पिछली तिमाही में कंपनियों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए इतना खर्च किया, जितना 2021 से 2023 तक किसी भी तिमाही में नहीं किया गया था।

खर्च में यह इजाफा तब हुआ है, जब खपत में कमी के कारण जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि कम होकर 5.4 फीसदी रह गई। पिछले दो साल में यह सबसे कम जीडीपी वृद्धि दर है।

हर कोई किसी भी तरह पैसा कमाने की जुगत में भिड़ा है। नरमी आती है तो औसत उपभोक्ता आम तौर पर खर्च करने की अपनी क्षमता पर संदेह करने लगता है। हौसले में ऐसी कोई भी गिरावट थामने के लिए ऐसे वक्त में विज्ञापन तथा मार्केटिंग विभाग अपनी कोशिशें दोहरी कर देते हैं। कंपनियों की इन कोशिशों के कारण ही खर्च बढ़ा है।

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भारतीय उपभोक्ताओं के सबसे ऊपरी तबके पर मंदी का कोई असर नहीं होता और सबसे निचले तबके को सरकारी मदद मिल रही है। मगर भारतीय उपभोक्ताओं में एक बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले मध्यवर्ग की खरीदने की क्षमता काफी कम हो रही है। ऐसे में मध्य वर्ग की आय बढ़े तो वह खपत का बड़ा स्रोत बन जाता है। लेकिन फिलहाल इसमें कमजोरी नजर आ रही है।

इस समय शहरी मध्यवर्ग दबाव में है और अगली 2-3 तिमाहियों में स्थिति में कोई बड़ा बदलाव होता नहीं दिख रहा है। जिन कंपनियों की बैलेंस शीट मजबूत है और जो मांग तैयार कर सकती हैं, वे विज्ञापन और मार्केटिंग में ज्यादा खर्च करेंगी।


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