India-China Border Issue

चीन की आर्थिक नीतियां दुनिया भर में विपरीत प्रभाव डाल रही हैं।

शी चिनफिंग साल 2013 में सत्ता में आए। उनके शासन काल में चीनी मॉडल खूब फला फूला। इसमें देश पर सरकारी नियंत्रण, सत्ता का केंद्रीकरण, आर्थिक राष्ट्रवाद, पश्चिम के विरुद्ध शत्रु भाव, कुलीनों की व्यक्तिगत सुरक्षा की कमी जैसी बातें शामिल रहीं।

एक लंबे अंतराल के बाद, एक समय बेहतर स्थिति में रही निजी निवेश की प्रक्रिया का पतन हो चुका है। अचल संपत्ति की कीमतों में गिरावट हो रही है और अधिकांश संपत्तियां खाली पड़ी हैं। विदेशी कंपनियां, निवेशक और आम लोग चीन में अपनी गतिविधि कम कर रहे हैं। ब्याज का उच्च स्तर भी व्यवस्थित स्थिरता को चुनौती प्रदान कर रहा है।

2018 के बाद इन घटनाओं का असर वैश्वीकरण की प्रकृति पर नजर आने लगा जिसे तीसरा वैश्वीकरण नाम दिया गया। 1982 से 2018 तक दूसरे वैश्वीकरण में चीन तथा भारत जैसे देशों से बिना शर्त व्यापार कर सकते थे। लेकिन तीसरे वैश्वीकरण में एक लाइन खींच दी गई। वर्ष 2018 के बाद से विकसित देशों की ओर से चीन के साथ सीमा पार व्यापार पर बड़ी संख्या में प्रतिबंध लगाए गए। 

चीन की अर्थव्यवस्था की कमजोरी की वजह खराब घरेलू नीतियां और विकसित देशों द्वारा उठाए गए कदम बड़ा कारण माने जा रहे हैं। वहां घरेलू मांग अधिक नहीं है। कई चीनी कंपनियों के सामने कीमत कम करने या बंदी की स्थिति है। आर्थिक मोर्चे पर नाकामी ने सत्ता तंत्र के लिए आर्थिक और राजनीतिक दिक्कत पैदा की। हालांकि सरकार की चाह तो यही होती है कि कंपनियां अधिक से अधिक उत्पाद बेचें, ज्यादा निर्यात करें और रोजगार बढ़ाएं। लेकिन अमेरिकी डॉलर में चीनी निर्यात का मूल्य गिर रहा है और उसमें और गिरावट आने की उम्मीद है।

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समय के साथ और चीन में आर्थिक और राजनीतिक बदलाव आने पर ये समस्याएं हल हो जाएंगी।

विकसित देशों को निर्यात करने में हो रही मुश्किलों को देखते हुए चीन की कंपनियों ने स्वाभाविक तौर पर शेष विश्व में निर्यात बढ़ाने पर जोर देना शुरू किया। यह वह वैश्विक परिदृश्य है जिसमें हमें भारत में चीन का आयात बढ़ता नजर आ रहा है। जो कि 2018 के मुकाबले 2023 में 53 फीसदी तक बढ़ गया।

इस वक्त भारत की सरकारी शक्ति का इस्तेमाल करके चीनी निर्यात के देश में पहुंचने के मार्ग में व्यापारिक गतिरोध खड़ा करने के फायदे हैं। ये कदम उस पूर्ण नीतिगत पैकेज का हिस्सा होने चाहिए जो भारतीय अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाता है। हालांकि, यह संरक्षणवाद है, और मजबूत विकास नीति के विपरीत है, परंतु इस वक्त एक खास कारोबारी साझेदार के साथ ऐसा किया जा सकता है।

केवल एक कारोबारी साझेदार के साथ संरक्षणवाद के तरीके अपनाते हुए कारोबार करने के लिए आर्थिक नीति में विशिष्ट क्षमताओं की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही ऐसे तमाम पूरक उपायों को भी अपनाना होगा जो शेष विश्व के साथ पारंपरिक भारतीय संरक्षणवादी रिश्ते नहीं बनने दें। 2024 में देश के नीति निर्माताओं के लिए ऐसी रणनीति बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।


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