Milia Dubia : a Substitute for Popular?
- मार्च 5, 2021
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Milia Dubia is fast emerging as a major replacement of poplar & safeda in the plywood industry. Its cultivation is easy. It may prove to be very beneficial for farmers. Using Melia as a raw material, the quality and strength of the finished product can be for better. For its cultivation both industrialists and farmers will have to cooperate with each other. Experts believe that this is a ten-year process. Ply Insight is trying to create awareness among farmers and industrialists for the cultivation of Melia and its use in industry, which will encourage its cultivation. In this sequence, we present a talk with Ashok Juneja, General Secretary, Punjab Plywood Manufacturers Association.
What are the prospectus of Melia Dubia?
Until & unless Melia is available in mass quantity in the market, how can we assess the compatibility? Transformation from other states may not be feasible. Local farmers are also comfortable with poplar and safeda. Let FRI and other forest institutions put their efforts to popularize it if there is more profit in farming of Melia.
Melia is supposed to have qualities of soft wood and hard wood?
Poplar and safeda are freely available to industries. Market had already accepted the plywood made from the two species. It is marketed as best plywood available in Indian market. Hence changing the proposition is not so easy until and unless Melia is proved to be economical along with better quality.
Melia is considered to have better quality.
At present popular is marketed between 800-1000. Demand and supply is normal. Farmers and industrialist are accustomed to the nature and quality of the both raw materials. If Melia is to be promoted, FRI should harvest it in their own capacity, for industrial trial. Thereafter farmers should be inspired for farming Melia
Ashok Juneja
Chairman
Punjab Plywood Manufacturers Associations
मिलिया डुबिया पापुलर सफेदा का विकल्प?
मिलिया डुबिया को क्या आप पापुलर सफेदा का विकल्प देख रहे हैं?
जब तक कच्चा माल ही नहीं मिलेगा, तब तक कैसे इसे विकल्प मान लिया जाए। इसलिए शर्त यह है कि इसकी उपलब्धता होनी चाहिए। यदि बाहर से मंगाया जाता है तो इसका किराया लागत बढ़ जाएगा। और यह किफायती नहीं रह पाएगा। इसलिए पहले इसकी खेती स्थानीय स्तर पर होनी चाहिए। इसके बारे में व्यापक जागरूकता लानी होगी। क्योंकि किसान अभी पापुलर और सफेदे की खेती छोड़ने को तैयार नहीं होंगे। पहले किसानों को जागरूक करना होगा। उन्हें यह दिखाना होगा कि कहां कहां इसकी खेती हो रही है? और दूसरी खेती के मुकाबले मिलिया में अधिक मुनाफा हो सकता है। एफआरआई भले ही इसके लिए प्रयास कर रही हो, लेकिन यह अभी तक उत्तरी भारत में किसानोें तक पहुंच नहीं पाया है।
मिलीया में हार्डवुड के गुण भी है, तो क्या ऐसे में उद्योगपति की रूचि इसमें अधिक नहीं होगी?
देखिए अभी उद्योग के लिए पापुलर और सफेदा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। इससे तैयार माल की बाजार में उपलब्धता और स्वीकार्यता है। ऐसे में कोई क्यों महंगा कच्चा माल लेगा।
पापुलर के बढ़ते रेट पर रोक लगा सकता है मिलिया डुबिया
अभी पापुलर के रेट 800 से एक हजार रुपए तक मिल रहे हैं। अभी सप्लाई और आपूर्ति सामान्य है। यह सही है कि मिलिया डुबिया एक विकल्प हो सकता है। इसके लिए होना यह होना चाहिए कि ट्रायल के लिए फसल लगाई जाए। इससे किसानों को जागरूक किया जा सकता है। क्योंकि जब उसके प्रैक्टिकल सामने आ जाए, तो वह चल पड़ सकती है। इसलिए सबसे पहले इसकी खेती के लिए काम करना होगा। तभी उद्योगपति इसे खरीदेंगे। इसमें यदि फाॅरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट एफआरआई जैसे संस्थान आगे बढ़कर पौधे लगाएं और किसानों को प्रोत्साहित करें। इसके जो सकारात्मक परिणाम आएंगे इसके बाद इस पर उत्साह बढ़ सकता है।