भारत का व्यापार संतुलन सुधर नहीं रहा है। क्योंकि भारत के पास अपने स्तर पर कच्चे माल के विकल्प कम है,इसलिए हमें अभी भी आयात पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। हर संभावित प्रयासों से हमें कच्चे माल के तौर पर आत्मनिर्भर बनना ही होगा। तभी हम आयात को कम कर निर्यात में वृद्धि कर सकते हैं। इस स्थिति के बाद ही व्यापार संतुलन सुधरेगा।

अगर भारतीय निर्यात, आयात संरक्षण से होता रहेगा तो भला कैसे हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।

वैसे देखा जाए तो भारत की नीति में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। जापान और दक्षिण कोरिया की औद्योगिक नीतियों को देखें तो शुरुआती दौर में वहां भी ऐसा संरक्षण आम बात थी। बहरहाल यह अस्थायी होना चाहिए और सरकारी सब्सिडी उचित समय पर खत्म किया जाना चाहिए।

भारत के वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकरण के बावजूद हम औद्योगिक वस्तुओं के निर्माण के लिए कच्चे माल के लिए जिसमें इलेक्ट्रॉनिक कलपुर्जे, सोलर पैनल आदि के लिए चीन पर बहुत निर्भर हैं। इससे चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ेगा, लेकिन इससे भी अधिक अहम बात है कि इससे सूक्ष्म, मध्यम और छोटे घरेलू उद्योग का विकास भी सीमित ही होगा। भारत के लिए बेहतर होगा कि वह घरेलू मूल्यवर्द्धन पर ध्यान दे।

भारत का प्रारंभिक लक्ष्य होना चाहिए कम प्रौद्योगिकी वाली वस्तुओं के निर्यात बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाए। क्योंकि यह लागत के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील होती हैं। इसके लिए मध्यवर्ती वस्तुओं की शुल्क दर कम करने की आवश्यकता है। साथ ही नए मुक्त व्यापार समझौते करने, श्रम बाजार नियमों को सरल बनाने, बेहतर आधारभूत ढांचा, परिवहन लागत में कमी करने तथा अनुकूल निवेश माहौल बनाने की आवश्यकता है।

स्थानीय निर्माताओं को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी की मियाद तय होनी चाहिए और घरेलू उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

अगला चरण होगा मूल्य श्रृंखला में सुधार करके सामान्य से उन्नत उत्पादों की ओर बढ़ना। इसके लिए बेहतर मानव संसाधन की जरूरत होगी और नवाचार पर ध्यान देना होगा। इसके लिए सरकार कंपनियों को प्रोत्साहन दे सकती है कि वे शोध एवं विकास पर अधिक व्यय करें।

उच्च प्रौद्योगिक निर्माण में भारत से बेहतर स्थिति वाले देश मसलन दक्षिण कोरिया आदि ने अपने निर्यात की गुणवत्ता को नवाचार के जरिये बदला है और वे उन्नत विनिर्माण करने लगे हैं। भारत को भी इस दिशा में बढ़ना चाहिए।

कुल मिलाकर भारत आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से अच्छी स्थिति में है सरकारी नीतियों को घरेलू मूल्यवर्धन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए ताकि मूल्य श्रृंखला में अपनी स्थिति बेहतर की जाए।

भारत के लिए तो यह अभी शुरुआत है।


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