Hope for Return on Investment in Private Sector Growth?
- जुलाई 10, 2023
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Private investment plays a crucial role in the growth of India. Almost all types of production and employment are generated in the private sector. Every step taken by the government should be seen as an investment promotion measure for the people in the private sector. Based on this fundamental understanding, it can be said that public policy is not an area where power is demonstrated in the economy. It is a game of establishing conditions in which the private sector is involved in activities that demonstrate strength in the economy.
An increase in consumption and employment also leads to an increase in demand
Similarly, the financial system should also be seen as a sector that prepares an environment for the creation of the economy for non-financial companies. Both policy and finance are means through which vibrant growth can be achieved in production and employment, and this can be done with the help of non-financial companies.
A broad-based economy generates a multiplier effect. The influx of private investment can have a significant impact on the economy. An increase in consumption and employment also leads to an increase in demand. When individuals see their friends or relatives getting jobs, they interpret it as an improvement in their financial situation. This leads to many positive reactions. For example, an increase in loans, an increase in the purchase of durable goods, increased investment in business plans, etc.
There is significant variation within the economy. Some companies perform well while others are declining. What has declined in the recent decade has frightened many companies and business leaders. The recent months of growth may not necessarily bring a positive phase for everyone.
A group of companies is watching opportunities and preparing for reinvestment. In this situation, can we see initial cautious growth, which can be due to the small group of companies and can prepare the backdrop of significant growth where all companies can benefit? Can it change during the period of rapid growth like the optimistic phase of the 1990s or the end of the 2000s?
In this series, there are three contacts. Will it bring momentum to private projects as it appears in the figures of pure tangible assets? Will the expectation of increased investment expenditure create demand and have a multiplier effect on employment? Will minor improvements in the macro economy pave the way for extensive investment and rapid growth, as has happened in the past on two occasions?
If your perspective is positive regarding these three questions, then we can move towards the third phase of rapid growth.
निजी निवेश में तेज वृद्धि की वापसी की आशा?
भारत की वृद्धि में निजी निवेश का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान है। लगभग हर प्रकार का उत्पादन और रोजगार निजी क्षेत्र में ही तैयार होते हैं। राज्य शासन के कदमों के जरिये होने वाले हर काम को निजी क्षेत्र के लोगों के लिए निवेश प्रोत्साहन के कदम के रूप में ही देखा जाना चाहिए। इस बुनियादी समझ के आधार पर बात करें तो सार्वजनिक नीति ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां अर्थव्यवस्था में शक्ति प्रदर्शन किया जाए। यह ऐसी शर्तें स्थापित करने का खेल है जिनमें निजी क्षेत्र अर्थव्यवस्था में ताकत दिखाने वाले कामों में संलग्न हो।
इसी प्रकार वित्तीय तंत्र को भी ज्यादा से ज्यादा ऐसे क्षेत्र के रूप में देखा जाना चाहिए जो अर्थव्यवस्था के निर्माण में गैर वित्तीय कंपनियों के लिए माहौल तैयार करे। नीति और वित्त दोनों ऐसे माध्यम हैं जिनकी मदद से उत्पादन और रोजगार में जीवंत वृद्धि हासिल की जा सकती है और ऐसा गैर वित्तीय कंपनियों की सहायता से किया जा सकता है।
खरीद और रोजगार में इजाफा होने पर मांग में भी बढ़ोतरी नजर आती है
वृहद अर्थव्यवस्था की एक सुज्ञात अवधारणा यह है कि मांग बहुस्तरीय प्रभाव उत्पन्न करती है। निजी निवेश की आवक में तेजी जैसा व्यय क्षेत्र का झटका अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है। खरीद और रोजगार में इजाफा होने पर मांग में भी बढ़ोतरी नजर आती है। हर व्यक्ति जो देखता है कि उसके मित्रों या परिजन को रोजगार मिल रहा है वह इसकी व्याख्या आर्थिक स्थिति में सुधार के रूप में ही करता है। इससे कई सकारात्मक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए ऋण में इजाफा, टिकाऊ वस्तुओं की खरीद में इजाफा, कारोबारी योजनाओं में अधिक निवेश आदि इसका उदाहरण हैं।
अर्थव्यवस्था के नीचे भारी विषमता है। ऐसा इसलिए कि कुछ कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा है और कुछ का पतन हो रहा है। ताजा दशक में जो कुछ घटा है उसने कई कंपनियों और कारोबारी नेताओं को भयभीत कर दिया है। हाल के महीनों में जो तेजी आई है, जरूरी नहीं कि वह सभी के लिए सकारात्मक दौर लेकर आए।
कंपनियों का एक समूह ऐसा है जो अवसर देख रही हैं और दोबारा निवेश की तैयारी में हैं। क्या इस स्थिति में हमें शुरुआत में सतर्क वृद्धि देखने को मिल सकती है जो कंपनियों के एक छोटे समूह की बदौलत हो तथा जो बड़ी वृद्धि के दौर की पृष्ठभूमि तैयार कर सके जहां सभी कंपनियों को लाभ उठाने का अवसर मिल सके। क्या मौजूदा आशावाद सन 1990 के दशक के मध्य या 2000 के दशक के आखिर की तरह तेज वृद्धि के दौर में बदल सकता है?
इस श्रृंखला में तीन संपर्क हैं। क्या क्रियान्वयन के अधीन निजी परियोजनाओं में यह तेजी निवेश में तेजी लाएगी जैसा कि विशुद्ध तयशुदा परिसंपत्ति के आंकड़ों में नजर आता है? क्या निवेश व्यय में इजाफे की यह उम्मीद मांग और रोजगार में गुणक प्रभाव उत्पन्न करेगी? क्या वृहद आर्थिकी में मामूली सुधार व्यापक निवेश और तेज वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी जैसा पहले दो अवसरों पर हो चुका है?
इन तीन सवालों को लेकर अगर आपका नजरिया सकारात्मक है तो फिर हम तीसरी तेज वृद्धि के दौर की ओर बढ़ सकते हैं।