The market is undergoing reformation which is causing commotion and driving the business to a specified direction. Everything will settle down once the market will adapt to the new modus operandi.


What is your perspective about the market?



The way we worked was not systematic, which is now getting the correct methodology. So we feel as if there are issues in the business. These problems will get fixed in a short span.

The end result will definitely be encouraging, and will lead to rapid improvement in the market. The market is improving regularly and, we should accept it wholeheartedly. This will facilitate our business in the times ahead.

All old equations are disturbed whenever there is any social-economic or commercial change. It is not an easy process for everyone to go through comfortably because it unstables the traditional methodology. But everything will be fine as soon as things are done systematically.

People were used on adjustments in the bills which will not be possible anymore. With effect from 1 October, e-way bill has been imposed on industrialists having an annual turnover above Rs. 10 crores. From January 1, e-waybills have been imposed on those with annual billing turnover of Rs. 5 crores. E-way bill is expected to be rolled out from the year 2023 on annual invoices of Rs. 1 crore. With the government’s efforts, a fundamental change is shaping up.


How do you see the problems associated with technical grade urea?



The industry is under a lot of pressure when it comes to technical grade urea. A new system of ‘Single Brand Urea’ has been introduced. This can reduce the problem of plywood manufacturers to a great extent as technical grade urea will be easily available to them.

The problem can be alleviated significantly if the plywood manufacturer gets urea at the market price. The government is taking these measures. Even the agriculture sector won’t need granular urea anymore with the advent of nano urea as granular urea will only be used in the industry, while nano urea will be used in agriculture. It is also a major improvement.


There is a huge price difference between the two.



The government is taking the necessary steps. Now the onus is on the manufacturer to do the right thing. We should use technical grade urea only so that all manufacturers will have equal costs. This will automatically eliminate the difference between market rates. In the present scenario, some manufacturers are using technical grade urea, while others are still not giving up on agricultural urea as it lowers their cost.

So it’s a longstanding problem. But now, as the Prime Minister’s attention shifted to this concern, we can expect that everything will be fine till March, 2023. The diligent would be benefitted while the offender would have to be either fined or taken out from the game.


What do you expect in future?



We cannot expect a good recovery in the market unless all the manufacturers agree to earn money through hard work by reducing the cost and manufacturing quality products simultaneously. How much profit a manufacturer derives personally if there’s any fraud or embezzlement in the industry, like billing, bad quality or affixing a wrong seal? These are hot and never-ending issues. What kind of business approach is this to consume our energy for benefitting someone else and get ourselves labeled as a thief? Every manufacturer should think practically.


So there will be a difference between the costs?



It has no definition; it’s just the mindset and it does not make much difference. Because then there will be competition of quality, brand and potential. ‘B’ grade products cannot compete with ‘A’ grade products, and we need to understand this fact. So there’s no big issue about price differences. However, there must not be any difference in the basic costing. Currently it is a matter of technical grade urea and agricultural urea, due to which there is a huge difference in costing. The same thing happens with the GST.

There is only one particular problem for the manufacturer, wholesaler and dealer, and i.e. invoiced bill and non-invoiced bill. So, a person who is selling GST-invoiced products cannot compete with the one who is selling products on non-invoiced bills. So there’s a massive price difference. However, there is an improvement in this direction. Undoubtedly, it is imperative that we do fair work and move away from the old techniques to ensure our bright future, and to make future generations feel safe and comfortable doing business.



बाजार सुधार की प्रक्रिया में है


बाजार सुधार की प्रक्रिया में हैं, इसलिए जो दिक्कत दिख रही है, वह वस्तुतः उथल-पुथल की प्रक्रिया है, जो व्यापार को एक निर्दिष्ट दिशा में हमें ले जा रही है जब बाजार पूरी तरह से नये सिस्टम में आ जाएगा तो सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा


बाजार को अब आप किस नजरिए से देख रहे हैं?



हमारे काम करने की शैली सिस्टेमैटिक नहीं थी। जो अब सिस्टम में आ रही है। इसलिए ऐसा महसुस हो रहा है कि व्यापार में दिक्कत है। जो कि कुछ समय की दिक्कत है, इसके बाद जो परिणाम आएंगे, निश्चित ही वह उत्साहवर्धक होंगे। इससे बाजार में तेजी से सुधार आएगा। हम महसूस कर रहे हैं कि बाजार में सुधार आ भी रहा है। इसका हमें स्वागत करना चाहिए। इससे आने वाले समय में हमारे लिए व्यापार करना आसान हो जाएगा।

जब भी कभी सामाजिक आर्थिक या व्यापार में कोई बदलाव होता है, सारे पुराने समीकरण ध्वस्त होते है। यह बदलाव की प्रक्रिया सभी के लिए कोई आसान भी नहीं होती है। क्योंकि परंपरागत कार्यप्रणाली अस्त व्यस्त हो जाती है। लेकिन एक बार जब सब कुछ सिस्टमेटिक हो गया तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।

पहले कुछ लोग बिल आदि में ऊपर नीचे करते थे। वह बंद हो जाएगी। अब एक अक्टूबर से दस करोड़ के सालाना टर्नओवर से ईवेबिल लगाया है। एक जनवरी से पांच करोड़ के सालाना बिल वालों पर टर्नओवर से उपर ईवेबिल लगा दिया है। उम्मीद है सन् 2023 से एक करोड़ सालाना बिलों पर ईवेबिल लागू हो जाएगा। सरकार के प्रयासों से व्यापार करने की कार्य प्रणाली में मूल भूत परिर्वतन आ रहा है।


टेक्निकल यूरिया की समस्या को कैसे देखते हैं?



टेक्निकल यूरिया को लेकर उद्योग दबाव में है। सिंगल ब्रांड यूरिया का नया सिस्टम लाया गया है। इससे प्लाईवुड निर्माता की समस्या काफी हद तक कम हो सकती है। टेक्निकल यूरिया आसानी से प्लाईवुड निर्माता को मिल सकेगी।

बाजार भाव पर प्लाईवुड निर्माता को यूरिया मिले तो समस्या बहुत हद तक कम हो सकती है। ऐसी व्यवस्था सरकार कर रही है। नैनो यूरिया आने से यूं भी दानेदार यूरिया की जरूरत कृषि क्षेत्र में रहेगी ही नहीं। क्योंकि तब दानेदार यूरिया सिर्फ इंडस्ट्री में प्रयोग होगा और नैनो यूरिया कृषि में प्रयोग होगा। यह भी बड़ा सुधार है। दोनों की किमतों में बहुत अंतर है।

सरकार अपनी ओर से प्रयास कर रही है। अब उद्योगपति की जिम्मेदारी है कि वह सही काम करे। हमें शत-प्रतिशत टेक्निकल यूरिया इस्तेमाल करना चाहिए। इससे होगा यह है कि सभी निर्माताओं की कॉस्टिंग बराबर होगी। इस तरह से बाजार में रेट को लेकर जो अंतर होता है, वह अपने आप खत्म हो जाएगा।

अभी होता यह है कि कुछ निर्माता टेक्निकल यूरिया इस्तेमाल कर रहे हैं, वही कुछ अभी भी कृषि योग्य यूरिया छोड़ नही पर रहे है। जाहिर है, उनकी कॉस्टिंग कम आएगी। इसलिए यह समस्या तो लंबे समय से बनी थी। लेकिन अब प्रधानमंत्री का इस ओर ध्यान चला गया। इसलिए मार्च 2023 तक सब कुछ ठीक हो जाएगा ऐसी आशा करनी चाहिए। अच्छा काम करने वालों को फायदा होगा। गलत काम करने वालों को या तो सुधरना होगा, या फिर उन्हें गेम से बाहर होना पड़ेगा।


भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं?



जब तक सभी उद्योगपति इस बात पर नहीं आएंगे कि हमें मेहनत से पैसा कमाना है। या यूं कहें कि अच्छा माल बना कर पैसा कमाना है। और हमें अपनी कॉस्ट कम कर और क्वालिटी बढ़ा कर व्यापार करना है। तब तक बाजार में अच्छे सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती।

अगर आज उद्योग में चोरी होती है चाहे वह बीलींग हो या क्वालिटी में हो या गलत मोहर लगाने की हो उसका फायदा उद्योगपति के हिस्से में कितनी आती है। यह ज्वलंत और शाश्वत प्रश्न हैं। अपनी सारी उर्जा हम किसी और के फायदें में लगा दे और अंत में चोर का ठप्पा लगवाएं। यह कैसी व्यापारिक सोच है? निर्माता को व्यवहारिक तरिके से सोचना ही चाहिए।


फिर सस्ते महंगे का अंतर तो रहेगा?



इसकी कोई परिभाषा नहीं है। यह माइंडसेट है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि तब क्वालिटी ब्रांड और काबिलियत का कंपटीशन होगा। बी ग्रेड माल का मुकाबला ए ग्रेड से नहीं हो सकता। इस तथ्य को समझना होगा। इसलिए महंगे सस्ते का कोई बड़ा सवाल नहीं है। होना यह चाहिए कि कास्टिंग में अंतर न आए। क्योंकि अभी टेक्निकल यूरिया और कृषि योग्य यूरिया का सवाल है, जिससे कास्टिंग में खासा अंतर आ जाता है।

इसी तरह से जीएसटी सिस्टम है। निर्माता, होलसेलर और डीलर के लिए एक ही समस्या है, वह है कच्चा पक्का। यानी कोई कच्चे बिल पर माल बेच रहा है तो इससे कैसे मुकाबला किया जा सकता है। क्योंकि दूसरा माल बेच रहा है जीएसटी देकर। इस तरह से कीमतों में भारी अंतर आ जाता है। हालांकि इस दिशा में सुधार हो रहा है। इसमें दो राय नहीं कि हमारे उज्जवल भविष्य के लिए पुराने तौर तरीको से दुर होकर साफ-सुथरा काम करना जरूरी है। जिससे हमारी आने वाली पीढी व्यापार करने में सुरक्षित और आनंदित महसुस करे ।