Demand for Fee: a comprehensive problem
- जनवरी 9, 2019
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Demand for Fee: a comprehensive problem
The Madras High Court has expressed objection to the Tamil Nadu government’s plans for giving free rice. The court said that Tamil Nadu people are becoming lazy with a scheme like giving free rice to all sections of the people. The result of giving free rice to every class came out that people now want everything free from the government. In Tamil Nadu, a total of R2,110 crore was spent on distributing free rice in a year. The Public Distribution System (PDS) scheme is operated in the state under which the benefit of the government scheme should be given only to the families living below the poverty line or to the divisive people. But the government is giving benefits to such a scheme to all sections of the vote bank. This increases the burden of debt with the state’s financial budget. In the welfare state like India, the vicious cycle of free search has become widespread. The government should enable people to be able and capable, so that they can organize roti, cloth and house to run their livelihood. There is no need to give the benefits of government schemes to all the people of the society. The education and financial competence of the underprivileged more than free content delivery schemes is to ensure that they take some steps for a better future. It is necessary for any government to provide employment to the people as per the eligibility. For this, we have to develop employment-oriented education in schools. With the education, small industries or other businesses should be trained. We have to pay attention that if man’s labor power is not utilized, then there will be a negative impact on national production. At present, giving maximum employment to the people and proper use of their labor should be the priority of the government only if we can come into the developed country category.
मुफ्तखोरी एक व्यापक समस्या
मद्रास उच्च न्यायालय ने मुफ्त में चावल देने की तमिलनाडु सरकार की योजना पर आपत्ति जताई है। अदालत ने कहा कि सभी तबके के लोगों को मुफ्त में चावल देने जैसी योजना से तमिलनाडु के लोग आलसी बन रहे हैं। हर वर्ग को मुफ्त चावल दिए जाने का नतीजा यह निकला कि लोग अब सरकार से हर चीज मुफ्त में चाहते हैं। तमिलनाडु में एक वर्ष में मुफ्त चावल बांटने पर 2,110 करोड़ रुपये खर्च हुए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) योजना राज्य में संचालित है जिसके तहत सरकारी योजना का लाभ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारो या दिव्यांग व्यक्तियों को ही देना चाहिए। लेकिन सरकार वोट बैंक के खातिर सभी वर्गाें को ऐसी योजना का लाभ दे रही है। इससे राज्य के वित्तीय बजट के साथ ही कर्ज का भार बढ़ जाता है। भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में मुफ्तखोरी का दुश्चक्र व्यापक हो चुका है। सरकार को चाहिए कि वह लोगों को सक्षम और समर्थ बनाए, ताकि वे स्वयं जीविका चलाने के लिए रोटी, कपड़ा, मकान की व्यवस्था कर सकें। समाज के सभी लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ देने की आवश्यकता नहीं है। मुफ्त सामग्री वितरण योजनाओं से अधिक जरूरी वंचितों की शिक्षा और आर्थिक सक्षमता सुनिश्चित करना है जिससे वे बेहतर भविष्य के लिए कुछ कदम उठा सकें। किसी भी सरकार के लिए जरूरी है कि वह लोगों को काबीलियत के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराए। इसके लिए हमें स्कूलों में रोजगारन्मुखी शिक्षा का विकास करना होगा। पढ़ाई के साथ ही लघु उद्योग अथवा दूसरे व्यवसायों का प्रशिक्षण देना चाहिए। हमें ध्यान देना होगा कि अगर मनुष्य की श्रम शक्ति का सदुपयोग नहीं किया गया तो राष्ट्रीय उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा। वर्तमान समय में लोगो का ज्यादा से ज्यादा रोजगार देना और उनके श्रम का सही उपयोग करना सरकार की प्राथमिकता होना चाहिए तभी हम विकसित देश की श्रेणी में आ सकेंगे।