कोई भी सृजनात्मक कार्य कश्टकर होता है, चाहे वह किसी जीव का प्रजनन हो या किसी बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया हो। दशकों से एक व्यवस्था चली आ रही हो तो सभी कोई उस प्रक्रिया के आदी हो जाते है। और जब उसमें कोई थोड़ी सी भी बदलाव हो तो असुविधा तो होती ही है। 

सबसे पहला सवाल तो यही होता है कि ‘कोई भी‘ बदलाव आवश्यक है क्या? समय की गति के साथ साथ विज्ञान की उन्नति से सभ्य समाज में, और उसके परिणाम स्वरूप व्यापार के तौर तरिकों में बदलाव अवश्यम भावी है। सृश्टि के आरंभ से लेकर इस बाईसवीं सदी तक परिवर्तन ही एकमात्र सत्य है।

एक विशेष समय में जो तकनीक, व्यवस्था या परंपरा कारगर रही थी, जो भी उस तकनीक की सफलता में मदहोस और चिपका रहा रहा, वो इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया। जिसने कश्ट सहकर भी नई तकनीक में निवेश किया, वहीं संस्था आज भी गतिमान है। 

इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती। जिन देशों (के व्यापारियों) ने, स्वनिर्माण के महंगे उत्पादों पर तरजीह देते हुए, (तात्कालिक फायदे के लिए) सस्ते आयात आयात पर भरोसा किया, अंततः सभी इससे परेशान ही हुए हैं। फिर चाहे वह अमेरिका जैसा उन्नत देश ही क्यों ना हो। ऐसे सभी देशों को, अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए, पुनः अपनी सारी उर्जा और नीतियां, स्वदेशी विनिर्माण पर केंद्रित करनी पड़ रही है। 

हम चर्चा कर रहे है कि क्यूसीओ की, जिससे बीआईएस के तकनीकी मानको को उत्पाद (एवं उद्योग) में अनिवार्य कर दिया गया है।

1996 तक के उत्तर पूर्व के प्लाईवुड निर्माण के दौर के बाद प्लाईवुड और पेनल निर्माण में बहुत बदलाव देख लिए है। पोपलर सफेदा से आरंभ करके मीलीया डूबिया जैसे कई तरह के पेडों का उपयोग करते हुए, पेनल उद्योग MDF, PB जैसे विभिन्न तरह के उत्पाद कामयाबी से बनाने में सक्षम हो गया है।

IS 303 के मानकों में बदलाव करते हुए इसे इतना लचीला बना दिया गया है, कि हल्के से हल्का प्लाईवुड भी बीआईएस के परीक्षण में उत्तीर्ण हो सकता है। इसका अर्थ यह है कि अब कोई भी यह नहीं कह सकता है कि उसकी फैकट्री बीआईएस के मानकों का पालन नहीं कर सकती है।

और सबसे बड़ी बात QCO नोटिफिकेशन में यह स्पष्ट किया गया है कि बीआईएस के मानकों में समय समय पर होने वाले आगामी बदलवों को तदअनुसार स्वीकार किया जाता रहेगा। अब यह उद्योग पर निर्भर है, कि वह अपने कार्य क्षेत्र में आ रही दिक्कतों को बीआईएस के समक्ष प्रस्तुत करें और उसका समाधान और स्पष्टिकरण प्राप्त करें।

भारत के आयात और निर्यात में अंतर (ट्रेड डेफिसिट) नवंबर में 38 अरब डॉलर था, जिसे कम करना देशहित में आवश्यक है जिसमें सरकार के साथ साथ उद्योग की भी सहभागिता है।

हां, इसके लिए, कच्चे माल के लिए, वृक्षारोपण में सहयोग, और आयात में रियायत, के लिए सरकार से सहयोग का आग्रह करना अपेक्षित है। 

अब उद्योग को QCO का तहेदिल से स्वागत करना चाहिए और अपनी सारी उर्जा इसे सफल बनाने में करनी चाहिए।

 

सुरेश बाहेती

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