Free trade agreements giving great hope



After the Covid epidemic, India is becoming an important pillar of global recovery with rapid economic growth. India has recently materialized Free Trade Agreements (FTAs) with the United Arab Emirates and Australia. India is now committed to accelerated progress in FTA negotiations with the UK and beyond that with the European Union. This means that the doors of India are rapidly opening up for global trade and business.

At present, UAE is India’s third largest trading partner and second largest export center after the US.

The India-Australia Economic Cooperation and Trade Agreement were also signed in a virtual ceremony. Talks were going on between the two countries for ten years on this. After the implementation of the India-Australia FTA, about 96 percent of India’s exports to Australia and about 85 percent of Australia’s exports to India can be done with duty exemption.

On the sidelines of the two-day visit of British Prime Minister Boris Johnson to India, the FTA talks between the two countries, which started last January, were reviewed. The review has set a target of completing an interim agreement of the FTA by Diwali. Rapid progress is being made in this direction.

After the realization of FTA with UAE and Australia by India, now the progress of FTA talks with EU, UK, Canada, six countries of Gulf Cooperation Council (GCC), South Africa, USA and Israel is a matter of relief. These are the countries with which FTA is more beneficial for India. These countries are eager to open their markets for India’s specialty products. With this, Indian goods and services will be accessible to a very large market in the world.

India’s policy of entering into FTAs ​​with major countries appears to be beneficial instead of engaging in large regional trade agreements dominated by China. It is to be known that due to its business interests, India did not consider it appropriate to join the Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP), the world’s largest trade agreement which came into existence in November 2020. The policy adopted by India to move forward on the FTA’s path after keeping distance from RCEP, seems to be yielding good results. There is no doubt that in recent years, the more confusion have arisen in the world trade negotiations under the WTO, the faster the FTAs ​​between different countries have grown. FTAs are agreements in which two or more countries agree to give preference to each other in provisions related to customs duties, regulatory laws, subsidies and quotas, etc., on the import and export of goods and services. India has made rapid strides towards FTAs ​​to gain similar benefits.

It can also play an important role in achieving the goal of making India a five trillion dollar economy. This is why the economic policy establishment is taking these agreements seriously.

   Harpa



बड़ी उम्मीद जगाते मुक्त व्यापार समझौते



कोविड महामारी के बाद भारत तेज आर्थिक वृद्धि के साथ वैश्विक रिकवरी का महत्वपूर्ण स्तंभ बन रहा है। भारत ने हाल में संयुक्त अरब अमीरात और आस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को मूर्त रूप दिया है। अब भारत ब्रिटेन और उसके अलावा यूरोपीय संघ के साथ भी एफटीए वार्ता में त्वरित प्रगति के लिए प्रतिबद्ध है। इसका मतलब है कि वैश्विक व्यापार और कारोबार कि लिए भारत के दरवाजे तेजी से खुल रहे हैं।

इस समय यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और अमेरिका के बाद दूसरा बड़ा निर्यात केंद्र है।

भारत-आस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते पर भी एक आभासी समारोह में हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों के बीच इसे लेकर दस साल से बातचीत जारी थी। भारत-आस्ट्रेलिया एफटीए लागू होने के बाद आस्ट्रेलिया के। भारत का करीब 96 प्रतिशत निर्यात औऱ भारत को आस्ट्रेलिया का करीब 85 प्रतिशत निर्यात शुल्क मुक्ति के साथ किया जा सकेगा।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जानसन की दो दिवसीय भारत यात्रा के मौके पर दोनों देशों के बीच विगत जनवरी माह से शुरू हुई एफटीए वार्ता की समीक्षा की गई। इस समीक्षा में दीपावली तक एफटीए के एक अंतरिम समझौते को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस दिशा में तेजी से प्रगति हो रही है।

भारत द्वारा यूएई और आस्ट्रेलिया के साथ एफटीए को मूर्त रूप दिए जाने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजरायल के साथ एफटीए के लिए जारी प्रगतिपूर्ण वार्ता राहत की बात हैं। ये ऐसे देश हैं, जिनके साथ एफटीए भारत के लिए अधिक लाभप्रद है। ये देश भारत के विशेष उत्पादों के लिए अपने बाजार खोलने को उत्सुक हैं। इससे भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की पहुंच दुनिया के एक बहुत बड़े बाजार तक हो सकेगी।

चीन के प्रभुत्व वाले बड़े क्षेत्रीय व्यापारिक समझौतों से जुड़ने के बजाय प्रमुख देशों के साथ एफटीए करने की भारत की नीति लाभपूर्ण दिखाई दे रही है। ज्ञातव्य है कि भारत ने अपने कारोबारी हितों के चलते नवंबर 2020 को अस्तित्व में आए दुनिया के सबसे बड़े ट्रेड समझौते रीजनल कांप्रिहेंसिव इकोनामिक पार्टनरशिप (आरसेप) में शामिल होना उचित नहीं समझा था। भारत ने आरसेप से दूरी बनाने के बाद एफटीए की डगर पर आगे बढ़ने की जो नीति अपनाई, उसके अच्छे नतीजे सामने आते दिख रहें हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि हाल के वर्षों में विश्व व्यापार संगठन के तहत विश्व व्यापार वार्ताओं में जितनी उलझनें खड़ी हुई है, उतनी ही तेजी से विभिन्न देशों के बीच एफटीए बढ़ते गए हैं। एफटीए ऐसे समझौते हैं, जिनमें दो या दो से ज्यादा देश वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात-निर्यात पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि संबंधी प्रविधानों में एक-दूसरे को तरजीह देने पर सहमत होते हैं। भारत ने ऐसे ही लाभ हासिल करने के लिए एफटीए की तरफ तेजी से कदम बढ़ाए हैं।

भारत को पांच लाख करोड़ डालर की इकोनामी बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकतें हैं। यही कारण है कि आर्थिक नीति प्रतिष्ठान इन समझौतों पर गंभीरता से आगे बढ़ रहा है।

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