अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी के समय में लोगों की बचत की वजह से अब भी बाजार में मांग कम है।

ग्रामीण क्षेत्र में कम होती मांग की वजह का असर भी बाजार पर पड़ रहा है। हालाँकि महंगी और ब्रांडेड चीजों की मांग बनी हुई है। जिससे बाजार को मदद मिलने की उम्मीद है।

एक बैंकर ने बताया कि, “असमानता बढ़ रही है। जब भी रिकवरी हुई है, इसमें समृद्ध और उच्च-मध्यम स्तर वर्ग की भूमिका रही है। डाउनट्रेडिंग से भी बाजार को कुछ सहारा मिल रहा है।

डाउनट्रेडिंग का तात्पर्य उन उपभोक्ताओं से है जो निम्न-स्तरीय ब्रांड या निम्न-पैक आकार चुनते हैं। ‘‘यह एक संकेत है कि आपकी दबी हुई मांग पहले ही ख़त्म हो चुकी है।‘‘

एक ओर, उपभोक्ताओं के एक वर्ग के घरेलू बजट पर दबाव है। दूसरी ओर, भारतीय उपभोक्ता, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में, बजट-अनुकूल वस्तुओं में निवेश करने में संकोच नहीं करे रहे हैं।

आने वाले महीनों में मौद्रिक स्थितियां कड़ी हो सकती हैं और ब्याज दरें अब उम्मीद से अधिक समय तक ऊंची रहने की संभावना है।

एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘मात्रा वृद्धि एक चुनौती बनी हुई है, और अब जो भी वृद्धि हो रही है वह कीमतों के कारण हो रही है-उद्योग ने मात्रा वृद्धि के बजाय मूल्य-आधारित वृद्धि देखी है।‘‘

विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े उपभोक्ता मांग में कमी के संकेत दिखाते हैं, भले ही अगस्त में कुल वृद्धि 14 महीने के उच्चतम स्तर 10.3 प्रतिशत पर पहुंच गई।

हालाँकि, अर्थशास्त्री बताते हैं, शहरी खपत उपभोग मांग के बढ़ने की ओर इशारा कर रही है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि वास्तविक वेतन से भी बाजार में मांग बढ़ने की पूरी संभावना है।