व्यक्तिगत आय कर के मामले में दो विवादित विषय हैं- कृषि आय पर कर और व्यक्तिगत आय कर के अधीन प्रभावी रियायतें।

कृषि पर कर नहीं लगाने की बात को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता हैंः पहला, जमीन का मालिकाना औसत क्षेत्र (प्रति व्यक्ति) कम है और इसलिए इस क्षेत्र में औसत आय भी काफी कम है। ऐसे में इस पर कर नहीं लगाया जाना चाहिए।

Second, agriculture is considered a difficult sector to tax, with limited returns for the administrativeeffort required.

कृषि में दी जाने वाली रियायत से अन्य क्षेत्रों में कर वंचना के अवसर बनते हैं जहां आय को गलत तरीके से कृषि आय में दर्शाया जा सकता है। साथ ही यह भी सच है कि कृषि आय को कराधान के तहत लाने से देश में करदाताओं की तादाद भी बढ़ेगी। इससे आय कर व्यवस्था देश के नागरिकों का ज्यादा बेहतर प्रतिनिधित्व कर सकेगी। हालांकि इस सुधार को अंजाम देना मुश्किल हो सकता है।

व्यक्तिगत आय कर के तहत तय सीमा से कम आय वाले व्यक्तियों को कर नहीं चुकाना होता। हमारे देश में रियायत की सीमा समय-समय पर बढ़ाई जाती है। इसके अलावा सरकार निचले कर दायरे वाले लोगों को छूट प्रदान करती है जिससे रियायत की सीमा प्रभावी तौर पर बढ़ जाती है। इससे देश में संभावित करदाताओं की तादाद में और भी कमी आती है।

संसद में पेश दस्तावेजों के अनुसार एक-दो फीसदी नागरिक जो कर चुकाते हैं वे साल दर साल कम होती रियायतों को लेकर दुखी हैं। रियायत सीमा के लिए मुद्रास्फीति समायोजन का इस्तेमाल करने से इस दबाव को कम किया जा सकता है।

अतिरिक्त कर जुटाने की जरूरत के अलावा करदाताओं की संख्या में इजाफा कर व्यवस्था को अधिक निष्पक्ष बनाएगा। इसके परिणामस्वरूप कर भुगतान को लेकर दृष्टिकोण को सही दिशा में बढ़ावा मिल सकेगा।

R.K. Rao