• डॉ आनंद नंनदवारः अगली CED20 की मीटींग में इस ओर ध्यान दिया जाएगा।
  • सोनू अग्रवाल
  • बीआईएस व्यापार करने का तरीका आसान बनाए:

आनंद जी की बात सुन कर पता लगा कि लगभग सारे पहलुओं को कवर कर लिया गया है। एक समस्या रह गई है, कि जो सैंपल लिए जाते हैं, वह एक साल में छह सैंपल लिए जाते हैं। एक सैंपल फेल हो गया तो इनकी संख्या 12 हो जाएगी। साल में 12 सैंपल एक लाइसेंस के लिए हैं। हम सामान्यतः प्लाइवुड, बोर्ड के अलावा डोर और सैटरिंग का भी लाइसेंस लेते हैं तो शायद हर सप्ताह ही सैंपल लिए जाएंगे।

3500 इंडस्ट्री है, इसमें 20 तो बड़ी है 100 मध्यम दर्ज की है, बाकी 3400 के आस पास छोटी और सुक्ष्म है। लगभग 2500 ने अभी तक लायसेंस के लिए आवेदन ही नहीं किया है।

इतने सैंपल की बात सुन कर वह कैसे उत्साहित और संतुष्ट होंगे। जब हम उन्हें समझाते हैं तो हमारे मन में ही दुविधा आती है कि इतने सैंपल हम वहन नही कर पा रहे हैं, वह कैसे वहन कर पाएंगे?

यह बिजनेस को आसान करने का तरीका तो नहीं है। होना तो यह चाहिए कि BIS में सैंपल की प्रक्रिया कम होनी चाहिए। दूसरा जो श्रेणी तय की गयी, F10 / E10 को क्या इसे उत्पाद के अलावा लाइसेंस में लिखेंगे, या बिल पर भी।

इसे कैसे अमल में लाया जाएगा। इसे अमल में लाना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इससे उद्योग की समस्या तो दूर हो सकती है, लेकिन इसे व्यवहारिक रूप से कई तरह के संशय आ सकते है। फेस में जो सी ग्रेड श्रेणी बनायी गई है, वह, निश्चित ही अच्छा कदम है।

प्रक्रिया आसान होगी तो भी कोई लाइसेंस लेने से हिचकिचाएगा नहीं इसलिए सैंपल की संख्या कम होनी चाहिए।

सुक्ष्म इकाईयों की लाइसेंस को जो 80 प्रतिशत का अनुदान मिलता है, वह आन लाइन नहीं मिल रहा है। इससे उद्योग में अनिश्चितता का माहौल है। इसे दूर कर MSME उद्योग को राहत प्रदान किया जाना चाहिए।

  • डॉ सीएन पांडे

वस्तुतः यह उद्योग की ही मांग थी कि कम वैल्यू के उत्पाद को रिजेक्ट ना करना पड़े। अब हमने जितनी रेंज बना दी है उसमें MOR-MOE की निम्नतम वेल्यू को सममाहित कर लिया गया है। हमें यह समझने की जरूरत है कि इसे सरल भाषा में कैसे समझाया जाए। जो पैकिंग ग्रेड का माल है उसे F10 के वर्ग में और जो उच्चतम ग्रेड का माल है उसे F50 में लिया गया है।

  • डॉ आनंद नंनदवार

प्लाईवुड के उर्जा सहन करने की (load bearing capacity) को ध्यान में रखते हुए ही इन मानकों को बनाया गया है। यह विवरण बताने और समझने की आवश्यकता है कि F10 किस वर्ग के ग्राहकों के लिए हैं, उसी तरह F20 या F50 किन ग्राहकों के लिए है। यह उत्पादक, विक्रेता और अंतिम ग्राहक सभी के समझने के लिए जरूरी है। इसे हम आगामी बैठकों में चर्चा करेंगें।

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जहां तक सैंपल की बात है, इसकी व्यवहारिकता भी जांचने का विषय है कि एक उत्पादक से साल भर में कितने सैंपल लिए जाने चाहिए। तकनीकी विषय अलग रखते हुए। इसे BIS के साथ वार्तालाप होनी चाहिए।

  • डॉ सीएन पांडे

हम जैविक कच्चे माल से अपना उत्पाद बनाते है, यह हमें ध्यान रखना ही पड़ेगा। यह उद्योग की उचित मांग है। इसके लिए हम लिखित में इसे आगे बढ़ाने की कोशिस करेंगें।

  • डॉ आनंद नंनदवार

कोई भी भारत का नागरिक हो, अपने सुझाव या आपत्तियां लिखित रूप में BIS को दे सकता है।

  • डॉ सीएन पांडे

हमारे पेडों की उम्र और लंबाई में उपरी और निचले हिस्से की गुणवत्ता में काफी अंतर रहता है जिसे IWST को गहराई से शोध करना चाहिए।

  • सोनू अग्रवाल

इतने सारे मापदंड है, इसमें से कुछ को क्रिटिकल और कुछ को नान क्रिटिकल के तौर पर रखना चाहिए। इसमें यह देखना चाहिए कि किन तत्वों पर कुछ समझौता हो सकता है जो गुणवत्ता की मूल भावना को ठेस नहीं पहुंचाते हों। मसलन यदि लंबाई चौड़ाई और मोटाई आदि के मानक है, इसमें यदि टेस्ट रिजल्ट में थोड़ा समझौता कर लिया जाए तो बात बन सकती है। और उद्योग का तनाव कम हो सकता है।

  • गजेंन्द्र राजपूत

अभी तक रेजिन का जो बैच होता था वह एक बार में बने हुए तीन टन चार टन या पांच टन का होता था। अब इसका बैंच नंबर रेजिन की बजाए, एक प्रेस पर एक होगा तो दूसरी प्रेस पर दूसरा होगा। इस तरह से एक ही दिन में दो से तीन बैच बन रहे होंगे। यह प्रक्रिया को उलझा देगा।

  • डा. आनंद नंनदवार

जो मानक बनाए जाते हैं, उसके मानकों के अनुसार ही ऑडिट होगा। इसलिए इस सवाल का जवाब बीआईएस वाले ही बेहतर दे सकते हैं।

  • मनोज गवारी: आईएस 303 की 2025 के उत्पादन प्रक्रिया की गाइड लाइन आ गयी। इसमें BIS आफिसर को यह बताया गया है कि जब उत्पाद का निरीक्षण होगा तो क्या क्या देखा जाएगा। कहां छूट दे सकते हैं, कहां नहीं। इसी में यह बताया गया है कि एक ही बैच में बनाए गए रेजिन को यदि चार प्रेस पर प्रयोग किया गया तो यह चार अलग अलग बैच हो गए। इसकी अलग अलग रिपोर्ट बनेगी। यह मुद्दा है। बीआईएस से इस बारे में चर्चा करेंगे तो इसका समाधान अवश्य निकल सकता है।

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