देश की प्रशासन क्षमता में सुधार की दरकार
- जून 13, 2024
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2009 आम चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार बड़े बहुमत से सत्ता में आई थी। 2009 से पहले कुछ वर्षों में भारत ने शानदार आर्थिक प्रगति की थी। सभी का यह मानना था कि देश वैश्विक वित्तीय संकट से मोटे तौर पर अप्रभावित रहा है। 1991 में शुरू हुए आर्थिक सुधारों के बाद निजी क्षेत्र ने सराहनीय प्रदर्शन किया है।
विकास से जुड़े कार्य एवं उनके प्रभाव सरकार की क्षमता और चुनौतियों से निपटने की उसके उपायों पर निर्भर करते हैं। यह सत्य है कि भारतीय व्यवस्था कुछ चीजें वाकई बेहतर तरीके से करती हैं (उदाहरण के लिए लोक सभा चुनाव आयोजित करना) परंतु कुछ ऐसे काम है, या तो पूरा ही नहीं किया गया, या फिर आधा अधूरा ही किया गया।
देश में कई क्षेत्र हैं, जिनमें सुधार की आवश्यकता है। यह कहा जा सकता है कि भारत राजकोषीय क्षमता की कमी के कारण प्रभावी ढंग से विकास कार्यों को पूरा नहीं कर पा रहा है। इसका कारण यह है कि भारत अभी भी वित्त के मामले में विकसित देशों का मुकाबला नहीं कर सकता है।
अर्थव्यवस्था के तेजी के बावजूद इसके कर संग्रह और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात में बहुत अधिक सुधार नहीं हुआ है। 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत का राजस्व पिछले कई वर्षों से स्थिर रहा है। हालांकि यह प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में काफी कम रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अध्ययन के अनुसार भारत का सकल कर संग्रह इसकी क्षमता से 5 फीसदी से भी कम रहा है। अगर यह अंतर पाट दिया जाए तो राजकोषीय क्षमता बढ़ जाएगी और उधारी कम हो सकती है।
जीएसटी के साथ अभी भी कुछ समस्याएं हैं और ये किसी से छुपी नहीं है। अगर अगली सरकार इसमें सुधार करती है तो यह बहुत अच्छी बात होगी। नई सरकार को प्रत्यक्ष कर आधार, खासकर आयकर बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए। परंतु, समस्या केवल राजस्व तक ही सीमित नहीं है। व्यय का स्तर भी बढ़ाना होगा।
उदाहरण के लिए सरकारी समर्थन एवं सब्सिडी पात्रों तक सही ढंग से नहीं पहुंच पा रहे हैं और जिन लोगों को इनकी जरूरत नहीं है उन्हें लाभ पहुंच रहा है। प्रायः तात्कालिक या अल्प अवधि में राजनीतिक लाभ लेने के लिए इनका बेजा इस्तेमाल किया जाता है।
वर्ष 2019-20 में पंजाब सरकार ने कृषि शोध पर 380 करोड़ रुपये की तुलना में कृषि क्षेत्र के लिए बिजली के मद में सब्सिडी पर 6,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए थे। केंद्र सरकार भी इस मामले में अलग नहीं है।
भारत को सबसे पहले अपनी राजकोषीय सरकार की क्षमता में सुधार का विचार कोई नई बात नहीं है, मगर अब समय आ गया है कि हम इस दिशा में नई शुरुआत करें।
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