आयकर रिटर्न से मिली जानकारी अर्थव्यवस्था में नए पनपते कुछ रुझानों की झलक देती है। एक नया और उभरता हुआ रुझान है परोक्ष आय की हिस्सेदारी बढ़ना। वेतन और कारोबारी आय को प्रत्यक्ष आय की श्रेणी में रखा जाए और दूसरे सभी स्रोतों से हुई आय को परोक्ष आय माना जाए तो देख सकते हैं कि कुल बताई गई आय में परोक्ष आय की हिस्सेदारी कर निर्धारण वर्ष (असेसमेंट इयर) 2023-24 में 24 फीसदी हो गई है। यह हिस्सेदारी असेसमेंट इयर 2016-17 में 16 फीसदी ही थी।

इसमें आवास संपत्ति से हुई आय, दीर्घकालिक और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ तथा अन्य स्रोत मसलन ब्याज आय और लाभांश शामिल हैं। दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ में खास तौर पर बेहद तेज इजाफा हुआ और यह 2.36 फीसदी से बढ़कर 8 फीसदी हो गया।

सक्रिय पूंजी बाजारों और जानकारी की सुगम उपलब्धता और निवेश में आसानी के कारण फिनटेक के तेज विकास तथा छोटे निवेश की सुविधा ने निवेशकों की संख्या में बहुत अधिक विस्तार कर दिया है। डीमैट खातों की संख्या में इजाफा और खुदरा निवेश में बढ़ोतरी इसी का नतीजा हैं।

\इसे देखते हुए उम्मीद लगाई जाती है, कि व्यक्तिगत रिटर्न में आयकर के उद्देश्य से बताई गई आय में भी ऐसा ही बदलाव नजर आएगा।

इस अवधि में शेयर बाजार मूल्यांकन में सालाना 12 फीसदी से ऊपर की औसत वृद्धि हुई है जबकि आर्थिक झटकों के कारण वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आई है। निवेश वरीयता में बदलाव इसके कारण भी हो सकता है। कोविड के बाद के दौर में निजी पूंजीगत व्यय में कम बढ़ोतरी हुई, जो इस नई तस्वीर की चुनौतियां बताती है।

इस उभरती तस्वीर में चिंता का एक विषय यह है कि पूंजी बाजार में लगातार तेजी रहने से अर्थव्यवस्था में वास्तविक निवेश में रूकावट पैदा होगी।

वित्तीय निवेश के मुकाबले वास्तविक निवेश पर रिटर्न मिलने में बहुत अधिक समय लग ?है, इसलिए वास्तविक निवेश पर संभावित रिटर्न ज्यादा भी होना चाहिए। इन दो कारणों से कंपनियां भौतिक निवेश के बजाय वित्तीय निवेश के पाले में जाकर बैठ जाती हैं।

क्या यह चिंता का विषय है?

भारतीय अर्थव्यवस्था की मध्यम अवधि की वृद्धि अभी तक सरकार द्वारा होने वाले पूंजी निर्माण के ही सहारे रही है। केंद्र सरकार ने पिछले पांच सालों में पूंजी आवंटन में काफी इजाफा किया है। इस दौरान आवंटन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.6 फीसदी से बढ़कर 3.2 फीसदी हो गया है और अनुमान है कि 2024-25 में यह बढ़कर जीडीपी का 3.85 फीसदी हो जाएगा।

अगर वृद्धि की रफ्तार बनाए रखनी है तो निजी निवेश की ओर ध्यान देने की जरूरत है। नीति निर्माताओं को इसकी चिंता करनी चाहिए।