पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने सुझाव दिया कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद को कर की दरें बढ़ाने पर गंभीरता से सोचना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि इससे न केवल कर राजस्व बेहतर होगा बल्कि मुआवजा उपकर की एक बार समाप्ति होने की स्थिति में नया शुल्क लगाने की आवश्यकता भी खत्म हो जाएगी।

उन्होंने एक कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘मेरा अपना विचार यह है कि मुआवजा उपकर को नए सिरे से नहीं लाना चाहिए क्योंकि इससे नैतिक खतरा उत्पन्न हुआ है। लिहाजा यदि वित्त आयोग को इसके लिए इंतजाम, प्रतिपूर्ति करने को कहा जाता है तो यह भी एक तरह से नैतिक खतरा है। इसका समाधान यह है कि दरें बढ़े, राजस्व बढ़े और मुआवजे की जरूरत कम हो।’

उन्होंने कहा कि भारत की जीएसटी प्रणाली 1 जुलाई 2017 में अपनाई गई थी और जीएसटी का लक्ष्य भारत के कर ढांचे को सुचारु बनाना था। हालांकि, यह प्रणाली अभी तक बेहद जटिल है। इसे सरल किए जाने की आवश्यकता है।

सुब्रमण्यन ने कहा, ‘जीएसटी प्रणाली बेहद जटिल है। अभी 50 (विभिन्न) उपकर दरें हैं। अगर हम अन्य चीजों पर नजर डालें तो यह दरें बढ़कर 100 हो सकती हैं।’

उन्होंने हाल के वर्षों में जीएसटी में अत्यधिक कर की मांग निरंतर बढ़ने पर चिंता जाहिर की और इसे ‘कर आतंकवाद’ करार दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की व्यवस्था में कर से संबंधित मसले रहे हैं लेकिन जीएसटी लागू किए जाने के बाद ऐसे मसलों में खासा इजाफा हुआ है। उनके अनुसार लक्ष्य इस समस्या के समाधान का होना चाहिए।