भारत को विनिर्माण प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और व्यापार प्रवाह को सहज बनाने के लिए कई कदम उठाने चाहिए, जैसेः

1. विनिर्माण योजनाओं पर पुनर्विचार होना चाहिए। नई योजनाएं अक्सर बेहतर प्रोत्साहन देती हैं लेकिन इनमें बदलाव की लागत भी होती है। जिससे वे कंपनियां बंद हो जाती हैं जो बदलाव नहीं अपनातीं।

2. मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर तभी हों, जब वे भारत के आर्थिक हितों के अनुकूल हों। हिंद प्रशांत आर्थिक व्यवस्था में डब्ल्यूटीओ के कई अतिरिक्त मानक भी हैं जिनसे भारत का हित नहीं सधता।

3. डिजिटल व्यापार, श्रम, पर्यावरण, कृषि और शुल्कों पर किसी भी तरह की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से पहले घरेलू कानून को ठीक किया जाए।

4. यूरोपीय संघ के लगाए अनुचित जलवायु कर का निर्णायक तौर पर जवाब दिया जाना चाहिए। मार्च 2018 में जब अमेरिका ने भारत के इस्पात और एल्युमीनियम आयात पर शुल्क लगाए तो भारत ने अमेरिका के 29 विशेष उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर जवाब दिया था।

5. सीमा शुल्क में कटौती की जाए। विशेषकर उन उत्पादों पर जिनमें आयातित कच्चे माल का इस्तेमाल होता है। कम शुल्क से तैयार सामान की लागत घटने से विनिर्माण के साथ-साथ निर्यात को बढ़ावा मिलता है, खासतौर से छोटी इकाइयों को लाभ होता है। जहां मेक इन इंडिया कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण कुछ उत्पादों पर उच्च शुल्क बरकरार रखे जा सकते हैं वहीं आम रुझान लघु उद्योग क्षेत्र की निर्यात संभावनाओं को बढ़ाने के लिए आयात शुल्क में कटौती का होना चाहिए।

6. नैशनल ट्रेड नेटवर्क (एनटीएन) बनाकर एकल खिड़की व्यवस्था लागू करके निर्यात अनुपालन को सहज बनाया जाए। इस एकीकृत नजरिये से निर्यातकों को सीमा शुल्क, विदेश व्यापार महानिदेशालय, शिपिंग कंपनियों, बंदरगाहों और बैंकों से अलग से बात करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। एनटीएन के जरिए प्रक्रिया को आसान बनाने से न केवल लागत और समय बचेगा बल्कि छोटे उद्योग निर्यातक बनने में सक्षम हो सकेंगे।

7. ऊर्जा आयात से निपटने की जरूरत है। अनुमानित वृद्धि के अनुसार ऊर्जा आयात बिल दिसंबर 2026 तक एक लाख करोड़ डॉलर पार कर सकता है। 80 के दशक में भारत कच्चे तेल की अपनी 85 प्रतिशत जरूरत मुख्य रुप से ओएनजीसी के बॉम्बे हाई ऑफशोर तेल क्षेत्र से पूरी करता था लेकिन आज हम अपनी जरूरत का 85 फीसदी आयात करते हैं। घरेलू तेल अन्वेषण पर दोबारा ध्यान देकर यह निर्भरता घटाई जा सकती है।

8. भारत का निर्यात प्रदर्शन बढ़ाने के लिए गैर शुल्क बाधाओं को हटाने को प्राथमिकता। इन बाधाओं के कारण अक्सर भारतीय उत्पादों की ज्यादा जांच होती है या उन्हें खारिज कर दिया जाता है। इससे निपटने के लिए भारत को अपना घरेलू तंत्र सुधारना चाहिए, खास तौर से उन मामलों में जो उत्पाद की गुणवत्ता से जुड़े हैं।

कुल मिलाकर वैश्विक व्यापार की उभरती नई तस्वीर नीतिगत बदलाव और रणनीतिक कदमों की जरूरत पर जोर देती है। जिस तरह से अमेरिका और यूरोपीय संघ स्थानीय उत्पादन और आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं, भारत भी विनिर्माण के नए दौर के मुहाने पर है।

भारत जैसे-जैसे इन चुनौतियों से निपट रहा है और अवसरों को अपना रहा है तो उसे वैश्विक व्यापार की उभरती नई व्यवस्था में अपने हितों की सुरक्षा के लिए पहले से सक्रिय होना होगा और अनुकूल बनना पड़ेगा।