भारत के विकास में अवसर और चुनौतियां
- नवम्बर 15, 2024
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इस दशक में भारत में 10 करोड़ लोगों के समृद्ध होने की उम्मीद है। जिसमें 65 प्रतिशत आबादी मध्यम वर्ग की ओर बढ़ रही है। 7 प्रतिशत की वृद्धि नया मानदंड है और यह अधिक हो सकती है। पिछले दो वर्षों ने हमें अपार संभावनाएं दिखाई हैं। फिर भी कई तरह की चुनौतियां भी बनी हुई हैं।
20-24 वर्ष की आयु के युवा बेरोजगारी दर 40 प्रतिशत के आस पास है। जो एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
बुनियादी ढांचे में काफी सुधार हुआ है, फिर भी भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3 प्रतिशत इस पर खर्च करता है, जबकि चीन 9 प्रतिशत खर्च करता है।
आरएंडडी में भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से भी कम खर्च करता है, जबकि वैश्विक औसत 1.8 प्रतिशत है। अमेरिका तो 3.5 प्रतिशत तक खर्च करता है।
भारत एक बेंचमार्क के रूप में स्थापित हो, इसके लिए गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करते हुए कौशल विकास, बुनियादी ढांचे और आरएंडडी खर्च पर ध्यान देना ही होगा।
संतुलित विकास मॉडल में कई प्रमुख पहलू होते हैं। सबसे पहले, यह खपत-आधारित होगा, विशेष रूप से डिजिटल का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल। इसके लिए भारत के पास मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा होना चाहिए। जो लोगों तक, पहुंच भी पाए। दूसरा, यह निवेश-आधारित होगा, जो बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय और ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करेगा। तीसरा, महत्वपूर्ण सरकारी खर्च होगा और निर्यात पर जोर दिया जाएगा।
यह संतुलित दृष्टिकोण चीन के मॉडल के विपरीत है। चीनी मॉडल, निर्यात और बुनियादी ढांचे के निवेश पर बहुत अधिक निर्भर है। जिसमें खपत पर कम जोर दिया गया था। विकास को लेकर भारत की योजना अलग है, इसमें सभी तत्वों को सम्माहित करते हुए विकास के रास्ते पर चलना है।
भारत के लिए इस वक्त तेजी से विकास करने की सोच को अमल में लाने का उचित और महत्वपूर्ण मौका है। भारत लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पुनर्विचार करने और पुनर्निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जो विनिर्माण और लाजिस्टीक्स के लिए एक प्रमुख केंद्र बन सकता है। मेक इन इंडिया वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला लचीलापन बढ़ा सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत पूंजी के स्रोतों को गतिशील, उपभोग-आधारित आर्थिक विकास से जोड़ सकता है, जिससे खाड़ी देशों, मध्य एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और अमेरिका के साथ आर्थिक पुल बन सकते हैं।
इन कनेक्शनों को बढ़ावा देकर, भारत आपस में जुड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेटवर्क का केंद्र बन सकता है। लिंक बनाने और सहयोग को बढ़ावा देने से परिभाषित यह भूमिका न केवल भारत की वैश्विक स्थिति को बढ़ाती है, बल्कि भारत की सदी के व्यापक दृष्टिकोण के साथ संरेखित करते हुए, टिकाऊ और समावेशी विकास के लिए एक अनूठा अवसर भी प्रदान करती है।
कोई भी देश बेरोकटोक विकास प्रदान नहीं करता है। हर देश की अपनी चुनौतियाँ होती हैं, तमाम चुनौतियों के बाद भी खुशी की बात तो यह है कि भारत में व्यापार करना अपेक्षाकृत आसान है। भारत ने व्यवसाय संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए बहुत प्रगति की है।
हालाँकि, भारत की सदी को गति देने की कोशिशों में हमें यह भी पहचानना होगा कि अभी भी सुधार की गुंजाइश है। क्योंकि जो चुनौतियां है, वह अभी भी ज्यादा है। अगली पीढ़ी के लिए इस व्यवस्था में संशोधन करना होगा। संभवतः सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से, भारत में व्यवसाय करने को और भी आसान बनाने की दिशा में काम करना होगा। हालाँकि देखने में यह अभी आसान लगता है, लेकिन हकीकत में उतना आसान नहीं है।