Loan waivers
- जनवरी 16, 2020
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Loan waivers: more harm than good for farmers?
Now if a farmer in Madhya Pradesh has to apply urea to his crop tomorrow, in most cases he will go to the nearest cooperative society or government outlet today and pay for his requirement in cash. This is simply because he is no longer eligible for credit. The other option for him is to buy from a private dealer at a higher price in the black market.
Why have things come to such a pass for many of Madhya Pradesh’s farmers? Some believe it is mismanagement at the local level and blame the much-talked about farm loan waiver scheme for the urea crisis.
They say that because of the loan waiver, several farmers haven’t renewed their short-term loan accounts.
As a result, they have become ineligible for fresh seeds and fertilisers on credit.
Though unproved, if the allegations are found to be true, it could be another black spot on farm loan waivers, which have themselves come in for severe criticism from a section of policymakers and experts on the grounds that they do more harm than good to farmers in the long run.
Most have prescribed loan waivers for farmers as short-term band-aid, not a permanent solution to the problems facing India’s farm sector, be it lack of investment, low farm-gate price, poor storage and lack of market reforms in agriculture.
Impact on bank NPAs
Worse, loan waivers also impact the banking sector in states that have announced such schemes.
In Madhya Pradesh, the latest report of the State Level Bankers Committee said that the farm-debt waiver scheme, the ‘Jai Kisan Fasal Rin Maafi Yojana,’ has brought about a spike in the NPAs of the banks in the state.
NPA or non-performing assets of banks in Madhya Pradesh registered a sharp increase of Rs 2,949 crore between December 2018 and September 2019 as compared to the same period in the previous year.
“Besides this, the mounting overdues are a serious problem for the banks. This is an obstacle in recycling of funds with the credit institutions,” the SLBC report said.
It added that farmers in several places are waiting for the receipt of the waiver amount and it is likely that that they will start operating their accounts after getting their hands on it.
Subsidised seeds and fertilisers aren’t available on credit against accounts that haven’t been renewed.
किसान ऋण माफी: नफा या नुकसान का सौदा?
अब अगर किसी किसान को अपने खेत में कल यूरिया का छिड़काव करना है तो ज्यादातर मामलों में वह नजदीकी सहकारी समिति या सरकारी दुकान जाएगा और नकद भुगतान के बाद एक दिन पहले यूरिया ले पाएगा। इसकी वजह यह है कि ये किसान ऋण माफी योजना के बाद अब ऋण पर बीज एवं उर्वरक खरीदने के पात्र नहीं रह गए हैं। सरकारी माध्यमों से यूरिया उपलब्ध नहीं होने पर किसानों के लिए निजी डीलरों से ऊंचे दाम पर इस उर्वरक की खरीद के अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह जाता है।
कुछ का मानना है कि स्थानीय स्तर पर कुप्रबंधन और किसान ऋण माफी योजना यूरिया संकट के लिए मौटे तौर पर जिम्मेदार है। उनका कहना है कि ऋण माफी योजना के कारण कई किसानों ने छोटी अवधि के अपने ऋण खातों का नवीकरण नहीं किया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि वे नए बीज एवं उर्वरक ऋण लेकर खरीदने के योग्य नहीं रह गए हैं। अगर ये आरोप सही साबित हुए तो कर्ज माफी योजना पर यह एक काला धब्बा साबित हो सकता है। नीति निर्धारक और विशेषज्ञ कई बार कृषि ऋण माफी योजना की आलोचना कर चुके हैं। उनका मानना है कि इससे किसानों को लाभ के बजाय दीर्घ अवधि में नुकसान अधिक होता है। ज्यादातर विशेषज्ञों ने ऋण माफी को अस्थायी समाधान बताया है। दरअसल किसानों की खस्ता हालत की वजह कृषि क्षेत्र में निवेश का अभाव, उपज की कम कीमत, भंडारण क्षमता का अभाव और कृषि क्षेत्र में बाजार सुधार के उपायों की कमी है।
ऋण माफी से उन राज्यों में बैंक की गैर- निष्पादित परिसंपित्तयां (एनपीए) भी बढ़ी हैं, जिन राज्यों में इसकी घोषणा हुई है। बैंको का बढ़ता बकाया भी गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है। इससे वित्तीय संस्थानों को नए ऋण देने में मुश्किलें पेश आ रही हैं।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि कई स्थानों पर किसान ऋण माफी का प्रमाण पत्र (रिसीट) मिलने का इंतजार कर रहे हैं और ऐसा लगता है कि प्राप्ति के बाद ही वे अपने खाते का परिचालन शुरू करेंगे। जिन खातों का नवीकरण नहीं हुआ है, उनके लिए बीज एवं उर्वरक ऋण पर उपलब्ध नहीं हैं।