पिछले पच्चीस वर्षों में, किसानों और उद्योगपत्तियों से मेरे सानिध्य ने कृषि फसलों के विविधीकरण में बाधा डालने वाली जटिलताओं के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान की है, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे हरित क्रांति से प्रभावित क्षेत्रों में। इस क्रांति का असर, मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी और भूजल स्तर में गिरावट के कारण, गेहूं और धान जैसी प्रमुख फसलों की घटती उत्पादकता के रूप में सामने आया है।

इसके अलावा, धान की फसल के डंठल को जलाने से हर साल दीपावली के दौरान वायु प्रदूषण बढ़ जाता है, खासकर दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में इन चुनौतियों के बावजूद, ये राज्य अतिरिक्त खाद्यान्न पैदा करने में लगे हुए हैं, जिससे भंडारण की समस्याएँ पैदा हो रही हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट ने वैकल्पिक फसलों में विविधता लाने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला है। तालिका में प्रस्तुत आंकड़े इस बात पर जोर देते हैं कि धान की खेती से दूरी बनी नहीं है, इसका मुख्य कारण वैकल्पिक खरीफ फसलों की तुलना में धान की सुनिश्चित खरीद और बेहतर रिटर्न है।

वैकल्पिक फसलों में रुचि को प्रोत्साहित करने के लिए, उनकी उत्पादकता और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दोनों में वृद्धि करके, उन्हें धान की खेती की लाभप्रदता के बराबर लाकर उनकी आमदनी को बढ़ाने की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।

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इसके अलावा, सरकार को वैकल्पिक फसलों की सुनिश्चित खरीद का आश्वासन देना चाहिए या हरियाणा सरकार द्वारा लागू की गई सफल ‘‘भावांतर भरपाई योजना‘‘ से प्रेरणा लेते हुए, आपाधापी में की हुई बिक्री के दौरान हुए नुकसान के लिए किसानों को मुआवजा देना चाहिए। हरियाणा राज्य सरकार चौदह कृषि फसलों की निर्धारित दर और किसानों को मिलने वाली दर के अंतर का भुगतान करती है।

हरियाणा सरकार द्वारा हाल ही ‘‘मेरा पानी मेरी विरासत‘‘ योजना का विस्तार, करके इसमें वृक्ष फसलों को शामिल करना एक सकारात्मक कदम है। जिसमें धान की खेती को छोड़कर वृक्ष फसलों को अपनाने पर 7000 रुपये प्रति एकड़ का वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाता है।

इसके अलावा, हरियाणा राज्य की चौदह फसलों के लिए मौजूदा एमएसपी योजना में वृक्ष फसलों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है। उत्साह वर्द्धन के लिए अन्य राज्य सरकारों को भी पारंपरिक रूप से कृषि फसलों के लिए आरक्षित प्रोत्साहन और लाभों को वृक्ष फसलों तक बढ़ाने की पहल करनी चाहिए।

पंचायत/सामुदायिक भूमि के साथ-साथ अन्य उपलब्ध भूमि पर वृक्षारोपण करने के लिए वृक्षारोपण कंपनियों/उद्यमियों को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा सकती है।

बिचौलियों को खत्म करने के लिए लकड़ी आधारित इकाइयों को किसानों से सीधे खेत की लकड़ी खरीदने की अनुमति देने के लिए विपणन मार्केटिंग अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के आज्ञा पत्र के अनुसार, राज्य कृषि विभाग को कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से, वृक्ष फसलों के अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) से जोड़ सकते हैं।

राज्यों में कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) के माध्यम से वृक्ष फसलों के विस्तार में उनकी लाभप्रदता में सुधार के लिए सक्रिय रूप से शामिल हो सकता है।

भूमि किरायेदारी अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है ताकि वृक्षारोपण कंपनियां अपनी वृक्षारोपण परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए, पर्याप्त कृषि भूमि खरीद/पट्टे पर ले सकें।

कृषि वानिकी विस्तार और लकड़ी-आधारित उद्योगों के विकास के बीच सहजीवी संबंध को पहचानना, लकड़ी आधारित उद्योग की वृद्धि और आकार को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

छोटे आकार की लकड़ी का उपयोग करने वाले मध्यम-घनत्व फाइबर (एमडीएफ) उद्योग के उद्भव से, पेड़ फसलों की कटाई की अवधि कम होने से इसकी स्वीकृति को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।

विकास को और अधिक प्रोत्साहित करने के लिए, घरेलू और विदेशी दोनों तरह की बड़ी लकड़ी-आधारित कंपनियों को बढ़ावा देना, इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।

पारंपरिक लकड़ी केंद्रों का विस्तार और कृषि वानिकी को लकड़ी आधारित उद्योगों के साथ जोड़कर एकीकृत मॉडल स्थापित करना महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, लकड़ी और लकड़ी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात/आयात नीतियों को संशोधित करने से इस पहल की समग्र सफलता में योगदान मिलेगा।

संक्षेप में, कृषि फसलों का विविधीकरण तभी फल-फूल सकता है जब वृक्ष फसलों से मिलने वाली आमदनी गेहूं-धान चक्र के बराबर हो, और आपात् बिक्री के दौरान भी उनका मुआवजा सुनिश्चित हो।

योजनाओं का विस्तार, एमएसपी में शामिल करना और लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए समर्थन इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।

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