Need to reconsider the plan of hundred new cities
- जुलाई 6, 2022
- 0
Need to reconsider the plan of hundred new cities
The power of vested interests is exaggerated in comparison to the phased encroachment of ideas.
In 2014, an important mission of government officials was to establish 100 new cities which should be smart. With the passage of time there was a change in the Smart City Mission and it was said that 100 existing cities would be converted into Smart Cities.
India is a big country. There are 28 states and eight union territories. In such a situation, the mission of 100 new and eco-friendly cities is not very ambitious as very few new cities have been built after 1947 and the urban population in the country is still less than 35 percent. Whereas in China it is more than 65 percent. Urban real estate development is largely part of economic development and job creation. In such a situation, it is necessary that we have some more new cities and not just expansion of existing cities. Because the expansion of old cities can be costly and messy at times.
Land Acquisition Act 2013 which makes acquisition difficult and costly. It is not that the 2013 Act had arisen suddenly. This was responsible for the long-standing difference in the prices of rural and urban land. The cost of land in rural areas has been very low, whereas the reality is that even rural land is acquired for urbanization. On this basis, it can be said that the root cause of the 2013 Act lies in the high cost of urban land. This brings us to the second important part of the whole story.
It is true that the license-permit-quote raj in the manufacturing sector ended in 1991 itself. But a form of this rule remained in the urban real estate sector. The government has neither enabled the private sector to provide infrastructure nor expand additional real estate on a large scale, and it has done so on its own. Due to this, the supply remained limited in comparison to the demand, so that the license-permit-quota raj should be phased out in the real estate development sector in urban areas. This could lead to an expansion in supply and thus a reduction in urban real estate prices.
The government has to put in place an appropriate long-term policy framework that encourages and enables large private sector real estate companies to participate in the construction of 100 new cities. These companies can conceptualize, plan, mobilize resources, manufacture and market them as well as expand supply subject to government policy standards. The development of Gurugram can also be taken into account in this context.
It is true that in the last seven-eight years, a large number of unsold apartments have come up in many cities. This may indicate that we are lacking in demand. In any case, the huge expansion in supply seems irrelevant in any case. However, the so-called insufficient demand is actually at the market price which is much higher than the basic price.
There is no dearth of demand at relatively low prices. At such a low price, a lot of demand can be seen. With the passage of time the prices can be reduced if the policies mentioned above are adopted.
In the end, the idea of 100 new cities is fundamentally good but we have to change our basic approach before that.
सौ नये शहरों की योजना पर पुनर्विचार की जरूरत
विचारों के चरणबद्ध अतिक्रमण की तुलना में निहित स्वार्थों की शक्ति को अत्यधिक बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाता है।
सन् 2014 में सरकारी अधिकारियों का एक अहम मिशन था 100 नये शहरों की स्थापना करना जो स्मार्ट भी हों। समय बीतने के साथ-साथ स्मार्ट सिटी मिशन में बदलाव आया और कहा गया कि 100 मौजूदा शहरों को स्मार्ट सिटी में बदला जाएगा।
भारत एक बड़ा देश है। यहां 28 राज्य और आठ केंद्रशासित प्रदेश हैं। ऐसे में 100 नये और पर्यावरण के अनुकूल शहरों का मिशन बहुत महत्त्वाकांशी नहीं है क्योंकि सन 1947 के बाद बहुत कम नये शहर बने हैं तथा देश में अभी भी शहरी आबादी 35 फीसदी से कम है। जबकि चीन में यह 65 फीसदी से अधिक है। शहरी अचल संपत्ति विकास व्यापक तौर पर आर्थिक विकास और रोजगार निर्माण का हिस्सा है। ऐसे में यह जरूरी है जाता है कि हमारे पास कुछ और नये शहर हों, न कि केवल मौजूदा शहरों का विस्तार हो। क्योंकि पुराने शहरों का विस्तार कई बार महंगा और गड़बड़ी भरा हो सकता है।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 जो अधिग्रहण को कठिन और महंगा बनाता है। ऐसा नहीं है क 2013 का अधिनियम अचानक उत्पन्न हो गया था। इसके लिए ग्रामीण और शहरी जमीन की कीमतों में लंबे समय से चला आ रहा अंतर उत्तरदायी था। ग्रामीण इलाकों में जमीन की कीमत काफी कम रही है जबकि हकीकत तो यह है कि शहरीकरण के लिए भी ग्रामीण जमीन का ही अधिग्रहण किया जाता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि 2013 के अधिनियम की मूल वजह शहरी जमीन की ऊंची कीमत में निहित है। यह बात हमें इस पूरे किस्से के दूसरे अहम हिस्से की ओर ले आती है।
यह सही है कि विनिर्माण क्षेत्र में लाइसेंस-परमिट-कोट राज सन 1991 में ही समाप्त हो गया था। परंतु इस राज का एक स्वरूप शहरी अचल संपत्ति क्षेत्र में बना रहा। सरकार ने न तो निजी क्षेत्र को इतना सक्षम बनाया कि वह अधोसंरचना मुहैया कराए तथा बड़े पैमाने पर अतिरिक्त अचल संपत्ति विस्तार करे और ने ही उसने अपने स्तर पर ऐसा कुछ किया। इससे मांग की तुलना में आपूर्ति सीमित बनी रही जिससे शहरी क्षेत्र में अचल संपत्ति विकास के क्षेत्र में लाइसेंस-परमिट-कोटा राज को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाए। इससे आपूर्ति में विस्तार हो सकता है और इस प्रकार शहरी अचल संपत्ति की कीमतों में भी कमी आ सकती है।
सरकार को एक समुचित दीर्घकालिक नीतिगत ढांचा तैयार करना होगा जो निजी क्षेत्र की बड़ी अचल संपत्ति कंपनियों को 100 नये शहरों के निर्माण में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करे और उन्हें सक्षम बनाए। ये कंपनियां अवधारणा तैयार करने, योजना बनाने, संसाधन जुटाने, निर्माण करने और विपणन करने के साथ-साथ सरकार के नीतिगत मानकों के अधीन ही आपूर्ति को विस्तारित कर सकती हैं। इस संदर्भ में गुरुग्राम के विकास को भी ध्यान में रखा जा सकता है।
यह सही है कि विगत सात-आठ वर्षों में कई शहरों में अनबिके अपार्टमेंट बहुत बड़ी तादाद में तैयार हो गए हैं। इससे यह संकेत मिल सकता है कि हमारे पास मांग की कमी है। चाहे जो भी हो आपूर्ति में भारी विस्तार किसी भी स्थिति में अप्रासंगिक ही नजर आता है। बहरहाल, तथाकथित अपर्याप्त मांग दरअसल बाजार मूल्य पर है जो बुनियादी मूल्य की तुलना में बहुत ज्यादा है।
अपेक्षाकृत कम कीमत पर मांग की कोई कमी नहीं है। ऐसी कम कीमत पर बहुत अधिक मांग देखने को मिल सकती है। यदि ऊपर वर्णित नीतियों को अपनाया जाता है तो समय बीतने के साथ कीमतों में कमी की जा सकती है।
अंत में, 100 नये शहरों का विचार बुनियादी रूप से तो अच्छा है लेकिन हमें उससे पहले अपने बुनियादी रुख में परिवर्तन करना होगा।