Editorial June 2021
- जून 23, 2021
- 0
The recent order of NGT on Environment Clearance has once again shown the indiscrimination of Indian rules and regulations. On the one hand, where govt announces regularly to ease the norms to facilitate the running of industries, whereas on the other hand, we are observing the trauma of Formaldehyde producers.
Lack of coordination between different departments, extends dilemmas of an industrialist. In the present case the SPCB was unknown of the fact that mere NOC issued by state govt (SPCB) is not sufficient but prior approval of EC is mandatory. Thereby it allowed to operate the formaldehyde plants established after 2006.
It is worth mentioning that process of approval of EC starts with the planning stage of the said unit. And installation can be done only after the final clearance.
The units who are affected by the NGT’s order are serving the plywood industry since long. The current closure order has stormed the plywood industry. Practical approach should be adopted along with saving our environment, which is also our utmost concern.
Former chief economic advisor Arvind Subramanian once pointed out that a major problem with private investment in the country was “stigmatized capital” that private sector investors were essentially seen as a problem, not wealth creators, and that politics and policy tended to have an adversarial relationship with the profit motive rather than harnessing it for the general goods.
It is essential that both the Union and state governments revisit this approach, both when it comes to investment and to investors in general. Private companies must be allowed to make profits. The government’s duty is to protect entrepreneurs and businessmen, not be another source of pressure. It is to be hoped that the struggle will have driven home the lesson that a more cooperative relationship with the private sector, and less stigmatization of capital, are essential for efficiency, investment, and growth. Speaking at the Lok Sabha recently, the prime minister stressed the private sector’s vital role in the economy and asserted that the culture of “abusing” it was no longer acceptable. It’s a piece of advice everyone should follow.
फोर्मल्डीहाइड उद्योग पर NGT के फैसले ने फिर से भारतीय नीति नियमों की विसंगतियों को उजागर किया। जहां एक ओर सरकार बार-बार घोषणा करने से चुकती नहीं है कि उद्योगों को कम से कम समय में सभी प्रक्रियाओं को विभिन्न विभागों द्वारा निष्पादित किया जाएगा, वहीं फोर्मोलीन के मामले में इसकी विसंगति विस्तृत रूप में देखने को मिली।
देखा गया है कि विभिन्न विभागों के बीच तारतम्य नहीं होने की स्थिति में आप व्यवसायी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रस्तुत विषय में कहा गया है कि SPCB को भी नहीं पता था कि इस उद्योग को सिर्फ राज्य सरकार SPCB) द्वारा अनुमोदित करना पर्याप्त नहीं है। बल्कि EC द्वारा अनुमोदित करना भी अनिवार्य है। इसी आधार पर 2006 के बाद लगे हुए सभी नये फार्मल्डीहाइड उद्योगों को चलाने की अनुमति दे दी गयी थी।
यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि EC अनुमति की प्रक्रिया किसी भी उद्योग विशेश को योजना के आरम्भिक चरण में ही NOC के आवेदन से ही शुरू हो जाती है। और अनुमति मिलने के बाद ही उक्त उद्योग की स्थापना का कार्य शुरू होता है।
इतने वर्षों से इन उद्योगों में उत्पादित फोर्मोलिन प्लाइवुड उद्योग की जरूरतों को पूरा कर रहा है। अब एकाएक NGT के आदेश ने पूरे उद्योग को आंदोलित कर दिया है। यद्यपि पर्यावरण की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाये जाने जरूरी हैं लेकिन उतना ही जरूरी है इनका व्यवहारिक होना। जिससे उद्योग और व्यापार भी फले-फुले।
पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने एक बार कहा था कि देश में निजी निवेश से जुड़ी एक अहम समस्या यह रही है कि पूंजी को गलत माना गया और निजी निवेशकों को संपत्ति निर्माता के बजाय समस्या के रूप में देखा गया। हमारी राजनीति और नीतियों ने भी मुनाफे की प्रवृत्ति को आम बेहतरी का जरिया बनाने के बजाय उसके साथ विपरीत रिश्ता कायम करने की प्रवृत्ति दिखाई।
निवेश और निवेशकों के साथ व्यवहार और नीतियों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए। सरकार को निजी कंपनियों को मुनाफा कमाने देना चाहिए। सरकारी तंत्र का काम है उद्यमों और उद्यमियों की रक्षा करना, न कि उन पर दबाव बनाना। आशा की जानी चाहिए कि आई दिक्कतों से यह सबक मिला होगा कि निजी क्षेत्र के साथ बेहतर रिश्ता और पूंजी के साथ उचित व्यवहार करके ही किफायत, निवेश और वृद्धि हासिल की जा सकती है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा था कि अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र की भूमिका अहम है और इस क्षेत्र को प्रताड़ित करने की संस्कृति अब स्वीकार्य नहीं होगी। हर किसी को इस राय का पालन करना चाहिए।