Editorial 2021

The rates that have been increased now are very much necessary to give life to the producers.
But what will be the trend of the market, it is difficult to predict now.

It is certain that the year 2023 is going to be very painful for the industries of North India, till the new crop of popular is not available abundantly at the right prices.



Power in the retail market.


Work is going on smoothly in retail segment, but there is more emphasis on cheaper goods. Only those people, whose brand has been established, are able to survive in medium grade goods. However, they are also facing problems when wholesalers do not want to keep low quality goods. Because there is no margin in cheaper goods and always remains the problem of quality, which the wholesaler finds difficult to handle. When these goods are sold in cash, there is no problem. But if there is any kind of problem later in the credit sale, then they do not have any margin to accommodate it. That’s why such goods are sold directly to the customers in cash only.

Nowadays, those shopkeepers are able to do more work, in which youngsters have joined in the business after their education. They move frequently, operating on lower margins and lending more. In this new trend, the old shopkeepers are loosing market share.

The goods of Bihar, Nepal and Kerala are being sold everywhere. It is a fact that the goods from Nepal may not have come in that much quantity as is being publicized. But it is certain that they have made their network all over northern India. Due to the non-availability of cheaper goods in northern India, the goods of Kerala or South India have got an opportunity to establish their foothold in central India. In this too, some producers are securing their place for the future by improving their quality. This is a great opportunity for them. And becoming a challenge for the manufacturers of northern India.

The decision of leasing factory on rent has been very fatal for the industry. Because industry requires long term decisions. Every segment in front and back faces problems, if it is operated according to trading. If one do not earn profit taking so much risk and pain, then who and why will anyone bother to set up an industry. Those who do not have the experience of running a factory, operate the factory for some time, bear losses themselves and spoil the market. The dealers and factory owners doing the work according to norms have to suffer for a long time.

Low capital is fatal for investors. Some factories cannot hold their goods at all. The owners of such factories have to sell their goods at throwaway prices on the terms of the customers. Due to which other fellow factory owners also come under pressure. The rates that have been increased now are very much necessary to give life to the producers. But what will be the trend of the market, it is difficult to predict now. It is certain that the year 2023 is going to be very painful for the industries of North India, till the new crop of popular is not available abundantly at the right prices.

Plywood industrialists will have to make active efforts to increase the availability of raw material for themselves by forgetting their ego. They may not get back the benefits of their efforts themselves. But the benefit of someone else’s effort will definitely reach them. The biggest thing is that without losing any time the efforts have to be vitalized from now itself. And have to do it together collectively.

After the introduction of GST, traders, be it factory owners or shopkeepers, all have a new enthusiasm to work. Many types of expenses are saved in this. Be it accountant, money transfer expenses. The biggest benefit is that the risk of bad debts is greatly reduced. How to implement it correctly by everyone is a big burning question.

सुरेश बाहेती
9050800888



रिटेल बाजार में कितना दम


अभी जो रेट बढ़ाए गए हैं, वह उत्पादकों को जीवन देने के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन बाजार का क्या रुख होगा, अभी से कहना मुश्किल है।

यह तो निश्चित है कि सन 2023 उत्तरी भारत के उद्योगों के लिए बहुत तकलीफ देह रहने वाला है। जब तक की पॉपुलर की नई फसल सही दामों में उपलब्ध नहीं हो जाती।



रिटेल में काम तो चल ही रहा है, लेकिन सस्ते माल में अधिक जोर है। मध्यम दर्जे के माल में सिर्फ वही लोग चल पा रहे हैं, जिनका ब्रांड स्थापित हो गया है। हालांकि दिक्कत उन्हें भी आ रही है, जब होलसेलर हल्का माल रखना नहीं चाहते। क्योंकि सस्ते माल में मार्जिन भी नहीं होता है और क्वालिटी की समस्या भी हमेशा बनी रहती है, जिसे होलसेलर को संभालने में दिक्कत आती है। नगद में जब यह माल बिक जाता है, तो कोई दिक्कत नहीं आती। लेकिन उधारी में बाद में किसी भी तरह की दिक्कत आती है, तो उसे भुगतने के लिए उनके पास कोई मार्जिन नहीं होता। इसलिए ऐसे माल सीधे ग्राहक को नगद में ही बिकता है।

आजकल वे दुकानदार अधिक काम कर पा रहे हैं, जिसमें नई पीढ़ी पढ़-लिख कर इस काम में आई है। वह अधिक भागदौड़ भी कर रहे हैं, कम मार्जिन पर भी काम कर रहे हैं और उधार भी अधिक बांट रहे हैं। इस तरह के नये ट्रेंड में पुराने दुकानदारों के पास काम अपेक्षाकृत कम होता जा रहा है।

बिहार, नेपाल और केरल का माल सभी जगह बिक रहा है। यह जरूर है कि नेपाल का माल उतनी अधिक मात्रा में नहीं आया होगा, जितना प्रचारित हो रहा है। लेकिन यह जरूर है कि उन्होंने पूरे उत्तरी भारत में अपना नेटवर्क बना लिया है। उत्तरी भारत में सस्ता माल न बन पाने के कारण केरल या दक्षिण भारत के माल को मध्य भारत में अपने पैर जमाने का अवसर मिल गया है। इसमें भी कुछ उत्पादक अपनी क्वालिटी को सुधार कर भविष्य के लिए अपना स्थान सुरक्षित करते जा रहें है। यह उनके लिए बहुत अच्छा मौका है। और उत्तरी भारत के निर्माताओं के लिए चुनौती बनते जा रहें है।

किराए पर फैक्ट्री देने का निर्णय उद्योग के लिए बहुत घातक रहा है। क्योंकि फैक्ट्री में लंबे समय की सोच से निर्णय लिए जाते हैं। दुकानदारी के हिसाब से इसे चलाने पर आगे और पीछे हर सेगमेंट को दिक्कत आती है। इतना रिस्क लेकर इतनी भागदौड़ करके अगर फैक्ट्री वाले मुनाफा ना कमाएं, तो फिर उद्योग लगेंगे कैसे, चलेंगे कैसे। जिनको फैक्ट्री चलाने का अनुभव नहीं होता है, वह कुछ समय के लिए फैक्ट्री चलाकर, खुद भी नुकसान उठाकर, बाजार को खराब करके चले जाते हैं। जिसको सही काम करने वाले दुकानदार और फैक्ट्री मालिक सभी को लंबे समय तक भुगतना पड़ता है।

ओछी पूंजी निवेशकों के लिए घातक होती है। कुछ फेक्ट्रियां ऐसी होती हैं, जो अपना माल बिल्कुल भी होल्ड नहीं कर सकते। ऐसी फैक्ट्री वालों को अपना माल ओने पौने दामों में ग्राहक की शर्तों पर बेचना पड़ता है। जिससे बाजार में दूसरे साथी फैक्ट्री वाले भी दबाव में आ जाते हैं। अभी जो रेट बढ़ाए गए हैं, वह उत्पादकों को जीवन देने के लिए बहुत जरूरी है। लेकिन बाजार का क्या रुख होगा, अभी से कहना मुश्किल है। यह तो निश्चित है कि सन 2023 उत्तरी भारत के उद्योगों के लिए बहुत तकलीफ देह रहने वाला है। जब तक की पॉपुलर की नई फसल सही दामों में उपलब्ध नहीं हो जाती।

प्लाईवुड उद्योगपत्तियों को अपने लिए कच्चे माल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए अपना अहम भूलाकर सक्रिय प्रयास करने होंगे। हो सकता है उनके द्वारा किए गए प्रयास का लाभ उन्हे वापस ना मिले। लेकिन किसी और के प्रयास का फायदा उन तक जरूर पहुंचेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि बगैर कोई समय गंवाते हुए प्रयास अभी से शुरू करने पड़ेंगे। और मिल-जुल कर करने पड़ेंगे।

जीएसटी आने के बाद व्यापारियों, चाहे वह फैक्ट्री वाले हो या दुकानदार हो, सभी को काम करने में नया उत्साह जगा है। इसमें बहुत तरह के खर्चे की बचत हो जाती है। चाहे वह अकाउंटेंट हो, मनी ट्रांसफर का खर्चा हो। सबसे बड़ी बात डूबत की रिस्क काफी कम हो जाती है। इसको सही तरीके से सभी के द्वारा कैसे लागू किया जाए, यह एक बड़ा ज्वलंत प्रश्न है।

सुरेश बाहेती
9050800888

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