अनिवार्य बी आई एस को लागु करने का समय नजदीक आता जा रहा है। लेकिन उद्योग में जिनके पास लायसेंस नहीं है, उनमें कोई हलचल दिखाई नहीं पड़ रही है। क्या ऐसे सभी उद्योगपत्ति BIS की प्रक्रियाओं से पूर्णतः इत्तकाक रखते हैं, या उन्हें इसकी परवाह नहीं हैं? या फिर उन्हें लगता है कि उन्हें पिछली बार की तरह फिर से सरकार की ओर से अतिरिक्त समय मिल जाएगा और इसे बिलंबीत कर दिया जाएगा।

वर्त्तमान और आसन्न लायसेंस धारकों की मनःस्थिती के बारे में प्रस्तुत है अभिषेक चितलांगिया से प्लाई इन्साइट द्वारा की गई बेबाक बातचीत। अभिषेक चितलांगिया, जो ड्यूरो प्लाई इंडस्ट्रीज के युवा कार्यवाहक हैं, उद्योग की समस्याओं और उसके समाधान के लिए गहरी रूचि रखते हैं। ड्यूरो प्लाई, जो 67+ वर्षीय पुरानी कंपनी है, भारतीय प्लाईवुड और पेनल बाजार में गहरी पकड़ रखती है।


अनिवार्य बीआईएस के बारे में आप की राय

आजकल विभिन्न सम्मेलन और वेबिनारों में वर्तमान लाइसेंस धारकों की छोटी बड़ी समस्याओं की बार-बार चर्चा हो रही है। इन समस्याओं का समाधान तो होना आवश्यक है। लेकिन इन चर्चाओं से उद्योग में एक नकारात्मक संदेश जा रहा है कि उद्योग बीआईएस मानकों के बिना ज्यादा खुश है।

अब जबकि बी आई एस और और डी पी आई आई टी जैसे प्लेटफॉर्म से कह दिया गया है कि यह अब आगे और विस्तारित नहीं होगा। यह आवश्यक हो जाता है कि उद्योग अपनी तैयारी पुरजोर तरीके से करे। जिन उद्योगों ने अभी तक लाइसेंस के लिए आवेदन नहीं किया है उन्हें संबंधित अधिकारियों से मिल बैठकर अपनी समस्याओं को उनके सामने रखना चाहिए, ताकि समय रहते उनका समाधान हो सके और उनका डर दूर हो सके।

क्यों कि बीआईएस मानकों के मुताबिक उत्पाद तैयार करना और लाइसेंस की पालना सुचारू रूप से करना, कोई बहुत ही कठिन कार्य नहीं है। आरंभ में सभी को हिचकिचाहट होती है। थोड़ा बहुत खर्च भी उद्योग का बढ़ता है। लेकिन यह भी सच है की गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनने पर यह खर्च उत्पाद अपना खुद ही वहन कर लेता है अर्थात बाजार से यह बढ़ी हुई कीमत आराम से मिल जाती है।



उद्योग क्यों डर रहा है

उत्पादकों को भय है कि उपभोक्ताओं को तो दुकानदार अपनी पसंद (अधिक फायदेमंद) का माल बेचना चाहेगा। अगर रिटेल बाजार में बीआईएस मानक रहित उत्पाद, खुले आम बिकता रहा तो बीआईएस मार्क वाला उत्पाद दुकानदार क्यों रखना चाहेगा ?

बीआईएस ऐसे दुकानदारों को कैसे रोकेगा? इस संबंध में क्या योजना बनाई गई है? जब तक प्रशासन द्वारा कोई स्पष्टिकरण उद्योग के सामने प्रस्तुत नहीं किया जाता तब तक उद्योग सशंकित ही रहेगा। और यह शंका वाजिब भी है। क्योंकि कई लायसेंस धारक उद्योगपतियों की शिकायत है कि उनके द्वारा बेचे गए माल से कई गुना अधिक माल उनके नाम से बाजार में बिकता है। इस संबंध में भारतीय कानून और नियामक दोनों ही कमजोर हैं, जिससे उद्योगपति ही परेशान रहते हैं।

कुछ निर्माता ऐसे भी है, जिनका उत्पाद बगैर बीआईएस मार्क के अपनी गुणवत्ता के दम पर बिक रहा है। ऐसे उत्पादकों को लगता है कि लायसेंस में किये हुए अतिरिक्त खर्च से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा।


उद्योग आश्वस्त कैसे होगा?

सबसे अहम सवाल है कि उपभोक्ता कैसे जागरूक होगा?

सरकार ने कई उत्पादों पर बीआईएस लागू तो कर दिया है, पर कितनी जनता इस बारे में जानकारी रखती है? जब तक उपभोक्ता जागरूक नहीं होगा, तब तक हालात बदलने वाले नहीं हैं।जब तक देश के अंदरूनी गांव शहर तक इस बारे में जनता को नहीं मालूम होगा कि उन्हें बीआईएस मानकों वाले उत्पाद ही खरीदने है,तब तक यह क्यू सी ओ सही मायनों में सफल नहीं होगा, और उत्पादक परेशान ही रहेगा।

बीआईएस एवं डीपीआईआईटी द्वारा जन जागरण अभियान चलाया जाना चाहिए। आम जनता को इस गुणवत्ता नियंत्रण आदेश का महत्व भी मालूम होना चाहिए और उन्हें ऐसे उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित भी किया जाना चाहिए।

अखबारों और टी वी के अलावा सोसल मीडिया का उपयोग करके यह प्रचार बखुबी किया जा सकता है। ऐसे प्रयासों का व्यापक असर होता है।

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लायसेंस परिचालन में अभी क्या-क्या परेशानी है ?

वर्तमान में बीआईएस के कई ऐसे नियम है, जिससे वर्तमान लाइसेंस धारक परेशान है

  • बीआईएस की मार्किंग फीस ज्यादा है।
  • मार्केट से सैंपल लेने की प्रक्रिया सही नहीं है। इस पर शंका रहती है कि उत्पाद क्या वाकई सही है या नकली।
  • सैंपल की टेस्टिंग में समय ज्यादा लग रहा है।
  • दो बार सैंपल यदि फेल आ जाता हे तो स्टाप मार्किंग का प्रावधान है। अनिवार्य क्यूसीओ के बाद ऐसा होने पर उत्पादन तब तक रोकना होगा, जब तक क्लीयरेंस नहीं मिल जाता।
  • दुकानदार भी नकली मार्का लगा कर माल बेच सकते है।
  • इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि 30 प्रतिशत उत्पाद ही बीआईएस के लाइसेंस धारक है। अगर सभी उत्पादक बीआईएस के दायरे में आ जाएंगे तो अभी जितनी प्रयोगशाला है, क्या वो इतनी टेस्टिंग समय से कर पाएंगी।

Duro Plusअधिकांश निर्माता अभी भी मानकों के प्रति आग्रही नहीं है

स्थानीय उत्पादक जो अभी बीआईएस के लाइसेंस लेने के प्रति उत्साहित नहीं है, उन्हे समझाने की और मानकों के लाभ बताने की आवश्यकता है कि सरकार और यह क्यू सीओ उनकी सहायता और उन्नति के लिए है। और उन्हें आश्वासन इसका भी दिया जाना चाहिए कि शुरुआत में हर संभव तकनीकी मदद की जाएगी और अनुपालन सहजता से उपलब्ध कराई जाएगी।

अनदेखी वस्तुओं से हमे अनायास ही एक भय होता है। इसके अलावा वर्त्तमान लायसेंस धारकों की विभिन्न परेशानियों को सुन सुन कर यह भय और बड़ा हो जाता है। पिछले प्लाई इन्साइट के एक वेबीनार में यह अंदेशा भी व्यक्त किया गया था। कि ऐसे कई उद्योगपत्ति कई बार अपना वर्त्तमान उद्योग बंद करके नए क्षेत्र में भी चले जाते है।

संगठन और सरकार की कोशिस होनी चाहिए कि मानकों के लाभ विस्तार से प्रचारित किए जाए और सभी उद्योगत्तियों को आश्वस्त किया जाए कि सभी के हितों की रक्षा की जाएगी।

हालांकि इस समय ऐसे अधिकांश निर्माता एमएसएमई के उस दायरे में आएंगे, जिन्हें अपनी तैयारी के लिए अतिरिक्त छह माह का समय मिलेगा। जो उनके लिए एक सुअवसर है।

कई लघु और सुक्ष्म उद्योग को समय और संसाधन की कमी महसूस हो सकती है।

सरकार द्वारा ऐसे उद्योगपतियों के लिए कोई योजना प्रस्तुत करना चाहिए, जिससे वे सहज महसूस कर सकें।


QCO का उद्योग जगत पर नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है क्या?

बल्कि लंबी अवधि में तो उद्योग के लिए यह बहुत लाभदायक होने वाला है। क्योंकि शुरूआत में चाहे-अनचाहे सभी को BIS मानकों का पालन करते हुए एक निश्चित मापदंड का उत्पाद तैयार करना होगा। जो कि अन्त में सभी की आदत बन जाएगी। उद्योग में मानकीकरण का नया दौर आरंम्भ होगा जिससे एक न्यूनतम गुणवत्ता मानक से नीचे का उत्पाद नहीं बनाया जा सकेगा।

आज की तारीख में हमें लग सकता है कि ऐसे उत्पादों की कोई विशेष मांग नहीं हैं। भारत के बाजारों के एक सर्वेक्षण के अनुसार अब धीरे-धीरे उच्च, गुणवत्ता पूर्ण उत्पाद का बाजार-सस्ते उत्पादों के मुकाबले, बढ़ता जा रहा हैं। यह काष्ठ उद्योग पर भी लागू होता है। आम जनता जैसे-जैसे तरक्की कर रही है वैसे-वैसे उच्च गुणवत्ता पूर्ण, टिकाऊ उत्पादों की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही हैं।

निश्चित ही क्वालिटी बनाने पर अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होती हैं। लेकिन इसके परिणाम अच्छे मिलते हैं। हां इसमें समय जरूर लगता है। लांग टर्म में गुणवत्ता पर किया गया अतिरिक्त निवेश उद्योग के लिए फायदेमंद ही होगा। इसलिए हमें BIS के मानकों को स्वीकार करते हुए इसे और गति देनी चाहिए।

विचारणीय यह है कि क्या हम एक मानक उत्पाद बनाना चाहते हैं?

क्या हम इसके लिए मानसिक रूप से अतिरिक्त संसाधन झोंकने के लिए तैयार हैं?

क्या हम भारत को काष्ठ उद्योग निर्यातक देशों में देखना चाहते हैं?

क्या हम अपने आपको नई उंचाइयों में ले जाने के लिए कटिबद्ध हैं?

वास्तव में, अगर हमारी क्वालिटी अपग्रेड होती है, तो हम निर्यात का सपना भी देख सकते हैं। जिस प्रकार से चीन और वियतनाम अपने उत्पाद सारी दुनिया को निर्यात करते हैं, हम भी भारत को काष्ठ उद्योग में निर्यातक देश बन सकते हैं।

हमारी शुरूआत धीमी हो सकती है। लेकिन अंततः हम अपने आपको कामयाब बना सकते हैं। इसीलिए QCO का पालन अति महत्वपूर्ण है जो उद्योग को नई उंचाइयों पर ले जा सकता है।



 

आज ड्यूरोप्लाई कहां खड़ा है?

आज ड्यूरो प्लाई प्लाइवुड निर्माण में भारत का एक प्रमुख ब्रांड है, जो अपने बेजोड़ शिल्प कौशल और बेजोड़ ग्राहक सेवा के लिए जाना जाता है।

ड्यूरो प्लाई 67 साल पुरानी कंपनी है जिसकी स्थापना हमारे दादा श्री पी.डी चितलांगिया ने की थी। वह एक महान दूरदर्शी थे, जो हमेशा गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित रखते थे, जिनके छोटे से सपने ने हमें एक प्लाइवुड निर्माण की दिग्गज कंपनी में बदल दिया।

सात दशकों की यह संपूर्ण यात्रा निष्कंटक नहीं थी। हमने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं। हमारी स्थापना के बाद से हर चीज बदल गई है, लेकिन जो नहीं बदला है, वह है सामान्य को चुनौती देने की हमारी क्षमता और हमारे सभी प्रयासों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की हमारी दृष्टि।

हम 1976 से बीआईएस मानकों का पालन कर रहे हैं, और इसके अतिरिक्त हमने अपने उत्पादों में वैश्विक मानकों की अवधारणा स्थापित की है।

हमारे ग्राहक हमारे विभिन्न उत्पादों को इस विश्वास के साथ खरीदते हैं कि उन्हें सामान्य कीमत पर अधिक मूल्यवान गुणवत्ता और लाभ मिल रहा है। हम अपने वफादार ग्राहकों के आभारी हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे उत्पाद का उपयोग कर रहे हैं।

कभी-कभी, हमारे ग्राहक कहते हैं कि, अगर हम अपने फर्नीचर में ड्यूरोप्लाई का उपयोग करते हैं, तो हमें अपने जीवन में प्लाईवुड दोबारा खरीदने का मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि यह तब तक खराब नहीं होगा।

इसलिए गुणवत्ता हमेशा बनी रहती है।


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