The activism of the Ministry of Power, Coal and Railways is at its peak in preventing the possible power crisis in the country. In order to streamline coal supply to power plants, not only has Coal India Limited increased production but is also working closely with the Ministry of Railways for transportation of coal. Despite this, power cuts have started in the states. It is believed that if the coal supply is not increased rapidly, then in the first fortnight of May, the situation of power cuts in many states of the country will become serious.

In such a situation, if we look at the data given by the Ministry of Power, it becomes clear that during the last four-five years, this situation of power crisis has gradually led to the lack of complete monitoring of coal-based power plants and the expected increase in coal production.

Coal Ministry has refused to blame coal shortage for the current power crisis. The main reason for this crisis is the sharp decline in power generation from various fuel sources, it said

According to the, ministry, Factor responsible for the power crisis is due to the boom in the economy after the corona epidemic, as the demand for electricity has increased, along with early summer this year,  increase in the price of gas and imported coal and the decreased power generation of coastal thermal power plants.

It is not a coal crisis but a mismatch between the demand and supply of electricity. Crisis has been compounded by the steep decline in gas-based power generation.


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बिजली संकट: कोयले की कमी नहीं, उत्पादन में गिरावट से संकट

 

देश में संभावित बिजली संकट को रोकने में बिजली, कोयला और रेल मंत्रालय की सक्रियता चरम पर है। बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति सुचारू करने के लिए न केवल कोल इंडिया लिमिटेड ने उत्पादन बढ़ाया है बल्कि कोयला ढुलाई के लिए रेल मंत्रालय के साथ मिलकर काम भी कर रहा है। इसके बावजूद राज्यों में बिजली की कटौती शुरू हो गईं हैं। माना जा रहा है कि अगर कोयला आपूर्ति तेजी से नहीं बढ़ाई गई तो मई के पहले पखवाड़ें में देश के कई राज्यों में बिजली कटौती की स्थिति गंभीर हो जाएगी।

ऐसे में अगर बिजली मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि बिजली संकट की यह स्थिति पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान धीरे-धीरे कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की पूरी निगरानी नहीं करने और कोयला उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं होने से बनी है।

कोयला मंत्रालय ने मौजूदा बिजली संकट के लिए कोयले की कमी को जिम्मेदार मानने से इन्कार किया है। उनके अनुसार इस संकट की मुख्य वजह विभिन्न ईंधन स्रोतों से होने वाले बिजली उत्पादन में आई तीव्र गिरावट है।

कोरोना महामारी के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी आने के कारण बिजली की मांग बढ़ना, इस साल जल्दी गर्मी शुरू हो जाना, गैस एवं आयातित कोयलों की कीमतों में वृद्धि होना और तटीय ताप विद्युत संयंत्रों के बिजली उत्पादन का तेजी से गिरना जैसे कारक बिजली संकट के लिए जिम्मेदार हैं।

उनके अनुसार यह कोयले का संकट न होकर बिजली की मांग और आपूर्ति का बेमेल होना है। और गैस-आधारित बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आने से यह संकट और बढ़ गया है।


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