
बिक्री के आंकड़े उपभोक्ता मांग का आईना नहीं
- जनवरी 10, 2025
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अक्सर ये अनुमान तो लगाया जाता हैं कि उपभोक्ता मांग कैसी है और लोग कितनी खरीदारी कर रहे हैं। लेकिन अच्छा तब होता, जब ये सर्वेक्षण इस पर होते कि परिवारों में रोजगार की स्थिति क्या है, आय कितनी है, और किन चीजों पर खर्च किया जा रहा है।
हमें देखना चाहिए कि उपभोक्ताओं की मांग पर कौन से कारक असर डाल रहे हैं। ऐसा नहीं करने पर अलग-अलग दिशाओं की ओर संकेत कर रहे आंकड़े भ्रम को और बढ़ा देते है।
कंपनियां की बिक्री पर इस बात का असर भी पड़ता है कि वे क्या बेचना चाहती हैं और उन्हें बेचने के लिए योजनाओं को किस तरह अमल में लाया जाएगा। इसलिए कंपनियों की बिक्री को केवल उपभोक्ताओं की मांग का आईना नहीं माना जा सकता।
पिछली कुछ तिमाहियों में प्रमुख रुझान यह था कि उपभोक्ता प्रीमियम उत्पादों की ज्यादा मांग कर रहे हैं। प्रीमियम होना यानी महंगे और बेहतर उत्पादों की बिक्री बढ़ना कई तरह से होता हैं।
इससे हमें खरीदारी के मामले में उपभोक्ताओं की पसंद के बारे में काफी अंदाजा मिल जाता है। कई बार कंपनियां अधिक आय वाले ग्राहकों पर ध्यान देने की नीति बनाती हैं। ये ग्राहक ज्यादा महंगा और उम्दा सामान खरीदते हैं।
अक्सर किसी श्रेणी में प्रीमियम उत्पाद साफ तौर पर दूसरे उत्पादों के मुकाबले बहुत तेजी से बिक रहे होते हैं। हो सकता है कि उपभोक्ताओं की नजर में वह श्रेणी वाकई प्रीमियम बन रही हो।
ग्रामीण क्षेत्र में सुधार
पिछली कुछ तिमाहियों में कहा जा रहा है कि गांवों में बिक्री तेजी से बढ़ी है जबकि शहरों में बिक्री में थोड़ी कमी आई है। लेकिन इससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि अच्छी बारिश, बुनियादी सुविधाओं में बढ़त और सरकारी खर्च के कारण अब गांवों में मांग बढ़ती रहेगी।
बड़ी कंपनियां थोक विक्रेताओं को लांघते हुए छोटे गांवों में अपना माल सीधे पहुंचाकर कारोबार बढ़ाने की संभावनाएं तलाशती रही हैं। पहले छोटे गांवों में सीधे माल पहुंचाना मुनाफे का सौदा नहीं था मगर अब हालांकि गांवों में लोग कम रहते हैं, मगर अच्छी सड़कें और लॉजिस्टिक्स सेवा बढ़ गई हैं और डिजिटलीकरण की प्रक्रिया से लागत कम हो रही है। इसलिए कारोबार के नजरिये से यह सही लगता है।
ग्रामीण क्षेत्रों की आमदनी शायद उतनी नहीं बढ़ी है लेकिन गांवों में बिक्री बढ़ सकती है क्योंकि यदा कदा सामान खरीदने वाले और बड़ी कंपनियां छोटी और क्षेत्रीय कंपनियों के बाजार में सेंध लगा रही हैं।
आंकड़े बताते हैं कि मिश्रित खेती के कारण लोगों की आमदनी बढ़ रही है।
शहरी मांग का जायजा
शहरी इलाकों में मध्यम स्तर की बाजार श्रेणी में उत्पादों की बिक्री घटने के पीछे उपभोक्ताओं से जुड़े कई कारण हैं। आमदनी के हिसाब से तीसरे और चौथे समूह के सबसे ज्यादा कमाने वाले परिवारों के पास भी अतिरिक्त धन बहुत कम है। जब महंगाई बढ़ती है तब यह रकम भी जल्द खत्म होती है, इसलिए वे कम खरीदारी करते हैं। कुछ कंपनियों के लिए यह बुरी खबर है लेकिन कुछ के लिए यह अच्छी खबर है क्योंकि लोग इसकी वजह से सस्ता सामान खरीदने लगते हैं।
भारतीय उपभोक्ता बाजार अब पहले से ज्यादा जटिल हो गया है। पुराने तरीके और सोच अब कारगर साबित नहीं होंगे। हमें बाजार को गहराई से समझने की जरूरत है और कारण तथा प्रभाव को भी समझना होगा।
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