सुरेश बाहेती

आज की की परिचर्चा में आए हुए सभी महानुभावों का प्लाई इन्साईट और WTA की ओर से हार्दिक स्वागत है।

आज संपूर्ण विश्व की व्यापारिक नीतियों में नए-नए बदलाव हो रहे हैं। विकसित देश अपने सामने किसी भी अन्य विकासशील देश को उभरने का मौका नहीं दे रहे हैं।

ऐसे में डिफेंडिंग होकर अपने आप को सरेंडर कर देना, कितना देश हित में होगा।

आप लोग चर्चा शुरू करें ,उससे पहले मैं सभी पैनलिस्ट को जीएसटी की याद दिलाना चाहूंगा। जब जीएसटी की घोषणा हुई थी, उद्योग जगत में मायूसी छा गई थी।

सालों से चल रहा सिस्टम ,जो हमारे व्यापार के तौर तरीके में गहरी घुसपैठ बन चुका होता है, जिस सिस्टम के काम करने का तरीका हमें भली भांति ज्ञात होता है।

जब कभी ऐसे सिस्टम में बदलाव आता है, तो निश्चित रूप से हमें हैरानी और परेशानी होती है. कि नई आने वाले सिस्टम में हम अपने आप को कैसे एडजस्ट कर पाएंगे।

लेकिन आप सभी ने देखा कि जीएसटी से आज संपूर्ण व्यापार जगत कितना खुश है। आज सभी मान रहे हैं की उद्योग के लिए जीएसटी कितना क्रांतिकारी कदम था।

क्या जीएसटी के अनुभव को हम फब्व् में दोहरा नहीं सकते।

हम क्यों अपने आप को आश्वस्त नहीं कर पाते कि भारतीय सरकार भारतीय उद्योग की रक्षा करने के लिए हर संभव कदम उठाएगी।

हमें सरकार की नीतियों पर भरोसा क्यों नहीं करना चाहिए।

आखिरकार जीएसटी में भी तो शुरुआत में अनगिनत दिक्कतें आई थी। जिनका समय-समय पर समाधान होता रहा। महत्वपूर्ण यह भी है की QCO का लाभ देश को तभी मिल पाएगा जब शत प्रतिशत उद्योग BIS के दायरे में आ जाएं। यह कैसे संभव होगा?

BIS से नए जुड़ने वाले उद्योगों का डर कैसे दूर होगा।

यह आज का ज्वलंत प्रश्न है।

सुभाष जोली

प्लाई इन्साईट ओर WTA वेबीनार के इस अंक में आप सभी का स्वागत है।

QCO के एक साल के मगजमदेपवद हो जाने के बाद अब लायसेंस लेने की प्रक्रिया बहुत ही धीमी गति से चल रही है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि स्वदेशी उद्योग की उन्नति के लिए आयात बिल्कुल बंद होना चाहिए।

लेकिन स्वदेशी उद्योगों को भी BIS से जुड़ने के लिए आगे आना होगा। तभी यह QCO सही अर्थों में कामयाब हो सकता है।

डा. एम पी सिंह

QCO के लिए जो समय विस्तार दिया गया, वह इसलिए दिया गया था कि सभी उद्योपगति को लाइसेंस लेने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए। जब अपने समय पर मानक लागू हो तो कोई यह न कहे कि हमें पर्याप्त समय नहीं दिया गया।

अगर लाइसेंस की प्रक्रिया में कोई दिक्कत आ रही है, उसका भी निराकरण बीआईएस के द्वारा हो सकता है। जो ढांचागत सुविधाओं की दिक्कत है, खासतौर पर प्रयोगशालाओं को लेकर, इस पर हम अतिरिक्त सुविधा प्रदान करने पर बातचीत कर रहे हैं।

एमएसएमई द्वारा कॉमन फैसिलिटी सेंटर का लाभ उठाया जा सकता है। इसमें बीस करोड़ रुपए तक की मदद मिल सकती है। दो करोड़ रुपए मैनेजमेंट कमेटी को जुटाने होंगे। इस तरह आसानी से हम प्रयोगशाला की दिक्कत को दूर कर सकते हैं। दूसरा एसोसिएशन के स्तर पर भी मिल कर प्रयोगशाला बनायी जा सकती है।

जो क्वालिटी प्रोडक्ट तैयार करने हैं, सरकार इसके लिए कटिबद्ध है और सजग भी। सिर्फ लकड़ी उद्योग में ही नहीं बल्कि हर उत्पाद में यह QCO लागू किए जा रहे हैं। सरकार इस तरह के मानक तैयार करके देश के अपने उत्पादकों को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है।

सबसे पहले मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स क्यूसीओ की तरह की एक योजना लेकर आए थे। इस योजना के साथ पीएलआई भी लेकर आए थे। इससे देश को फायदा हो रहा है। देश ने मोबाइल में एक उल्लेखनीय स्थान प्राप्त किया है।Flourish Plywood GIF

उसी से सीख लेते हुए अलग अलग मंत्रालय ने अलग अलग तरीके से मानक लागू करने का नीतिगत निर्णय लिया है। हमें यह देखना है कि सरकार के इस नीतिगत फैसले में हम कैसे साझीदार बने। इसके लिए जो भी प्लेटफार्म हो, वहां हमें अपनी बात समय रहते हुए रखनी चाहिए।

अकेले-अकेले अपनी बात रखने की बजाय, एसोसिएशन के स्तर पर मिल कर अपनी बात रखे तो इससे सुविधा भी होगी। इसके साथ ही एक दूसरे को मदद भी करनी होगी।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि जो इस तरह के नियंत्रण को अपने संस्थान में लागु करने में सक्षम नहीं हो पाते, या जिन्हें लगता है कि यह मुश्किल रास्ता है, वह अपना काम बदल देते हैं। इस तथ्य को भी समझना होगा।

हम लोगों ने जिन मानकों को तय कर लिए हैं, उनके लिए नोटिफिकेशन भी कर दिया है। अब जो नई मांग आयी है, इस पर भी विचार चल रहा है। जो प्लाई अलग अलग प्रयोग के लिए बन रही हैं, उसे IS: 303 (थ्री जीरो थ्री जो सामान्य प्रयोग की प्लाई है) में हम सभी को सम्माहित करने की कोशिश कर रहे हैं। जिससे प्लाईवुड के अधिकतर उत्पाद IS: थ्री जीरो थ्री के दायरे में आ जाए।

जो इंडस्ट्री जिस मानक का उत्पाद बनाएंगी, उसे उसी मानक का लाइसेंस दिया जाएगा। अलग से अब और ज्यादा मानक बनाने की जरूरत नहीं है। सामान्य प्रयोग के प्लाईवुड में ही रेंज व वेल्यु दे दी जाए तो ज्यादा से ज्यादा प्लाईवुड उत्पाद इसमें आ जाएंगे।

केरल के उत्पाद के सैंपल को जब चेक किया गया तो पाया गया कि इन सामान्य मानकों के दायरे में यह आ सकते हैं।

यह इसलिए भी किया जा रहा है कि क्यूसीओ की वजह से किसी को दिक्कत न आए। इसी तरह से पार्टिकल व फायबर बोर्ड में भी मानकों की अलग अलग श्रेणी हो। जिससे उत्पादक व खरीदार को दिक्कत न आए।

कोशिश यह है कि मानक इस तरह से बनाएं जाए कि इसमें सभी श्रेणी के उत्पाद आ जाए। कोशिश यह है कि मानक उपभोक्ता व उत्पादक फ्रेंडली हो। जिससे क्यूसीओ से जो उम्मीद कर रहे हैं कि एक सुरक्षा मिलेगी उसकी पूर्त्ति हो। सरकार भी स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहित कर रहीं हैं।

सीएन पांडेः लाइसेंस की प्रक्रिया तेज होनी चाहिए

जो उद्योग के लिए सही होना चाहिए, वह सरकार ने किया। इसके लिए तकनीकी संस्थान, वैज्ञानिक, उद्योगपतियों को साथ लेकर इस तरह के मानक तैयार किए गए हैं, जिससे लकड़ी उद्योग को लाभ हो।

इस QCO का एक उद्देश्य यह था कि आयात होने वाले कम गुणवत्ता के उत्पाद को रोकना। हमारे लकड़ी उद्योग में 3,300 उद्योग में बडे़ उद्योग 50 से 60 है। बाकी एमएसएमई श्रेणी में आती है।

प्रयोगशालाओं की भारी कमी है। सभी उद्योग संचालक यदि लाइसेंस के लिए आवेदन करते हैं तो क्या बीआईएस के पास इतने साधन है कि वह सभी को तुरंत लाइसेंस दे पाए?

ऐसे में ढांचागत सुविधाओं की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। ऐसा तंत्र विकसित हो, जिसमें समय रहते उद्योगपतियों को बिना किसी समस्या के लाइसेंस मिल सके।

हम इस प्रक्रिया को कैसे आसान कर सकते हैं?

श्री एम पी सिंहः इस विषय पर बीआईएस से बातचीत हो गई है, जल्द ही ऑन लाइन बैठक होगी।

हमें बीआईएस से आश्वासन मिला कि इस पर बातचीत की जाएगी। जून के पहले सप्ताह या पर्यावरण दिवस पांच जून को यह ऑनलाइन बैठक हो सकती है। बीआईएस में जब उद्योगपति अपनी बात रखेंगे तो इस समस्या का सकारात्मक हल निकल आएगा।

डॉ. सीएन पांडेः यह अच्छी बात है। क्योंकि इस तरह की दिक्कत की वजह से लाइसेंस लेने की प्रक्रिया धीमी है।

दूसरा प्वाइंट यह हैं कि कच्चे माल की गुणवत्ता कम है, इसलिए कच्चे माल के मानक भी तय होने चाहिए।

तीसरा हमारे पास प्रशिक्षित कामगारों की भारी कमी है। क्योंकि जब तक प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध नहीं होंगे तब तक उच्च गुणवत्ता युक्त उत्पाद तैयार करना थोड़ा मुश्किल होगा।

लकड़ी उद्योग में जो केमिकल हम प्रयोग कर रहे हैं, देर सवेर इसके लिए भी गुणवत्ता मानक तय होने चाहिए। जब तक कैमिकल और कच्चे माल की गुणवत्ता सही नहीं होगी तो कैसे उच्च मानक गुणवत्ता का उत्पाद तैयार हो सकता है।

उम्मीद तो यह है कि जो प्रयास हो रहे हैं, इससे सकारात्मक परिणाम आएंगे। लेकिन एमएसएमई में तीन हजार यूनिट है, इसमें से यदि तीन चार सौ भी जब तक लाइसेंस के लिए आगे नहीं बढ़ेंगें तब तक सुधार होता दिखेगा नहीं।

कामन फैसिलिटी सेंटर आदि की सुविधा सरकारी तंत्र में फंस सकती है। इसलिए स्वयं ही इस ओर ध्यान देना होगा। क्योंकि सरकार के भरोसे पर हर चीज को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।


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