Expensive Diesel Costs more to Common Man
- मार्च 20, 2021
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The price of the most used diesel as retail fuel in all the commercial sectors of the economy has slowly risen to Rs 90 per liter. The possibility of a gradual increase in retail fuel prices was already being expressed as oil prices are also rising. Brent crude is now over $ 65 a barrel.
Today, people are paying R15-20 per liter more on fuel as compared to the last time when the price of crude oil was as much one of the reason for this is the high tax levied on them from the Center and the states.
As the common consumer uses petrol more than diesel, he has to directly suffer more losses when the price of petrol increases. But diesel has a far greater impact on our lives, so the consumer should be more concerned about the prices of diesel.
The first reason for this is that diesel consumption in the country is 2.5 times more than petrol.
The transport sector in the country consumes 70 percent of diesel. It is most commonly used in trucks followed by private vehicles and other commercial vehicles. 28 per cent of the diesel consumed in the country is used in trucks.
Something similar was the case in 2018. Towards the end of that year, the price of oil had crossed $ 80 per barrel and the inflation of the transportation had gone above the normal inflation. The government had cut excise duty to reduce retail prices.
The comment made by Reserve Bank of India Governor Shaktikanta Das in the recent policy meeting is expedient.
He said, “CPI inflation remained high at 5.5 per cent in December, excluding food and fuel. This is due to the impact of rising crude oil prices and high indirect tax rates on petrol and diesel and inflation in key commodities and services, especially in the transport and health categories.
महंगे डीजल की पड़ती है
आम आदमी पर तगड़ी मार
अर्थव्यवस्था के लगभग सभी वाणिज्यिक क्षेत्रों में खुदरा ईंधन के रूप में सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाले डीजल की कीमत धीरे-धीरे बढ़कर 90 रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गई है। खुदरा ईंधन कीमतों में धीरे-धीरे वृद्धि होने के आसार पहले से जताए जा रहे थे क्योंकि तेल की कीमतें भी बढ़ रही हैं। ब्रेंट क्रूड की कीमत अब 65 डाॅलर प्रति बेरल से अधिक हो चुकी है।
पिछली बार जब कच्चे तेल की कीमत इतनी थी तब के मुकाबले आज लोग ईंधन पर 15-12 रुपये प्रति लीटर अधिक चुका रहे हैं। इसकी वजह केंद्र और राज्यों की तरफ से इन पर लगाया जाना वाला उच्च कर भी एक बड़ा कारण है।
चूंकि आम उपभोक्ता डीजल के मुकाबले पेट्रोल अधिक उपयोग करता है जिससे पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर उसे प्रत्यक्ष रूप से अधिक नुकसान झेलना पड़ता है। लेकिन डीजल का हमारे जीवन पर कहीं अधिक प्रभाव है लिहाजा उपभोक्ता को डीजल की कीमतों को लेकर अधिक चिंतित होना चाहिए।
इसका पहला कारण यह है कि देश में डीजल की खपत पेट्रोल के मुकाबले 2.5 गुना अधिक है।
देश में परिवहन क्षेत्र में 70 फीसदी डीजल की खपत होती है। इस क्षेत्र में इसका सबसे अधिक इस्तेमाल ट्रकों में होता है जिसके बाद निजी वाहन और वाणिज्यिक वाहनों का स्थान है। केवल ट्रकों में ही देश में उपलब्ध डीजल का 28 फीसदी उपयोग किया जाता है।
परिवहन लागत जिसमें ट्रक का किराया, चालक की सेवा, रखरखाव खर्च और टोल को शामिल किया जाता है, आपके ओर से चुकाई जाने वाली अंतिम कीमत में जोड़ा जाता है।
इसी तरह की कुछ परिस्थिति 2018 में थी। उस साल के अंत में तेल की कीमत 80 डाॅलर प्रति बैरल के पर चली गई थी और परिवहन की महंगाई खासकर उस समय पर सामान्य महंगाई से ऊपर चली गई थी। तब सरकार ने खुदरा कीमतों में कमी लाने के लिए उत्पाद शुल्क में कटौती की थी।
हाल की नीति बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की ओर से की गई टिप्पणी समीचीन है।
उन्होंने कहा, ‘खाद्य और ईंधन को छोड़कर दिसंबर में सीपीआई महंगाई 5.5 फीसदी के उच्च स्तर पर बनी रही थी। इसकी वजह कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर और पेट्रोल तथा डीजल पर उच्च अप्रत्यक्ष कर दरें तथा प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं खासकर परिवहन और स्वास्थ्य श्रेणियों में महंगाई में वृद्धि है।’