FTA’s के वैश्विक मानक
- नवम्बर 15, 2024
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खुली अर्थव्यवस्था के लिए, राष्ट्रों को उतने ही अधिक उपाय करने होंगे जिससे निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।
डब्ल्यूटीओ में ऐसे मुद्दों को आगे बढ़ाने में विफल रहने पर अब उन्नत राष्ट्रों ने एफटीए में शामिल होने को अपेक्षाकृत आसान माना है। इन राष्ट्रों द्वारा किए गए सभी व्यापार समझौतों में हालांकि पर्यावरण, श्रम मानक और लिंग भेद जैसे गैर-व्यापारिक मुद्दे भी शामिल हैं।
एफअीए में ऐसे गैर-व्यापारिक मुद्दों को किस हद तक स्वीकार किया जायेगा, यह कई वजहों से निर्धारित किया जा सकता है। इसमें महत्वपूर्ण कुछ कारण इस तरह से हैं।
- भारत की आर्थिक नीति 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की है, इसलिए इन नीतियों को इस तरह से बनाया जाना चाहिए कि इस लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
- अगले कुछ वर्षों तक डब्ल्यूटीओ के प्रभावी होने की संभावना नहीं है। इसलिए, एफटीए व्यापार और उद्योग नीति के लिए महत्वपूर्ण मंच साबित हो सकता हैं।
- भारत एफटीए पर स्पष्ट रवैया नहीं अपना पाया, इस वजह से प्रमुख व्यापार व्यवस्थाओं से बाहर होना पड़ा। इससे प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले संभावित व्यापार लाभ कम हुआ है
- भारत अधिकांश बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों और श्रम तथा लिंग संबंधी मामलों में अपनी सहमति दे चुका है। अब इन दायित्वों का पालन करने में संकोच नहीं करना चाहिए।
- अपने दायित्वों का पालन करने के लिए महत्वाकांक्षी नीतियां तैयार की है, इतना ही नहीं इसकी विकास योजनाओं में जलवायु परिवर्तन और डीकार्बाेनाइजेशन जैसे कुछ क्षेत्रों में महत्वाकांक्षी लक्ष्य शामिल हैं।
- उभरती भू-राजनीतिक गति विधियां और इसकी आगे की नीतिगत कार्रवाई भारत को आगे बढ़ने के लिए एक सुविधाजनक स्थान पर रखती है।
- भारत कई वर्षों तक मध्यम वर्ग के खरीदारों के लिए एक विशाल बाजार की पेशकश करता रहेगा। व्यापार विस्तार के लिए भारत इस बाजार का लाभ उठा सकता है। इसके परिणामस्वरूप, यह ऐसे दायित्वों को अपने सौदेबाजी में शामिल कर सकता है।
- यह मानना कठिन है कि व्यापार का पर्यावरण और कुछ श्रम-संबंधी पहलुओं जैसे कुछ गैर-व्यापार मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए, यह तर्क कि उन्हें अलग रहना चाहिए, अब वाजिब नहीं है।
- विकासशील देशों के लिए मजबूत तर्क, अलग-अलग जिम्मेदारी और भौतिक और वित्तीय क्षमताओं की कमी को दूर करने की आवश्यकता होनी चाहिए। इसे ही भारत की बातचीत का मुद्दा बनाना चाहिए।
अपने दीर्घकालिक आर्थिक उद्देश्यों को पहचानते हुए, भारत अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक तरीके अपना सकता है, जो उसके हितों की रक्षा करे, साथ ही उसके व्यापारिक साझेदारों को आश्वस्त करें।
व्यापार समझौतों में में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों से बच नहीं सकते। इसलिए बेहतर होगा कि हम जितनी तेजी से निश्चय, नवाचार और तैयारी करेंगे, हमारे लिए उतना ही बेहतर होगा।
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