हमने अभी तक जीएसटी डेटा के अहम स्रोत का पूरा शोध (उपयोग) नहीं किया है। अब वक्त आ गया है कि इसे हमारे विश्वविद्यालयों के तमाम निजी शोध संस्थानों तथा सार्वजनिक फाइनैंस समूहों के लिए खोल दिया जाए। इसमें नीति निर्माण के लिए महत्त्वपूर्ण शोध के क्षेत्र कौन से हैं?

जब जीएसटी के क्रियान्वयन पर बहस हो रही थी, तब यह दावा किया गया था कि प्रवेश शुल्क और चुंगी यानी तथाकथित ‘सीमा कर’ को समाप्त करने से अंतर्राज्यीय व्यापार बढ़ेगा। हमें आईजीएसटी डेटा तथा अन्य डेटा का इस्तेमाल करके इस दावे की गहराई से पड़ताल करनी होगी। यह जानना जरूरी है कि क्या जीएसटी के बाद भारतीय बाजार का विस्तार हुआ है और किन- किन राज्यों को लाभ हुआ है।

एक अन्य अहम क्षेत्र है छोटे कारोबारों और अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण की कुल प्रक्रिया पर जीएसटी का प्रभाव। छोटे कारोबारों की श्रेणी में एकरूपता नहीं है। जीएसटी सुधारों के जरिये उन सभी छोटी कंपनियों की तकदीर सुधरनी चाहिए थी। क्योंकि उन्हें पूंजीगत वस्तुओं पर चुकता किए गए कर पर क्रेडिट का उपयोग करने का अवसर मिलना था।

दरों को युक्तिसंगत बनाने की सख्त जरूरत है ताकि जीएसटी प्राप्ति में और सुधार हो। समिति के सामने एक कठिन काम है। उसे राजस्व निरपेक्षता बरकरार रखने और मुद्रास्फीति के दबाव से बढ़ने के दोहरे दायित्व को निभाना है।

सभी रियायतों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना होगा केवल उन्हीं वस्तुओं को रियायत मिलनी चाहिए जिन्हें जीएसटी के पहले के दौर में मूल्यवर्धित कर से रियायत मिलती थी।

जीएसटी के तहत हर प्रकार की रियायत कम करने की आवश्यकता है। यह समझने की जरूरत है कि रियायतें अंततः नुकसानदेह साबित होती हैं क्योंकि वे कारोबारों को इनपुट कर क्रेडिट से वंचित करती हैं।

अक्सर छूट प्राप्त इकाइयों के नाम पर अक्सर फर्जी चालान जारी किए जाते हैं। सीमित रियायतें जीएसटी राजस्व बढ़ाएंगी और मानक दर में कमी के साथ विनिर्माण को गति देंगी।

इसके तहत हम तीन स्तरीय संरचना बना सकते हैं जिसमें कच्चे माल पर सबसे कम दर, मध्यवर्ती वस्तुओं पर थोड़ी अधिक दर तथा तैयार माल पर सबसे अधिक दर होगी।

इससे इनवर्टेड ड्यूटी ढांचे में सुधार होगा और अहम कच्चा माल तथा घटक हमारे विनिर्माण उद्योग को मिल सकेंगे।

कुल मिलाकर अगर समुचित नीतिगत सुधार किए जाएं तो जीएसटी का सुखद समापन हो सकता है। इससे विनिर्माण के क्षेत्र में भी एक तरह का पुनर्जागरण आएगा। 

VS KRISHNAN


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