आईसीएफआरई-वन अनुसंधान संस्थान देहरादून ने उच्च उपज देने वाली दो कोरिम्बिया हाईब्रीड किस्मों; एफआरआई-सीएच-1 और एफआरआई-सीएच-2 का व्यावसायिक उत्पादन करने के लिए लाइसेंस समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इन हाईब्रीड किस्मों को संस्थान के डॉ. अजय ठाकुर के नेतृत्व वाली टीम ने विकसित किया है। इसके लिए जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ समझौता किया गया है। इनमें महाराष्ट्र के लातूर स्थित अल्माक प्रयोगशाला, छत्तीसगढ़ के रायपुर स्थित देवलीला बायोटेक, दिल्ली के हेक्योर एग्रो प्रोडक्ट्स और महाराष्ट्र के नासिक स्थित सृजन बायोटेक शामिल हैं।

एफआरआई क्लोन उत्पादन और कल्चर बोतलों के लिए टिशू कल्चर तकनीक अग्रिम शुल्क पर उपलब्ध कराएगी। ये कंपनियां क्लोन तैयार कर किसानों को बेच सकती हैं और आईसीएफआरई-वन अनुसंधान संस्थान को रॉयल्टी भी दे सकती हैं।

ये हाईब्रीड नस्लें तेजी से बढ़ने वाली लकड़ी हैं जो लुगदी और लकड़ी के मिश्रित उद्योगों के लिए तीन साल में, प्लाईवुड के लिए पांच साल में और कृषि वानिकी में लकड़ी के लिए 10-12 साल में तैयार हो जाएंगी।

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इस अवसर पर वन अनुसंधान संस्थान की निदेशक डॉ. रेणु सिंह ने कहा कि ये हाईब्रीड नस्लें लकड़ी उद्योग के लिए एक बड़ा परिवर्तन साबित होंगे, जो वर्तमान में सालाना 700 अरब रुपये की लकड़ी का आयात कर रहे हैं और कृषि वानिकी के तहत किसानों को अच्छा रिटर्न भी देंगे।

उन्होंने इन हाईब्रीड पौधें के विकास और क्षेत्र सत्यापन के लिए टीम द्वारा 15 वर्षों के अनुसंधान प्रयासों की सराहना की। देवलीला बायोटेक के श्री राजदेव सुराणा और हेक्योर एग्रो के अनिल ठाकुर ने इस बात पर जोर दिया कि वे संकरों के क्षेत्र प्रदर्शन से प्रभावित हैं। सभी लाइसेंसधारियों को इस उद्यम में सहयोग करने में खुशी हुई।


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