• अशोक ताजपुरिया
  • जितनी ज्यादा पेचिदगी होगी, काम उतना मुश्किल हो जाएगा:

इतनी बंदिश और मानकों के बीच काम करना मुश्किल हो सकता है। उद्योग को पहले ही बहुत सारे विभागों को झेलना पड़ता हैं।

उद्योगपति उत्पाद तैयार कर सकता है, उसे दूसरा काम नहीं आता। इसलिए मानकों की प्रक्रिया सरल होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है तो प्रक्रिया में भ्रष्टाचार के पनपने की संभावना बनी रहेगी।

इतने ज्यादा नार्म्स फिर इतनी सारी श्रेणियों से क्या काम बहुत मुश्किल नहीं हो जाएगा?

यह उद्योग की वस्तुस्थिति है। इसलिए प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए कि उद्योगपति आसानी से मानक पूरा कर सके, और खरीददार को बेहतर उत्पाद मिल सके। इसलिए आग्रह है कि प्रक्रियाओं को आसान किया जाए। ऐसे नियम बनाएं जो माने जा सके।

  • डॉ सीएन पांडे

हालांकि इस प्रक्रिया में हम बहुत आगे बढ़ चुके हैं, जिसे रोका तो नहीं जा सकता है। उद्योग की ही मांग थी कि मानक जल्द से जल्द लागु होने चाहिए। क्योंकि आयात होने वाले उत्पाद से दिक्कत आ रही है। आयात होने वाले कम गुणवत्ता के सस्ते माल को आने से रोकना था। उद्योग को परेशान करने की मंशा कतई नहीं है।

यह उत्पाद आप बना सकते हैं। क्योंकि आप इन मानकों के अनुसार उत्पाद बनाते रहे हैं। आप इसमें सक्षम है।

आपको घबराने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं हैं। BIS का संचालन भी पहले की तरह ही होता रहेगा और थोड़ा सा ध्यान से पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि प्रक्रियाओं को भी सरल ही किया गया है। उद्योग की सलाह पर ही मानकों में ढील दी गई। जिससे उत्पाद रिजेक्ट न हो।

सामान्य परिस्थितीयों में प्रत्येक लायसेंस के दो-दो सैंपल लेने है, दो मार्केट से दो यूनिट से।

किसान इतनी मेहनत से पेड़ों को तैयार करते हैं, जो कि राष्ट्रीय संपदा है। हमें अपने कच्चे माल का संरक्षण भी करना है, उद्योग का भी ध्यान रखना है। इसलिए निश्चित रूप से क्वालिटी का उत्पाद बनाना है।

इन मानकों में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे पूरा न किया जा सके। अभी स्वतन्त्रता दिवस पर प्रधान मंत्री ने भी आहृान किया कि हमें अपनी क्वालिटी को अंतराष्ट्रीय मानकों के समकक्ष करना है।

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कम उम्र की कृषि वाणिकी से प्राप्त लकड़ी के मुताबिक ये मानक बहुत ही सूझबूझ से बनाए गए हैं। इस सब्जेक्ट को डील करने वाले IWST डॉयरेक्टर डॉ. एमपी सिंह थे, जिन्होंने इस पद पर रहते हुए इस मुद्दे को बहुत ही लचीले ढंग से उद्योग की मांग के अनुरूप डिजाइन करने की हर संभव कोशिश की है।

अतः इससे घबराने की कतई आवश्यकता नहीं है। कुछ व्यवस्था आपको भी अवश्य करनी होगी। FRI या IPIRTI से शिक्षा प्राप्त एक विशेषज्ञ यदि आप अपनी यूनिट में रख लेते हैं तो काम आसान हो जाएगा। जो आपकी इन जिम्मेदारियों को आसानी से संभाल लेगा।

वहां शार्ट टर्म कोर्स भी संचालित करते हैं, जहां आप अपने स्टाफ को प्रशिक्षण दिलवा सकते हैं।

यदि कोई संशय है, तो उस पर बातचीत हो सकती है। उद्योग की मांग थी, इसलिए क्यूसीओ आया।

  • अशोक ताजपुरिया

हम इस पूरी प्रक्रिया में आपके साथ हैं। QCO को वापस लेने की मांग कतई नहीं हैं।

हम बस इतना चाहते हैं कि चीजों का सरलीकरण किया जाए। कानून इतने कडे़ न हो, प्रक्रिया इतनी पेचिदा न हो, कि हम पूरी तरह से विशेषज्ञों पर निर्भर हो जाए। अब लेमिनेट की बात करें तो इसमें दिक्कत नहीं आती। प्रक्रिया सरल हैं।

लेकिन जब प्लाइवुड की बात आती है तो इसमें मानक भी ज्यादा है। और कच्चे माल में अनियमितता भी अधिक हैं।

ग्रेडिंग की नई प्रक्रिया शायद कुछ असमंजस पैदा करने वाला है। इसका सरलीकरण किया जाए। इसमें दो राय नहीं कि हम जो उत्पाद तैयार कर रहे हैं, वह बिल्कुल मानकों के अनुरूप है। लेकिन मानकों को तकनीक में न उलझाया जाए। हम तो वास्तव में चाहते हैं कि हमारे उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर के हो।

बस दिक्कत यह है कि हमें समझ में आना चाहिए कि करना क्या है? मानकों को लेकर हम कतई नाकारात्मक विचार नहीं रखते। पीछे नहीं जाना है। हमें आगे ही बढ़ना है। बस सुधार होना चाहिए। जिससे मानकों को यथार्थ के धरातल पर उतारा जा सके। 


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