India’s commodity export to exceed $ 400 billion in the financial year 2021-22 is nothing less than an achievement.

This is a positive change, which has made India one of the frontline countries of the world in the export sector. Increasing exports has a positive effect on the country’s exchange rate, inflation, interest rate, etc. Employment opportunities are created, foreign exchange reserves increase, manufacturing sector is encouraged and the revenue collection of the government also increases. The increasing share of exports in India’s GDP shows that the country is moving towards self-reliance.

The need of the hour is to focus on quick resolution of issues related to export of MSMEs and Startups. Digital platform has been promoted while simplifying the tax filing process, thereby saving time, energy and money. In the new trade policy of the government, emphasis has been laid on assessing the trade potential of various countries and further strengthening the export prospects in the existing markets. It is because of the government’s commitments and improvement in the quality of Indian products that the world’s trust in the Make in India brand is increasing.

If we compare India’s exports with China’s exports, then India’s exports are very less. If exports are to increase, then the country will have to work fast towards making it a manufacturing hub. There is a great demand for quality products in the world market. Today, along with increasing the quality of India’s products, it has to be made competitive.

It is generally believed that Chinese products are cheaper due to higher numbers of to cheap labour in china. A worker in China produces 1.6 times more than a worker in India.

China not only produces cheap goods, but also produces about 60 percent of the world’s branded luxury goods. To increase the efficiency of the workers in India, the skill development training program should be directly linked with the industries, which will increase the productivity and efficiency of the workers as well as develop managerial capacity.

Exporters should be encouraged to produce quality products. This will not only increase employment. Rather, their cost will also come down. For the expansion of the logistics sector, the state governments and the private sector will have to work together with the central government. Every state has to play an active role for participation in exports as well as work towards attracting foreign investment, only then can the country be made an export based economy.

The trade theory of economics holds that the goods which India can produce at low cost should be encouraged to produce them in the country itself.

Sustainability in export growth requires greater focus on exports of primary products as well as manufactured goods. For this, important work will have to be done in the direction of strengthening domestic manufacturing units to increase the export of goods. In fact, exports can play an important role in achieving the goal of making India a five trillion dollar economy.


निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था का मंत्र


वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वस्तु निर्यात 400 अरब डालर से अधिक हो जाना किसी उपलब्धि से कम नहीं है।

यह एक सकारात्मक बदलाव है, जिसने भारत को निर्यात क्षेत्र में विश्व की अग्रिम पंक्ति के देशों में खड़ा करने का काम किया है। निर्यात बढ़ने से देश की विनिमय दर, मुद्रास्फीति, ब्याज दर आदि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रोजगार के अवसरों का सृजन, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन एवं सरकार के राजस्व संग्रह में भी वृद्धि होती है। भारत की जीडीपी में निर्यात की बढ़ती हिस्सेदारी बताती है कि देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है।

एमएसएमई और स्टार्टअप के निर्यात से जुड़े मुद्दों के त्वरित समाधान पर बल दिया जाना समय की मांग है। टैक्स फाइल प्रक्रिया को आसान बनाते हुए डिजिटल प्लेटफार्म को प्रोत्साहन दिया गया है, जिससे समय, ऊर्जा और धन की बचत बढ़ी है। सरकार की नई व्यापार नीति में विभिन्न देशों की व्यापार क्षमता का आकलन कर ऩए और मौजूदा बाजारों में निर्यात की संभावनाओं को अधिक मजबूत करने पर बल दिया गया है। भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार एवं सरकार की प्रतिबद्धताओं का ही परिणाम है कि दुनिया में मेक इन इंडिया ब्रांड पर भरोसा बढ़ रहा है।

यदि हम चीन के निर्यात के साथ भारत की तुलना करें तो भारत के निर्यात बहुत कम हैं। यदि निर्यात में वृद्धि करनी है तो देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में तेजी से कार्य करना होगा। विश्व बाजार में गुणवत्तायुक्त उत्पादों की बहुत अधिक मांग है। आज भारत के उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ प्रतिस्पर्धी भी बनाना होगा।

आम तौर पर यह मत है कि चीन में श्रमिकों की संख्या अधिक होने से चीनी उत्पादों की लागत कम है वास्तव में मूल कारण श्रमिकों की संख्या का अधिक होना नहीं, बल्कि चीनी श्रमिकों की उत्पादकता अधिक होना है। चीन का एक श्रमिक भारत के श्रमिक की तुलना में 1.6 गुना अधिक उत्पादन करता है।

चीन केवल सस्ती वस्तुओं का ही उत्पादन नहीं करता, बल्कि विश्व के लगभग 60 प्रतिशत ब्रांडेड लक्जरी वस्तुओं का उत्पादन भी करता है। भारत में श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम को सीधे तौर पर उद्योगों के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जिससे श्रमिकों की उत्पादकता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होने के साथ प्रबंधकीय क्षमता का भी विकास होगा।

निर्यातकों को गुणवत्तापूर्ण उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इससे न केवल रोजगार बढ़ेगा। बल्कि उनकी लागत में भी कमी आएगी। लाजिस्टिक क्षेत्र के विस्तार के लिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र को मिलाकर काम करना होगा। प्रत्येक राज्य को निर्यात में भागीदारी के लिए सक्रिय भुमिका निभाने के साथ-साथ विदेशी निवेश को भी आकर्षित करने दिशा में कार्य करना होगा, तभी देश को निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाया जा सकता है।

अर्थशास्त्र का व्यापार सिद्धांत यह मानता है कि जिन वस्तुओं का उत्पादन भारत कम लागत पर कर सकता है, उनका उत्पादन देश में ही करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

निर्यात वृद्धि में स्थायित्व के लिए प्राथमिक उत्पादों के साथ-साथ विनिर्मत वस्तुओं के निर्यात पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए वस्तुओं के निर्यात को बढ़ाने के लिए घरेलू विनिर्माण इकाइयों को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य करना होगा। वास्तव में भारत को पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने में निर्यात महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।