पिछले दस वर्षों में 20 लाख रूपए तक की आईटीआर भरने वालों के मुकाबले 50 लाख रूपए से अधिक की वार्षिक आय की विवरणी भरने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है।

बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार सस्ते या किफायती उत्पादों के मुकाबले महंगे, टिकाऊ और उत्कृष्ट उत्पादों की मांग भारतीय बाजारों में लगातार बढ़ रही है।

उपरोक्त दोनों समाचारों से यह समझ आ रहा है कि भारतीय उपभोक्ता की दिशा क्या होती जा रही है।

इसे उत्पादकों की दृष्टि से समझने की कोशिस करे तो ऐसा प्रतीत होता है कि जहां कुछ उद्यमी अपने उत्पादन और मार्केटिंग में आक्रामक, लेकिन नियोजित ढंग से, अपना निवेश बढ़ा रहें हैं, वही दुसरी ओर अधिसंख्य उद्यमी सुरक्षात्मक होकर रोजमर्रा के जीवन यापन में व्यस्त हो रखे हैं।

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कुछ मूलभूत कारण जो इसके लिए जिम्मेवार हैं, वह शायद है कि इस तरह के अग्रणी उद्यमी अपने व्यक्तिगत खर्च को सीमित रखते हुए पुंजीगत निवेश अधिक करते हैं। वो उन साधनों और संसाधनों पर अधिक खर्च करते हैं, जो उनकी उत्पादकता बढ़ाते हैं।

अपनी उत्पादन और मार्केटिंग टीम बनाने के साथ-साथ और टीम पर भरोसा करना भी एक महत्वपूर्ण निर्णायक व्यवस्था है। टीम के प्रत्येक सदस्य की सलाह को, व्यवहारिकता की कसौटि पर कसते हुए, सामुहिक निर्णय लेना टीम का मनोबल भी बढ़ाता है और संस्था को भी आगे ले जाता है।

उद्यम की शुरूआत से, एक समय तक तो, बनाई हुई व्यवस्था को सावधानी और सुचारू रूप से चलाते हुए उसमें लाभ कमाना या ब्रेक इवन पॉइंट तक पहुंचना जरूरी होता हैं।

ब्रेक इवन पॉइंट (जहां आपका राजस्व या टर्नओवर, कुल लागत के बराबर हो जाता है) के बाद प्रत्येक उद्यमी को, नवीनतम तकनीक अपनाते हुए, आक्रामक होना ही पड़ता हैं।

 

सुरेश बाहेती

9050800888


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