FTA agenda for India
- नवम्बर 14, 2022
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We need FTAs (Free Trade Agreement) with countries and areas that either matter to us today or will matter in the future. We should be locking-in access to our top current export markets-the US, EU and Bangladesh. And top future export markets-namely, Africa and Latin America.
By dropping out of RCEP (Regional Comprehensive Economic Partnership) we have limited our access to Asia, The most dynamic part of the world economy. We have a second chance now, with the newly-minted Indo-Pacific Economic Framework. India has so far, mistakenly, stayed out of the trade pillar within the IPEF.
We need to immediately join and systematically push a wide trade agenda there. The IPEF (Indo-Pacific Economic Framework) has the double advantage of including many countries of greatest interest to us- the US, Indonesia, Japan, South Korea, Singapore, and Vietnam excluding China.
By joining now we can help determine the course of negotiations and frame them with our national interest in mind. We must not miss this bus.
भारत का एफटीए एजेंडा क्या होना चाहिए?
हमें उन एफटीए की जरूरत है जो वर्तमान समय में उपयोगी देशों और क्षेत्रों से संबंधित हों या जिनसे हमारा भविष्य में सरोकार रहेगा। हमें वर्तमान समय में शीर्ष के निर्यात बाजार अमेरिका, ईयू और बांग्लादेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। हमारे भविष्य के प्रमुख बाजार अफ्रीका और लैटिन अमेरिका हो सकता हैं।
हमने क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी (आरसेप) से अलग होकर एशिया में अपनी पहुंच को सीमित कर दिया है और यह महाद्वीप आने वाले समय में विश्व की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अब हमारे पास दूसरा मौका है, हाल में बने एशिया पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) में शामिल होने का।
भारत अपनी भूल के कारण आईपीईएफ में व्यापार के आधार स्तंभ से बाहर रहा है। लिहाजा हमें इसमें तुरंत शामिल होना चाहिए और व्यवस्थित ढ़ंग से व्यापार के एजेंड़ें को आगे बढ़ाना चाहिए। आईपीईएफ में चीन को छोड़ अमेरिका, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और वियतनाम हैं जो हमारी दिलचस्पी के देश हैं।
लिहाजा आईपीईएफ में शामिल होने का दोहरा फायदा है। आईपीईएफ में शामिल होने से हम अपने देश के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप वार्ता के तरीके और प्रारूप तय कर सकते हैं। हमें इस मौके को हाथ से नहीं गंवाना चाहिए।