अनिवार्य बीआईएस मानकों को लेकर क्या स्थिति हैं?

अनिवार्य बीआईएस मानक लागू होने से निश्चित ही उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ेगी पर सभी को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। कम गुणवत्ता के उत्पाद खुद ब खुद मार्केट से बाहर हो जाएगें। विदेश से जो सस्ता माल भारत में आ रहा है, इस पर भी रोक लगेगी।

जिससे निश्चित ही भारत के लकड़ी आधारित उद्योग को लाभ होगा। आईएसआई अनिवार्य होने के बाद उन फैक्ट्री संचालकों पर भी रोक लगेगी जो नियमों को ताक पर रख कर काम कर रहे हैं। इससे बाजार में स्थिरता आने में मदद मिलेगी। बस यह ध्यान रखना होगा कि गुणवत्ता के चक्कर में उत्पाद की लागत इतनी न बढ़ जाए कि आम उपभोक्ता इसे खरीद ही न पाए। गुणवत्ता के मानक इस तरह से होने चाहिए कि वह उद्योगपतियों और खरीदार दोनों के लिए सुविधाजनक हो।

यह कैसे संभव होगा?

हम बीआईएस के संपर्क में हैं। अभी हाल में हरियाणा प्लाईवुड मैन्यूफैक्चर एसोसिएशन के प्रधान होने के नाते बीआईएस को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में हमने एमओआर/एमओईफ, क्रास बांड, स्पॉट टेस्ट, फेसविनियर के साइज को लेकर अपनी ओर से सुझाव दिए हैं। उम्मीद है कि बीआईएस हमारी बात समझेगी और मानकों को उद्योग के अनुकुल कर देंगे। पिछले दिनों में यमुनानगर में सिर्फ प्लाइउड के तकरीबन 200 लायसेंस की स्टाप मार्किंग होने की सूचना है।

आपकी ओर से क्या सुझाव दिए गए हैं?

अभी एमओआर एमओएफ का मानक 36/40 और 3600/4000 है। इस मानक का उत्पाद तैयार करना आज की परिस्थितियों में संभव नहीं है। क्योंकि यह मानक तब के हैं, जब लकड़ी जंगल से आती थी,अब कृषि वानिकी से लकड़ी आ रही है। इसलिए मानक में बदलाव होने चाहिए। यह मानक अब 24/27 और 2400/2700 होने चाहिए।

क्रास बांड को लेकर भी हमने छूट मांगी थी। कोर का साइज अब 1.50 एमएम तक हो गई है। ऐसे में यदि दो कोर को क्रांस बांडिंग कर दी जाए तो मोटाई तीन एमएम तक हो सकती है। उल्लेखनीय है कि, अब IS 710 में भी वन लकड़ी को प्रतिबंधित कर दिया गया है।

Vidyalam Laminates gif

इसके अलावा, जो लकड़ी फफूंदी और कीट के प्रभाव से मुक्त है, उदाहरण के लिए पोपलर, सफेदा, मिलिया दुबिया जैसी किस्मों के पेड़ की लकड़ी को उपचार से मुक्त किया जाना चाहिए। फेस विनीयर में भी हमारी मांग है कि इसे 0.30 एमएम कर देना चाहिए। जोकि अभी भी मानकों में 1.0 एमएम है। यह नितांत अव्यवहारिक है। फेस शुद्ध आयात पर निर्भर है। अतः इसकी मोटाई पूर्ववत रखे जाने पर आयात खर्च चार गुना बढ़ जाएगा।

लाइसेंस की फीस को लेकर भी कई उद्योगपति चिंता में हैं

लायसेंस की फीस थोड़ी ज्यादा है। इससे उद्योगपतियों पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ सकता है। हालांकि सूक्ष्म इकाइयों की फीस में 80 प्रतिशत तक कम कर दी गई है। हमने इस संबंध में BIS को आग्रह किया है कि छोटी इकाइयों (स्माल स्केल) की भी फीस कम हो जाए तो सभी उद्योग के लिए सहायक हो सकता है। एक लायसेंस की फीस तकरीबन 35 हजार रुपए है, यदि किसी के पास चार उत्पादों के लाइसेंस है तो बड़ी राशि फीस में चली जाएगी। इस पर यदि सैंपल फेल आ गया तो खर्च और बढ़ जाएगा। हालांकि यमुनानगर देश का दूसरा ऐसा जिला है, जिसमें सबसे ज्यादा 810 लाइसेंस है।

सभी लाइसेंस अनिवार्य करने से अब यह भी हो सकता है कि उत्पादक किसी उत्पाद विशेष पर ही ध्यान देंगे। क्योंकि इतने लाइसेंस को वहन करने में आर्थिक रूप से दिक्कत आ सकती है। यह एक तरह से सही भी हो सकता है और एक उद्योग एक उत्पाद का नया चलन हो सकता है। फिर भी फीस को लेकर बीआईएस को हमारे आग्रह पर विचार करना चाहिए।

प्रयोगशाला बनाने पर भी अतिरिक्त खर्च आएगा

सूक्ष्म इकाइयों के लिए यह भी प्रावधान किया गया है कि कई इकाईयों के लिए एक प्रयोगशाला का उपयोग किया जाए। दस सेे 20 यूनिट संचालक एक ही प्रयोगशाला में सैंपल की जांच करा सकते हैं। इसमें पांच लाख़ से कम वार्षिक आय और एक करोड़ टर्नओवर से कम की यूनिट को सूक्ष्म इकाइयों में शामिल किया गया है। यमुनानगर और हरियाणा में इस तरह की कई यूनिट है। इसलिए प्रयोगशाला बनाने को लेकर ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी।

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