Initial perceptions often become entrenched. But it is important to look at new data. We were told the Indian economy was the worst performer under Covid-19 shocks; that the growth recovery is only because of the dip. But the IMF’s recent growth figures for 2020 and 2021 show India to be out-per-forming. Most major countries had a worse dip and a lower recovery despite more government spend.

The macroeconomic strategy that helped us achieve this is hazily visible in the Budget. Drawing out the major strands shows that each is necessary and one complements the other.

Government debt ratios have risen uncomfortably and interest payments eat up almost half of revenue unlike that Japanese and US governments, which can borrow at low rates despite much higher debt. Yet both private consumption and investment need support.

The Budget priorities investment while continuing essential support for the vulnerable and taking only a small step on the path of fiscal consolidation. The points below show why.

First, past periods of higher growth saw substantial jump in investment – public pre-reform and private after – but macroeconomic volatility hurt growth. Some low-level construction will create jobs fast. The absence of space restrains more consumption stimulus. Moreover, our own 2008 experience and current US inflation tell us prioritizing consumption raises inflation and aborts growth as supply-bottlenecks begin to bite.
Second, a better composition of government expenditure and other supply-side action will help keep inflation within bounds. Gati Shakti plans smart green coordinated infrastructure, which would decrease logistics costs. Buoyant revenues allow excise to be moderated, if necessary, to contain commodity inflation. The government itself puts a large weight on containing inflation. Excellent fiscal-monetary coordination on these issues will allow real interest rates to be smoothly maintained below growth rates; prevent jumps in risk premium; and sustain growth and fiscal consolidation, while giving savers positive real returns.

Third, there is concern on state. Their capacity for implementation. States have to participate for public and education to improve. The Central Budget avoided populist sops, but freebies are being freely promised in state elections. Arbitrary pricing (free electricity) is especially harmful. Subsidies have to shift to income transfers, which do not distort. But with one billion-plus population and a narrow tax base, these have to be well-targeted. Limits on borrowing restrain states. To meet these, however, they to cut investment. Punjab is a prime example of the harm this causes.

Therefore, carrots and sticks are required to induce states to invest more. The Budget protects investment by providing them finance but with conditions — loans are to be used to pay state shares in infrastructure projects.

The rising share of non-bank credit points to healthy diversity, to which the budget contributes further. Bank credit shows steady growth even with large industry deleveraging – that to medium industries and consumer durables grew at above 40 per cent. Even in thee uncertain times, investment is already rising in some sectors.

Fifth, conditional performance-linked incentives, corporate tax cuts, and limited tariff realignments are leveraging diversification of supply chains to finally give India a chance at job-intensive exports. This, therefore, is not the right time to raise taxes for redistributive purposes. What is new is incentives are transient until scale is reached, focused on creating international competitiveness, based on careful listening to industry to avoid capture and to identify national interest. Support for technology and innovation continues to sustain services export, in which India has a comparative advantage. Multiple strategies are required to cater to India’s varying levels of skill.

The Budget has continuity as well as coherence and with some tweaking as well as good implementation we can find a safe passage despite continuing global turbulence. We are doing some things right.

 


बजट 2022 में नजर आई सुसंगति और निरंतरता


अक्सर शुरुआती धारणा ही मजबूत हो जाती है। परंतु नए आंकड़ों पर नजर डालना भी महत्त्वपूर्ण है। हमें बताया गया कि कोविड-19 के झटके के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाली रहेगी और वृद्धि में सुधार इसलिए हो रहा है कि गिरावट आई। परंतु अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 2020 और 2021 के हालिया वृद्धि अनुमान दर्शाते हैं कि भारत कईयों से बेहतर स्थिति में है।

जिस वृहद आर्थिक नीति ने हमें यह हासिल करने में मदद की वह आम बजट में अस्पष्ट ही दिखती है। सरकार का कर अनुपात असहज करने वाले स्तर तक बढ़ चुका है तथा ब्याज भुगतान के चलते आधा राजस्व उसे चुकाने में जा रहा है। यह जापान और अमेरिका के उलट है जहां सरकारें उच्च कर्ज के बावजूद कम ब्याज दर पर कर्ज हासिल कर सकती हैं। इसके बावजूद निजी खपत और निवेश को मदद की आवश्यकता है।

बजट की प्राथमिकता की बात करें तो वह संवेदनशील वर्ग को जरूरी मदद मुहैया कराते हुए भी निवेश पर बल दे रहा है। इस बीच राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की दिशा में छोटे कदम बढ़ाए जा रहे हैं। नीचे दिए गए बिंदु बताते हैं कि ऐसा क्यों हुआः

पहला, अतीत में उच्च वृद्धि के दौर में पहले निजी और फिर सार्वजनिक निवेश में तेजी देखी गई है लेकिन वृहद आर्थिक अस्थिरता वृद्धि को प्रभावित करती है। यदि सरकारी निवेश में मौजूदा दो अंकों की वृद्धि निजी निवेश बढ़ाती है तो यह अहम जरूरतमंदों तक पहुंच सकती है। कुछ निचले दर्जे का विनिर्माण तेजी से रोजगार तैयार करेगा। खपत में और ज्यादा तेजी की गुंजाइश नहीं है। वर्ष 2008 का हमारा अनुभव तथा अमेरिका की मौजूदा मुद्रास्फीति हमें बताती है कि खपत को प्राथमिकता देने से मुद्रास्फीति बढ़ती है और आपूर्ति के गतिरोधों की बदौलत वृद्धि पर असर पड़ता है।

सरकारी व्यय तथा आपूर्ति क्षेत्र के अन्य कदमों का बेहतर सामंजस्य मुद्रास्फीति को तय दायरे में रखने में मदद करेगा। गति शक्ति ने बेहतर पर्यावरण के अनुकूल समन्वय वाले बुनियादी ढांचे की योजना प्रस्तुत की है। इससे माल ढुलाई की लागत में कमी आएगी। बेहतर राजस्व की बदौलत उत्पादों में सहजता आती है और आवश्यकता पडऩे पर जिंस मुद्रास्फीति को सीमित किया जा सकता है। सरकार का जोर भी मुद्रास्फीति को सीमित करने पर रहता है। इन मसलों पर बेहतर राजकोषीय-मौद्रिक तालमेल वास्तविक ब्याज दरों को वृद्धि दर से नीचे रखने तथा वृद्धि और राजकोषीय सुदृढ़ीकरण को थामने में मदद करता है। इसके साथ ही जमाकर्ताओं को सकारात्मक वास्तविक प्रतिफल हासिल होता है।

तीसरा, क्रियान्वयन की शासकीय क्षमता को लेकर भी चिंता है। सरकार को सार्वजनिक निवेश की बदौलत स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्र में बेहतरी लानी होती है। केंद्रीय बजट में लोकलुभावन उपाय नहीं किए गए लेकिन राज्यों के चुनावों में ऐसे वादे किए जाते हैं। निःशुल्क बिजली जैसे वादे खासतौर पर घातक हैं। सब्सिडी की जगह आय हस्तांतरण ने ले ली है जो कम से कम विसंगति नहीं पैदा करती। परंतु एक अरब से अधिक आबादी तथा कमजोर कर आधार के साथ इन्हें बेहतर लक्षित करना होगा। उधारी की सीमा राज्यों को प्रभावित करती है। इन्हें प्राप्त करने के लिए वे निवेश में कमी करते हैं। पंजाब इससे हुए नुकसान का प्राथमिक उदाहरण है।

ऐसे में राज्यों को निवेश के लिए प्रेरित करने के लिए प्रलोभन और दंड की नीति का प्रयोग करने की जरूरत है। बजट निवेश को वित्तीय मदद मुहैया कराके उसका बचाव करता है लेकिन यह सशर्त होता है।

चौथा सुधारों के साथ कारोबारी संचालन तथा नियमन कड़े हुए हैं। नियामकीय राहत कालातीत है, पूंजी का बचाव मुहैया है और बैंक जोखिम को ध्यान में रखकर ऋण दे रहे हैं। संग्रहण की क्षमता बेहतर है। वित्तीय स्थिरता ने भी प्रभावित किया है।

गैर बैंकिंग ऋण की बढ़ती हिस्सेदारी स्वस्थ विविधता का संकेत कर रही है। बजट ने इसमें और योगदान किया है। बैंक ऋण में स्थिर सुधार हो रहा है। इस अनिश्चित समय में भी कुछ क्षेत्रों में निवेश बढ़ रहा है।

पांचवां, सशर्त प्रोत्साहन संबद्ध प्रोत्साहन, कॉर्पाेरेट कर कटौती तथा सीमित शुल्क समायोजन के कारण आपूर्ति शृंखला में विविधता आई और अंततः भारत को रोजगार आधारित निर्यात का मौका मिला। ऐसे में यह पुनर्वितरण की दृष्टि से कर बढ़ाने का सही समय नहीं है। नयी बात यह है कि प्रोत्साहन अस्थायी हैं और केवल तब तक के लिए हैं जब तक वांछित पैमाना हासिल नहीं हो जाता तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा हासिल नहीं हो जाती। तकनीक और नवाचार की मदद से सेवा निर्यात जारी है। इस क्षेत्र में भारत को तुलनात्मक बढ़त हासिल है।

बजट में निरंतरता है और कुछ बदलाव तथा अच्छे क्रियान्वयन के साथ हम वैश्विक अस्थिरता के बावजूद राह निकाल सकते हैं। हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं।

साभारः आशिमा गोयल: बीजनेस स्टेन्डर्ड