Technology based GST

लगभग सात साल के बाद अब वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी प्रणाली कमोबेश वित्तीय तंत्र में अधिक सहजता के साथ अपनी जगह बना चुकी है। कर संग्रह से जुड़े आंकड़ों में निरंतर बढ़ोतरी इसी का संकेत दे रही है।

कर राजस्व बढ़ने के साथ ही जीएसटी में सुधार या जीएसटी 2.0 की तरफ बढ़ने की जरूरत महसूस होने लगी है। मगर दरें तर्कसंगत बनाने और पेट्रोल एवं डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से जुड़े सुधारों में थोड़ी देर हो सकती है।

केंद्र सरकार पेट्रोल एवं डीजल को जीएसटी में लाने के पक्ष में है, मगर राज्य सरकारें इसके लिए राजी नहीं हो रहे हैं। पेट्रोलियम एवं डीजल पर बिक्री कर वैट लगाने से प्राप्त होने वाले राजस्व की हिस्सेदारी 2022-23 तक के पिछले पांच वर्षों के दौरान 16-17 फीसदी रही है।

केंद्र सरकार के लिए ये दोनों ही कर राजस्व के बड़े स्रोत हैं।

फिलहाल कच्चे तेल, डीजल, विमान ईंधन और प्राकृतिक गैस आदि पर जीएसटी नहीं लगाया जाता है।

पेट्रोलियम पदार्थों, खासकर, पेट्रोल एवं डीजल को जीएसटी में शामिल करने के अलावा कर श्रेणियों में कमी करना भी एक महत्त्वपूर्ण सुधार है, जो पिछले कुछ वर्षों से विचाराधीन है। 

फिलहाल जीएसटी प्रणाली में चार श्रेणियां-5 फीसदी, 12 फीसदी, 18 फीसदी और 28 फीसदी हैं। इनके अलावा महंगी एवं भोग-विलास की वस्तुओं पर जीएसटी के अलावा उपकर भी लगता है।

केंद्र एवं राज्य सरकारें राजस्व पर संभावित असर पर गंभीरता से विचार किए बिना इन विषयों पर आनन-फानन में कोई निर्णय नहीं लेना चाहती हैं।

प्रस्ताव यह था कि 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत स्लैब को मिलाकर कहीं बीच में एक नया स्लैब बनाया जाए। सरकार इस बात का विश्लेषण कर रही है कि उपभोक्ता हितों और राजकोष के हितों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए, क्योंकि जिन वस्तुओं पर 12 प्रतिशत की दर लागू है, उन पर कर की दर अधिक होगी और जिन पर 18 प्रतिशत कर लगता हैए उन पर कर की दर कम होगी।

इनपुट टैक्स क्रेडिट

इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ लेने पर लगी पाबंदी से भी जीएसटी प्रणाली में उलझन बढ़ रही है। आईटीसी का लाभ अगला वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद अगले नवंबर तक लिया जा सकता है, मगर उसके बाद दावा नहीं किया जा सकेगा। एक दूसरा विषय यह है कि विक्रेता फॉर्म जीएसीटीआर1 में नहीं दर्शाए जाने पर क्रेडिट मांगने का दावा नहीं किया जा सकता भले ही करदाता ने कर भुगतान क्यों न किया हो। वेंडरों द्वारा नियमों का पालन नहीं होने की स्थिति में प्राप्तकर्ता को मिले क्रेडिट वापस ले लिए जाते हैं। इन अड़चनों को देखते हुए कारोबारी इकाइयां जीएसटी में अगले चरण के सुधार या जीएसटी 2.0 की मांग कर रहे हैं।