हाल के महीनों में दैनिक उपयोग की उपभोक्ता वस्तुओं (एफएमसीजी) की कई कंपनियों के वरिष्ठ प्रबंधन ने एक जटिल समस्या को सामने ला दिया है। कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था विचलन की ओर है?

दूसरे शब्दों में क्या दो अलग-अलग भारत दो अलग आर्थिक मार्गों पर बढ़ रहे हैं? एफएमसीजी कंपनियां की मांग पहले जैसी जीवंत नहीं है, परंतु महंगे और उत्कृष्ट उत्पादों की मांग बनी हुई है और आगे भी बनी रह सकती है।

महामारी के बाद अंग्रेजी के ‘के’ अक्षर की आकृति वाले सुधार की चर्चा लंबे समय से रही है लेकिन अब सवाल यह है कि क्या भारत की अर्थव्यवस्था भी वही आकार ले रही है?

क्या अर्थव्यवस्था के दो हिस्से अलग-अलग गति से और अलग-अलग तरीकों से विकसित हो रहे हैं?

यह बात ध्यान देने लायक है कि अगर यह कथानक सही है तो यह सामान्य से बहुत अधिक जटिल बात है। अगर विभाजन मौजूद है और बढ़ रहा है तो यह शहरी समृद्धि और ग्रामीण संकट के बीच का विभाजन नहीं है। यह अंतर है प्रीमियम श्रेणियों और आय की श्रृंखला में काफी नीचे आने वाली श्रेणियों के बीच का। यानी भारतीय अर्थव्यवस्था के शीर्ष दशांश अथवा एकदम निचले छोर का।

यकीनन इस समय ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शायद ग्रामीण मांग में सुधार हो रहा है क्योंकि मॉनसून काफी बेहतर रहा है। कमजोरी शहरी मांग में नजर आ रही है। कुछ कंपनियों के अनुसार कमजोरी दूसरे या तीसरे दर्जे के शहरों के बजाय महानगरों में अधिक नजर आ रही है।

हाल ही में एक बड़ी एफएमसीजी कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने चेतावनी दी कि भारत का मध्य वर्ग खत्म हो रहा है। यह एक अप्रत्याशित और दिक्कतदेह दिशा है। एक ऐसा देश जहां कुलीनों की तादाद बढ़ रही है और महंगे सामान की बिक्री में इजाफा हो रहा है, जाहिर है वह दिक्कत में नहीं है। दिक्कत की बात यह है कि ऐसा ऐसे मध्य वर्ग के साथ हो रहा है जो स्थिर है और जिसकी संख्या में कमी आ रही है।

एक तथ्य यह भी है कि शहरी गरीबी को हमारे देश में पूरी तरह समझा नहीं जा सका है या यह नजर नहीं आती। शहरी समृद्धि और गरीबी के अनुभव को समझने के लिए और अधिक आंकड़ों की आवश्यकता है।