भारत में तेल भंडार की खोज की संभावनाएं
- दिसम्बर 16, 2023
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यूरोपीय संघ और चीन के बाद भारत कच्चे तेल का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आयातक है। भारत के उपभोग में तेल आयात का हिस्सा वर्ष 2022-23 में बढ़कर 87.3 प्रतिशत हो गया, जो भारत के कुल आयात का 23.6 प्रतिशत है।
तेल एवं गैस आयात से न केवल विदेशी मुद्रा भंडार कम होता है बल्कि इससे रणनीतिक स्तर पर असुरक्षा की स्थिति बनती है और यह इराक युद्ध, ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध और मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे भू-राजनीतिक संकट से भी जाहिर होता है। इस वजह से भारत को रूस के तेल के लिए चीनी युआन में भुगतान करने को कहा जा रहा है।
बड़े तेल भंडार पर नियंत्रण से किसी एक देश की स्थिति अन्य देशों के मुकाबले बेहतर हो सकती है विशेष रूप से उन देशों की जो तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं। तेल भंडार से समृद्ध देश, उत्पादन की मात्रा, कीमतों में नियंत्रण करने के साथ ही इस तक पहुंच में प्रतिबंध लगाकर अन्य तेल आयातक देशों के मुकाबले फायदा उठा सकते हैं।
तेल के लिए भारत की अन्य देशों पर निर्भरता इसलिए है कि यहां सीमित स्तर पर तेल क्षेत्र की खोज की गई है। हालांकि भारत ने अपतटीय क्षेत्रों में तेल खोज के संदर्भ में अपेक्षाकृत अधिक सफलता देखी है, जैसे कि 1970 के दशक में बंबई हाई और बेसिन तेल क्षेत्रों की खोज की गई और बाद में 2000 के दशक में कृष्णा-गोदावरी बेसिन और खंभात की खाड़ी में।
भारत का करीब 23.6 लाख वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र वाला विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड), समान भू-स्तर साझा करता है और इसमें अब तक खोजे गए तेल भंडार की तुलना में बहुत अधिक भंडार मिलने की संभावना है।
कुछ असत्यापित रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल की खाड़ी में 30 अरब टन तेल (बीटीओई), इराक के भंडार का 2.5 गुना और सऊदी अरब के लगभग बराबर है। अगर मोटे अनुमानों पर गौर करें तो इसके अनुसार, भारत के ईईजेड में अब तक नहीं खोजे गए तेल संसाधन 7.4 बीटीओई से अधिक है, जो 50 से अधिक वर्षों तक की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। हालांकि भारत इन तेल-गैस भंडारों का पता लगाने में अब तक विफल रहा है और उसने लगातार तेल आयात पर जोर दिया है।
भारत विशेषतौर पर अपनी हरित नवीकरणीय ऊर्जा की योजनाओं के जरिये खपत से अधिक तेल एवं गैस का उत्पादन करने की कोशिश में है। अगर 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन का वैश्विक लक्ष्य पूरा नहीं होता है तब अगले 30 से 50 वर्षों में जैव ईंधन की मांग में अच्छी-खासी कमी देखी जा सकती है। ऐसे में भारत अपने भंडार का लाभ उठाते हुए तेल एवं गैस का निर्यात कर सकता है। यह इस खेल में बदलाव का एक अहम कारक होगा।
भारत कई दशकों से अपने तेल भंडार का पता लगाने में विफल रहा हैं। ऐसे में अवसर गंवाने पर अफसोस जताने का कोई मतलब नहीं है। अमृत काल का यह शुरुआती दौर भारत के लिए तेल सुरक्षा और नए रणनीतिक विकल्पों की उम्मीद देता है।