Education loans and changing middle-class values in India

मध्यवर्गीय मूल्यों की परिभाषा क्या है?’ इसका जो उत्तर मिला वह था, ‘मध्य वर्गीय मूल्यों में ऐसे सिद्धांतों का समूह शामिल होता है जो कड़ी मेहनत, शिक्षा, वित्तीय जवाबदेही, परिवार सामुदायिक सक्रियता आदि पर बल देता है और बेहतरी की दिशा में प्रयास पर जोर देता है।’

इस कठिन तथ्य को कैसे समझें कि विदेशों में उच्च शिक्षा लेने वाले भारतीय छात्रों का सालाना व्यय करीब 80 अरब डॉलर है और इनकी तादाद करीब 10 लाख है जो अगले वर्ष बढ़कर शायद 18 लाख होने वाली है? यहां हो क्या रहा है? क्या हमारे छात्रों में से बहुत सीमित संख्या में छात्रों के पास इतना ज्ञान और कौशल है कि वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंधन संस्थान और चिकित्सा तथा विधि संस्थानों में दाखिला ले पाएं तथा शेष किसी तरह पैसे जुटाकर शिक्षा के लिए विदेश जाना सही समझते हैं?

यह अनुमान शायद सही है क्योंकि एक और चिंताजनक तथ्य भारतीय बैंकों के शिक्षा ऋण में करीब 80,000 करोड़ रुपये की राशि बकाया है जिसमें से आठ फीसदी राशि को उन्होंने फंसा हुआ कर्ज घोषित कर दिया है।

इसके समांतर कई भारतीय मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में सालाना शुल्क 20 लाख रुपये के आसपास है यानी चार से पांच साल की पढ़ाई में करीब एक करोड़ रुपये केवल शुल्क के लिए चाहिए। कई मेडिकल और डेंटल कॉलेज ऐसे भी हैं जो दाखिल के लिए एकबारगी एक से दो करोड़ रुपये का प्रवेश शुल्क लेते हैं।

भारत में एक और रुझान उभर रहा है भारतीय छात्र और उनके माता-पिता पर स्नातक के समय तक अगर एक करोड़ रुपये तक का कर्ज हो जा रहा है तो वे अमेरिका और यूरोप में नौकरी तलाश कर रहे हैं ताकि उन्हें इतना अधिक वेतन मिल सके कि वे अपना भारी-भरकम शिक्षा ऋण चुका सकें। भारत में मिलने वाले वेतन से ऐसा कर पाना संभव नहीं है।

क्यों ये चौंकाने वाली तमाम घटनाएं घटित हो रही हैं। मेरिट आधारित आदर्श जहां उचित प्रतीत होता है वहीं वह बढ़ती असमानता और सामाजिक ध्रुवीकरण में भी योगदान करता है। क्योंकि उत्कृष्टता की खोज और कुलीन शिक्षा ने सामाजिक असमानता बढ़ाने में योगदान किया है। साझा हित के बजाय व्यक्तिगत सफलता पर ध्यान देने से भी ऐसा हुआ है।