of this the rate of timber is touching the peak. If the demand for plywood increases and manufacturers opt to increase production then will it not raise the demand for Timber further? In the last one year plantations have increased very fast but will it continue regularly? How far is it justified that the manufacturers should depend only on farmers?
Collective efforts by the manufacturer association in this matter can play a major role. Therefore it is extremely necessary to strengthen our manufacturer associations.
What are your plans regarding laminate and Veneers?
Apart from plywood we have added laminate and veneer in our distribution. we are providing only the premium range. I would especially like to mention that we charge the price of the folders given to the dealers. This is later compensated depending on the sales. Also, our dealers have only one sheet each of all the shades and types. Thus their investment is minimal. We have achieved expertise and streamlined the supply of laminates and Veneers to the distributors as per their demand. Our primary area of business is different types of our plywood products. But our dealers get additional benefits due to the addition of these two products. Suppliers of all three products under one roof are very limited in India. Our team is working very hard to become one of the such top 10 suppliers in India, at the earliest.



चुनौती बाहर से कम, अंदर से अधिक है


मौजूदा समय में प्लाईवुड की चुनौती क्या एमडीएफ से है?
जो स्थिति इन दिनों प्लाईवुड में है, वह नयी नहीं है। इस तरह की स्थिति एक निश्चित अंतराल के बाद आती रहती है। उदाहरण के लिए पहले 1950 से 90 तक नार्थ ईस्ट में फॉरेस्ट की लकड़ी से प्लाईवुड तैयार होती रही। अचानक जंगलों की लकड़ी पर रोक लग गयी। इसकी जगह एग्रोफारेस्ट्री ने ले ली। 2020 तक संपूर्ण भारत में एग्रोफोरेस्ट्री से प्लाईवुड बनी। अब एमडीएफ और पार्टिकल बोर्ड ने ग्राहकों को आकर्षित करना शुरू कर दिया। लेकिन वास्तव में प्लाईवुड को एम डी एफ से समस्या नहीं है। असली समस्या है, एमडीएफ में कम उम्र के पेड़ की लकड़ी भी इस्तेमाल हो सकती है, जबकि प्लाइवुड में एक निश्चित उम्र के पेड़ की लकड़ी ही प्रयोग में आती है। जिसकी आपूर्त्ति एक चुनौती बनती जा रही है। हालांकि एमडीएफ अभी भी बड़े व्यवसायिक स्तर पर ही प्रयोग हो रहा है। छोटे गांव व कस्बों में एमडीएफ ज्यादा नहीं चल रहा है। वहां अभी भी घर पर मिस्त्री बुला कर काम कराने की परंपरा है। जिनका प्लाइउड में काम करने का लंबा और सफल अनुभव है। इसलिए प्लाइवुड का भविश्य हमेशा ही अच्छा रहेगा। समय-समय पर उत्पादन में भले ही थोड़ी बहुत दिक्कत आती रहे।
फिर भी प्लाइवुड में इन दिनों समस्या तो नजर आ ही रही है
इसमें दो राय नहीं कि बाजार में मांग कम है। एमडीएफ और खास कर एचडीएमआर ने प्लाईवुड की कुछ जगह ली है। मांग कम होने की वजह से प्लाईवुड का उत्पादन कम हो रहा है। ज्यादातर यूनिटें पुरी क्षमता पर चल नहीं पा रही हैं। लेकिन ज्यादा दिक्कत कच्चे माल (लकड़ी) की आ रही है। उत्पादक लकड़ी के विकल्प में सस्ती लकड़ी का भी प्रयोग कर रहे हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर छोटी फैक्ट्रियां खुल रही हैं। यह दो तरह से समस्या पैदा कर रही है। एक तो कम गुणवत्ता का माल बाजार में उतार रही हैं। दूसरा यह नियम और कायदे नहीं मानते। अर्थात चुनौती बाहर से कम, अंदर से अधिक है।
क्षेत्रीय स्तर पर जो यूनिट खुल रही है, इससे क्या फर्क पड़ा
उत्तरी भारत में लकड़ी के रेट बढ़ने से, किसी न किसी रूप में, संपूर्ण भारत में इसका असर पड़ा है। क्षेत्र विशेष में उपलब्ध लकड़ी ने, व्यापार का तरीका बदल दिया है। जहां पहले किसी एक जगह से कोर आती थी अब वहां से बंद होकर किसी और क्षेत्र से आनी शुरू हो गई। लाजिस्टिक से व्यापार में महत्वपूर्ण फर्क पड़ रहा है। एक और कच्चा माल मंगाने में ,तो दुसरी ओर तैयार माल भेजने में, दोनों ही तरफ इसकी लागत माल वितरण में काफी अंतर पैदा कर रही है।
बिहार, प बंगाल, उड़ीसा आदि सभी प्रदेशों में क्षेत्रिय स्तर पर बड़े पैमाने पर कारखाने लग गए हैं। आकार छोटा होने के कारण, गुणवत्ता पर इनका नियंत्रण कम रहता है। इसके अलावा माल को रोक पाने में अक्षमता के कारण, उनकी कीमत निर्धारण में स्थानीय वितरकों का दबाव भी रहता है। निचले स्तर के माल पर, इसीलिए क्षेत्रीय उत्पादनकत्र्ताओं का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है।
क्वालिटी उत्पाद की क्या कोई जगह नही है?
समय के साथ थोड़ा परिवर्तन हर क्षेत्र में आता है। अच्छे उत्पाद के ग्राहक भी समानांतर रूप से मौजुद है। हमारी प्रतिस्पर्धा बड़े ब्रांड के साथ होती है, जहां हम या हमारे वितरको के व्यक्तिगत संबंध का हमें कुछ फायदा मिलता है। मेट्रों शहरों में बड़े ब्रांड का आधिपत्य रहता है और उनकी पहुंच भी आसान होती है। इसके अलावा वहां व्म्ड की बढ़ती संख्या भी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे रही है। इसलिए हमने जिन शहरों को चुना है, वहां अपना पूरा ध्यान केंद्रित करते हैं। इन सभी जगह में हमारे ब्रांड की खास पहचान बनी है और उत्साहवर्द्धक नतीजें आ रहें हैं।
क्या एक प्रदेश का सस्ता माल दुसरे प्रदेश के लिए एक समस्या है?
वैसे तो हर प्रदेश के माल की अपनी खासियत है जो वहां के कच्चे माल की उपलब्धता से सुनिष्चित होती है। हर क्षेत्र की लकड़ी का अपना एक गुण और तदनुसार उसकी कीमत होती है। उसके गुण दोष और कीमत के हिसाब से उसके बाजार का आकार भी तय होता है। इससे किसी अन्य क्षेत्र के व्यापारी या उत्पादक को कोई दिक्कत नहीं होती है। लेकिन अगर उसमें इस्तेमाल किए गए लकड़ी को किसी अन्य लकड़ी के रूप में बाजार में प्रस्तुत किया जाए तो यह उपभोक्ताओं के साथ बेईमानी है। व्यापारी या उपभोक्ता पहली नजर में इसकी पहचान नहीं कर पाता। इसके अलावा पारंपरिक लकड़ी की बजाय अन्य दोषपूर्ण सस्ती लकड़ी का इस्तेमाल चूपचाप करते चले जाना भी इसी तरह का अपराध है। हो सकता है बाजार की कीमतों में तालमेल बैठाने के लिए उत्पादकों को यह करना पड़े, मेरा सिर्फ यह मानना है कि उपभोक्ताओं को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए, ताकि उसे भी सस्ते और महंगे माल में फर्क के कारण का पता हो।
लकड़ी की कीमतों में नरमी की संभावना
अभी बाजार में मांग की कमी की वजह से उत्पादन भी 40-50 प्रतिशत हो रहा है। इसके बावजुद लकड़ी की कीमतें अपने उच्चतम स्तर को छू रही हैं। अगर बाजार की मांग में सुधार आया और उत्पादन बढ़ाने को सभी उत्सुक हुए, तो क्या लकड़ी की मांग फिर और बढ़ नही जाएगी। पिछले़ एक साल में अगर कुछ तेजी से पेड़ लग भी गए तो भी क्या यह नियमित रह पाएगा। निर्माताओं का सिर्फ किसानों के भरोसे रहना कहां तक उचित है।
एसोसिएशन द्वारा किए गए सामूहिक प्रयास की इसमें बहुत अधिक भूमिका हो सकती है। इसलिए भी हमें अपनी संस्थाओं को मजबुत करना बहुत आवश्यक है।
लेमिनेट और वीनीयर में क्या योजना है?
प्लाइउड के अलावा हमने लेमिनेट ओर वीनीयर को अपने वितरण में जोड़ा है। हम इसमें प्रीमियम रेंज में ही माल उपलब्ध करवा रहें हैं। विशेष उपलब्धि में यह बताना चाहूंगा कि हम अपने वितरकों से अपने फोल्डर की कीमत वसुलते हैं, जिसे उनकी बिक्री के आधार पर उसकी भारपाई कर दी जाती है। इसके अलावा हमारे वितरकों के पास नमुनों के तौर पर ईच्छीत माल की एक एक सीट ही होती है। जिससे उनकी लागत न्यूनतम रह जाती है। वितरको को उनकी जरूरत के अनुसार लेमिनेट और वीनीयर की आपूर्ति समय बद्ध और सुचारू तरिके से करने में हमने सफलता हासिल की है। हमारा प्रमुख क्षेत्र अपना मुख्य व्यवसाय प्लाईउड के विभिन्न उत्पाद ही हैं। लेकिन इन दोनों उत्पादों से हमारे वितरकों को अतिरिक्त लाभ मिल जाता है। एक छत के निचे तीनों तरह के माल देने वाले पूरे भारत में गिने चुने हैं। हमारी टीम की पूरी कोशिश है कि जल्दि ही हम ऐसे दस प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में होगें।

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