IMF’s warning on recession
- जुलाई 19, 2022
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First there was the epidemic. Income needed support Due to it. In this situation, on the instructions of the political leadership, the central banks relaxed the monetary policy in an extraordinary way. After this, a few months ago, Russia attacked Ukraine, due to which the supply of everything started badly affected. If these two incidents are seen together, its effect is going to be very difficult.
The IMF has also said the same thing in its latest statement. In a limited statement, the IMF said, “The year 2022 is going to prove to be very difficult, while the year 2023 may bring even more difficulties as the risk of recession will increase significantly at that time.” With the fear of recession being raised, the question that naturally arises is whether we are heading towards a complete and widespread recession like the 1930s?
The IMF report said, ’75 central banks or nearly three quarters of the central banks we monitor have increased interest rates since July 2021′.
But in such a situation a question also arises that what will happen to the fiscal policies that support income in this situation? In this regard, the IMF says that countries where the level of debt has increased significantly, they will have to tighten their fiscal policy. This will help in reducing the burden of costly debt as well as supplement the monetary efforts to control inflation.
In the near future, the whole world may have to face the situation of increased prices and low income. Perhaps, it can be said that we are returning to the close of the 1930s.
The IMF has not said anything about fiscal policy. Whereas for a long time it has been considered as the boggle. It has always advocated for a tight control on the attitude of politicians, under which the emphasis is on immediate expenditure, even if it may cost someone else in the future.
In the end, it has to be seen how India’s performance is in these areas. You will be surprised to know that India’s performance has been great. Rather, it seems as if the IMF has followed India. India had already started tightening monetary policy before other countries. It also took extreme care in the management of fiscal policy.
मंदी पर आईएमएफ की चेतावनी
सबसे पहले महामारी आई. इसके चलते आय को समर्थन की आवश्यकता पड़ी. ऐसे में केंद्रीय बैंकों ने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देश पर मौद्रिक नीति को असाधारण ढंग से शिथिल किया. इसके पश्चात अभी कुछ माह पहले रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिससे हर चीज़ की आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित होनी शुरू हो गई. अगर इन दोनों घटनाओं को एक साथ मिलाकर देखा जाए तो इसका प्रभाव काफी मुश्किल खड़ी करने वाला है.
आईएमएफ ने भी अपने ताजा बयान में यही बात कही है. आईएमएफ ने एक सीमित वक्तव्य में कहा, ‘वर्ष 2022 काफी मुश्किल भरा साबित होने जा रहा है, जबकि वर्ष 2023 तो और भी कठिनाइयां ला सकता है क्योंकि उस समय मंदी का खतरा काफी बढ़ जाएगा।’ मंदी की आशंका जताए जाने पर यह सवाल लाजिमी तौर पर उठता है कि क्या हम सन 1930 के दशक की तरह पूर्ण और व्यापक मंदी की दिशा में बढ़ रहे हैं ?
आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है, ’75 केंद्रीय बैंक या हम जितने केंद्रीय बैंकों पर नजर रखते हैं उनमे से करीब तीन चौथाई ने जुलाई 2021 के बाद से ब्याज दरों में इजाफा किया है ’.
परंतु ऐसे में एक प्रश्न यह भी उठता है कि इस स्थिति में आय को समर्थन देने वाली राजकोषीय नीतियों का क्या होगा? इस विषय में आईएमएफ कहता है कि जिन देशों में कर्ज का स्तर काफी बढ़ा हुआ है उन्हें अपनी राजकोषीय नीति को सख्त बनाना होगा. इससे महंगे ऋण का बोझ कम करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने वाले मौद्रिक प्रयासों को भी पूरा किया जा सकेगा.
निकट भविष्य में पूरी दुनिया को बढ़ी हुई कीमतों और कम आय वाले हालात का सामना करना पड़ सकता है. शायद, कहा जा सकता है कि हम 1930 के दशक के करीब लौट रहे हैं.
आईएमएफ ने राजकोषीय नीति को लेकर कुछ नहीं कहा है. जबकि लंबे समय तक इसे ही हौआ माना जाता रहा है. इसने हमेशा राजनेताओं के उस रुझान पर कड़ा नियंत्रण रखने की हिमायत की है जिसके तहत तत्काल तो व्यय पर जोर दिया जाता है भले ही भविष्य में उसकी कीमत किसी और को चुकानी पड़े.
अंत में देखना होगा की इन क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा है. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत का प्रदर्शन शानदार रहा है. बल्कि लग तो यह रहा है मानो आईएमएफ ने भारत का अनुकरण किया हो. भारत ने अन्य देशों से पहले ही मौद्रिक नीति को सख्त करना शुरू कर दिया था. उसने राजकोषीय नीति के प्रबंधन में भी अत्यधिक सावधानी बरती।