भारत का संविधानः 10 बातें जो हर किसी को पता होनी चाहिए
- अगस्त 8, 2024
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भारत का संविधान, देश के लोकाचार का प्रतीक है, शासन और सामाजिक ताने-बाने को गहरी मजबूती देता है। संविधान को समझने के 10 आवश्यक पहलू इस प्रकार हैं।
ऐतिहासिक तथ्यः संप्रभुता
भारत लंबे समय तक पराधीन रहा, उपनिवेशवाद का उथल - पथल भरा दौर देखा। स्वतंत्रता के लिए लंबा संघर्ष किया। इस वजह से भारत के संविधान निर्माता ऐसी शासन व्यवस्था चाहते थे, जिसमें सभी को बराबरी का हक मिले। सामाजिक एकता व धार्मिक स्वतंत्रता हासिल हो। भारत में ऐसा लोकतंत्र स्थापित हो। जिसमें अलग - अलग संस्कृति, सामाजिक और आर्थिक समानता और संरक्षण मिले।
सबसे लंबा लिखित संविधानः व्यापक रूपरेखा
भारतीय संविधान दुनिया के सबसे लंबे लिखित संविधानों में से एक है, जो 25 भागों और 448 अनुच्छेदों में विभाजित है। इसके बाद अनुसूचि और संशोधन परिशिष्ट है।
संविधान सभाः लोकतंत्र के वास्तुकार
संविधान सभा ने जिसमें विविध पृष्ठभूमि के दिग्गज शामिल थे, संविधान को आकार देने के लिए अथक मेहनत, विचार-विमर्श और बहस की। संविधान सभा की बहसों के केंद्र में उनकी दूरदर्शिता निहित थी। बहसें विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों के पीछे के तर्क में उनकी सोच को प्रदर्शित करती हैं।
सत्ता की शक्तियों को विभाजनः नियंत्रण और संतुलन
भारतीय संविधान में विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का बटवारा किया गया। इससे किसी एक के निरकुंश होने पर रोक लगती है। जवाबदेही को बढ़ावा देता है और अधिकार के दुरुपयोग को रोकता है।
मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों का अनूठा संगमः
मौलिक अधिकार, जहां नागरिकों की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करते हैं, वही मौलिक कर्तव्य इस स्वतंत्रता की सीमा रेखा को सुनश्चित करते हैं। अधिकार व कर्तव्यों का यह मिश्रण नागरिकों के विकास और सम्मान के लिए आवश्यक है। अधिकारों के साथ जिम्मेदारियों को संतुलित करने के लिए मौलिक कर्तव्य है। जो नागरिकों के अधिकार की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए प्रेरित करते हैं।
संशोधन प्रक्रियाः निरंतरता और परिवर्तन को संतुलित करना
संविधान में किसी भी तरह के संशोधन की प्रक्रियाएं इसके मूल सिद्धांतों से समझौता किए बिना आवश्यक बदलाव की अनुमति देती है। यह अपने मूलभूत मूल्यों को बनाए रखते हुए बदलते समय के साथ विकसित होने के लिए संविधान के लचीलेपन का प्रतीक है।
संघवाद और केंद्र राज्य संबंधः जटिल शासन संरचना
भारत की संघीय संरचनाए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर संतुलन के साथ, इसके शासन के लिए महत्वपूर्ण है। संविधान केंद्र और राज्यों के बीच अधिकार के क्षेत्रों को परिभाषित करते हुए विभिन्न सूचियों के माध्यम से शक्तियों का आवंटन करता है। हालांकि भारत की प्रशासनिक मशीनरी जटिल है।
न्यायपालिका की भूमिकाः अधिकारों की सुरक्षा
भारतीय न्यायपालिका, जहां सर्वाेच्च न्यायालय शीर्ष पर है, संविधान को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायपालिका की न्यायिक समीक्षा की शक्ति और मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में इसकी संवैधानिक सर्वाेच्चता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका मिलती है।
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतः समाज कल्याण खाका
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत सामाजिक-आर्थिक न्याय और कल्याण पर जोर देते हुए शासन के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं। यद्यपि कानूनी रूप से लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं, फिर भी वे एक समतापूर्ण समाज बनाने की दिशा में प्रयास करने के राज्य के कर्तव्य को रेखांकित करते हैं, और मौलिक अधिकारों से परे राज्य के दायित्वों के बारे में जानकारी मिलती है।
प्रस्तावनाः संविधान की धड़कन
प्रस्तावना भारतीय राजनीति की आकांक्षाओं और आदर्शों को व्यक्त करते हुए संविधान की भावना और सार को रेखांकित करती है। यह एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का प्रतीक है। जिसके साथ बुनियादी मूल्य संजोना और बनाए रखने की जिम्मेदारी आती है।
यह केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक भावना का एक जीवंत प्रमाण है, जो देश की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ कर्तव्य, जागरूकता और जुड़ाव की भावना को बढ़ावा देता है।
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